मूर्त और अमूर्त ज्ञान को उदाहरणों सहित समझाइये।

मूर्त और अमूर्त ज्ञान को उदाहरणों सहित समझाइये।

उत्तर— मूर्त और अमूर्त ज्ञान—सारवादी विचारक मानते हैं कि ज्ञान का मूल्य अपने आप में अन्तनिर्हित है। केवल सांस्कृतिक एवं बौद्धिक ज्ञान-विज्ञान सम्बन्धी विषयों का पाठ्यक्रम में समावेश होना चाहिए । मनुष्य केवल अपने पालन-पोषण के लिए नहीं जीता, अपितु संस्कारी जीवन जीने के लिए जीता है, उसकी आत्मानुभूति मनुष्य द्वारा अर्जित संस्कृति को आत्मसात करने में निहित है । अतः ज्ञान ठोस और सार में होने पर बालक का समग्र विकास कर सकता है। ज्ञान का ठोस और सार रसानुभूति करवाना है, उसका उपभोग करना नहीं है। शाश्वत सत्य तथा शाश्वत मूल्यों का पाठ्यक्रम में समावेश हो । सारवादी विचारक पाठ्यक्रम केवल अनुशासनात्मक विषयों का समावेश करना पसन्द करते हैं। प्राचीन भाषाएँ (संस्कृत, ग्रीक, लैटिन) आदिगणित, मूल विज्ञान, व्याकरण, तर्कशास्त्र आदि विषयों का समावेश उनके अन्तर्निष्ठ मूल्यों के कारण किया जाता है, न कि जीवन में उपयोगिता के कारण इन विषयों के पढ़ाने से छात्रों का बौद्धिक विकास किया जाता है तथा संस्कारी बनाने का प्रयास किया जाता है। ठोस और सार पाठ्यक्रम हेतु सार्वभौम संस्थाओं की आवश्यकता होती है, इन संस्थाओं की विषय सामग्री ठोस और सारपूर्ण होती है। छात्रों के अन्दर निरूपित मूल, सिद्धान्त, दक्षताओं तथा मनोदशाओं का विकास किया जाना चाहिए। इसमें पाठ्यक्रम शाश्वत, प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन, सनातन संस्थाओं का पाठ्यक्रम, संस्कृति को अक्षुण्ण बनाये जाने वाला पाठ्यक्रम हो । ठोस व सारवादी सम्प्रदाय का पाठ्यक्रम का आधार विषयवस्तु तथा उसका विभाजन तार्किक रूप में विभिन्न कक्षाओं के लिए किया जाता है, ज्ञान की क्रमिक अवस्थाओं के अनुसार पाठ्यक्रम का विभाजन किया जाता है। प्रत्येक कक्षा का पाठ्यक्रम प्रत्येक छात्र के लिए समान होता है। ज्ञान की अनुशासनात्मक शाखाओं के अनुसार विभक्त होता है। बौद्धिक रूप से विषय को आत्मसात करवाना होता है। पाठ्यक्रम में संस्कृति का संरक्षण, हस्तान्तरण व नवसृजन का प्रावधान हो ।

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