राम की शक्तिपूजा : कथावस्तु
राम की शक्तिपूजा : कथावस्तु
राम की शक्तिपूजा : कथावस्तु
‘राम की शक्तिपूजा’ की सामग्री निराला ने वस्तुत: बंगाल के ही एक मध्युगीन कवि कृतिवास की ‘रामायण’ से ली है, जो अनुमानतः तुलसीदास के सौ वर्ष पहले हुए थे। यह कविता सन् 1936 में लिखी गई। कविता कथात्मक ढंग से शुरू होती है और इसमें घटनाओं का विन्यास इस ढंग से किया गया है कि वे बहुत कुछ नाटकीय हो गयी है। वर्णन इतना सजीव है कि लगता है आँखों के सामने कोई त्रासदपूर्ण घटना घट रही है। पहले अनुच्छेद में अट्ठारह पंक्तियाँ हैं। इनमें राम और रावण के बीच चलनेवाले युद्ध का वर्णन किया गया है। दूसरे अनुच्छेद में रावण और राम दोनों पक्षों को सेनाओं के लौटने की सूचना है – ‘लौटे युगदल’, लेकिन दोनों सेनाएं दो तरह से लौट रही हैं। राक्षसी सेना अपने पैरों से पृथ्वी को हिलाती हुई और अपने तुमुल हर्षनाद से बंधकर आकाश को व्याकुल बनाती हुई लौट रही है, जबकि बानरी सेना कृत्रिम रूप से शांत वातावरण में अपने स्वामी का अनुसरण करती हुई दुखी भाव से अपने शिविर की ओर चल रही है।
कविता का तीसरा अनुच्छेद ज्यादा सूचनात्मक है, जिसमें वानरी सेना को उसके निवास स्थान को भेजकर उसके सेनापतियों और योद्धाओं के एक पहाड़ के शिखर पर स्थित शिविर में एकत्रित होने की बात कही गयी है। एकत्र होने का उद्देश्य था- सवेरे से होनेवाले यार की योजना बनाना। चौथा अनुच्छेद बड़ा भी है और महत्वपूर्ण भी, क्योंकि यह सूचनात्मक न होकर पूर्णत: वर्णनात्मक है। इसमें निराला सबसे पहले राम के सैन्य शिविर के इर्द-गिर्द के परिवेश का वर्णन किया है, फिर उनकी मनोदशा का, फिर सीता के साथ प्रथम मिलन स्मृति का ‘जागी पृथ्वी-तनय-कुमारिका-छवि अच्युत’, प्रथम स्नेह का लतान्तराल मिलन, नयनों का नयनों से गोपन-प्रिय संभाषण’, फिर उस स्मृति की उन पर होनेवाली प्रतिक्रिया का और अंत में आज के युद्ध में मिली उनकी असफलता तथा उससे उत्पन्न उनकी आशंका एवं व्याकुलता का।
राम की शक्तिपूजा का पांचवां अनुच्छेद सबसे बड़ा अनुच्छेद है, जिसमें निराला ने हनुमान पर राम के रोने की प्रतिक्रिया का वर्णन किया है। हार की आशंका और सीता से चिर वियोग की आशंका से राम की आंखों में आंसू आ जाते हैं। राम के आंसुओं को देखकर हनुमान का ध्यान भंग हो जाता है, उनका स्थिर चित्त चंचल हो उठा। उनके भीतर निहित अपार शक्ति खौल उठी और उन्होंने सारी सीमाएं तोड़ दीं।
राम को शक्ति के कारण पराजय हुई थी, इसलिए हनुमान का सारा क्रोध शक्ति पर था। कविता के इस अनुच्छेद में ‘राम ते अधिक राम कर दासा’ के सिद्धांत पर हनुमान का महत्व बहुत बढ़ा-चढ़ा कर दिखलाया गया है। विवेच्य कविता के छठे अनुच्छेद में विभीषण का लंबा संवाद है जो किचित कूटनीतिक होने के कारण बहुत सजीव बन पड़ा है। रामकथा में विभीषण की स्थिति विचित्र है। वे रावण के द्वारा उसकी राजसभा में राम का पक्ष लेने के कारण प्रताड़ित करके निकाले गए थे और अब राम से मिलकर उसके विरूद्ध युद्ध कर रहे थे। स्थिति की विडंबना यह थी कि लंका विजय होने के पहले ही राम ने उसका राज्याभिषेक कर उन्हें वहाँ का राजा बना दिया था। स्वभावतः युद्ध में जब कभी राम का पक्ष कमजोर पड़ता था, वे व्याकुल हो उठते थे। सातवें अनुच्छेद में निराला ने जो कुछ लिखा है, उससे विभीषण और राम
के चरित्र का अंतर स्पष्ट हो जाता है, राम की विवशता सामने आती है और उनकी आँखों से पुनः जो आंसू की बूंदे गिरती हैं, तो अलग-अलग योद्धाओं पर उसकी अलग-अलग प्रतिक्रिया का पता चलता है।
आठवें अनुच्छेद में राम अपने को प्रकृतिस्थ करते हैं और पहले जो कह गए हैं उसे विस्तार से उपस्थित योद्धाओं को समझाते हैं। अंत में जाम्बवान उन्हें शक्ति पूजन का परामर्श देते हैं, उन्हें आश्वस्त करते हुए कि उनकी अनुपस्थिति में भी सुनियोजित ढंग से युद्ध चलता रहेगा। इस प्रकार उक्त अनुच्छेद में युद्ध की पूरी योजना जाम्बवान के माध्यम से निराला ने राम के सम्मुख प्रस्तुत कर दी है। अगले अनुच्छेद में शक्तिपूजा के आयोजन का विस्तार से वर्णन है। इस की विशिष्टता यह है कि इसी में निराला ने शक्ति की वह मौलिक कल्पना प्रस्तुत को है, जिसके लिए जाम्बवान ने राम को प्रेरित किया था और जो राम की इष्ट बनती है। जाम्बवान के सुझाव से सभा में प्रसन्नता छा गयी।
राम ने उसे उत्तम बतलाकर और सिर झुकाकर उसके वार्धक्य का सम्मान किया। इस अनुच्छेद में राम द्वारा की गयी शक्ति की मौलिक कल्पना या उसके प्रति किया गया उनका आत्मनिवेदन अत्यंत उदात्त है, जिससे पाठक सहज भाव से प्रभावित हो जाते हैं। पहले अनुच्छेद से लेकर नौवें अनुच्छेद तक यह कविता सांध्य-काल से लेकर अमावस्या की रात्रि में घटित होती है। इसी रात्रि के घने अंधकार को अपनी राम-भक्ति के तेज से भेदते हुए हनुमान उर्ध्वगमन करते हैं।
दसवां अनुच्छेद ‘राम की शक्तिपूजा’ का सबसे महत्वपूर्ण अनुच्छेद है। आकार में भी यह बड़ा है। यह अनुच्छेद भी भीतर से दो खंडों में विभाजित है। पहले खंड में राम के शक्तिपूजन का वर्णन है जिसमें पूजन आरंभ करने से लेकर दुर्गा द्वारा अंतिम नील कमल चुरा ले जाने तक का वृतांत है और दूसरे खंड में उसके बाद से लेकर दुर्गा के प्रकट होने तक का। कविता दूसरे खंड में चरमोत्कर्ष पर पहुंचती है।
इस प्रकार ‘राम की शक्तिपूजा’ इस संदेश के साथ समाप्त होती है कि शक्ति का स्त्रोत मनुष्य के भीतर है, उसे जाग्रत करने से ही बाहरी विश्व में भी विजय प्राप्त होगी शक्ति की स्थापना और आशा के स्वर के साथ कविता की समाप्ति ।
महत्वपूर्ण है।