मधुमय देश : भाव सौंदर्य एवं शिल्प सौंदर्य

मधुमय देश : भाव सौंदर्य एवं शिल्प सौंदर्य

मधुमय देश : भाव सौंदर्य एवं शिल्प सौंदर्य
‘चंद्रगुप्त’ जयशंकर प्रसाद रचित प्रसिद्ध नाटकों में एक है। प्रसाद के कई प्रसिद्ध गीत उनके नाटकों में प्रयुक्त हुए हैं। ‘अरुण यह मधुमय देश हमारा’ चंद्रगुप्त नाटक के द्वितीय अंक के प्रथम दृश्य में ग्रीक राजकुमारी का लिया गाती है। कार्नालिया इस गीत के माध्यम से चंद्रगुप्त के प्रेम में आबद्ध होकर भारत के सुषमा एवं सौंदर्य का गुणगान करती है।
कार्नोलिया इस गीत के माध्यम से कहना चाहती है कि प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिकता की दृष्टि से भारत अकेला एक ऐसा देश है जहाँ सबसे पहले सभ्यता और संस्कृति का उदय हुआ। भारत को अरुणाभ मधुमयता का देश और मानवीय करुणा की जन्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है। यही वह देश है, जहाँ अज्ञानता का अंधकार दूर होता है और मानवता को ज्ञान की प्राप्ति होती है।
प्रात:कालीन मनोरम दृश्य का वर्णन करते हुए कार्नेलिया गाती है कि यहाँ बाल अरुण की सुकोमल किरणें पड़ते ही वृक्षों की कोमल नयी पत्तियाँ खुशी से झूम उठती हैं, वे नाचने लगती हैं। भूमि पर मचलती हरियाली पर सोने-सी किरणें मंगल कुंकुम बिखेरती है। पक्षियों के लिए यह देश आश्रयस्थली है, वे उन्मुक्त होकर अपने बहुरंगे पंखों को फैलाये सुबह-शाम विचरण करते हैं। यहाँ ईश्वर की आँखों से बरसने वाले करुण-जल-बादल के रूप में बरसते हैं। सागर की उत्ताल तरंगे इस धरती के किनारे से टकराकर विश्राम पाती है।
यहाँ का प्रात:कालीन दृश्य जो एक बार देख लेगा, यहीं का होकर रह जाएगा। जब अनंत सुख की चाहत में तारों का समूह रात्रि भर जागते हुए प्रात:काल में ऊंघते दिखाई देते हैं और पूरब की दिशा में उषा अपने सुंदर-सुकोमल हाथों में स्वर्णिम किरणों से भरे कलश लिये प्रस्तुत होती है।
प्रकृति का सूक्ष्म चित्रण छायावाद की महत्वपूर्ण विशेषता रही है। प्रसाद की रचनाओं में प्रकृति के न जाने कितने रूपों का वर्णन हुआ है। प्रसाद की राष्ट्रीय भावना इस कविता में प्रकृति-वर्णन के रूप में प्रकट हुआ है। प्रकृति का मानवीय व्यवहार ही मानवीकरण कहलाता है। इस कविता में प्रकृति का मानवीकरण स्पष्ट है। प्रस्तुत कविता में रूपक, उपमा और अनुप्रास अलंकार का चमत्कारिक प्रयोग देखने को मिलता है। पूरी कविता चित्रात्मक भाषा में रची गई है। संस्कृतनिष्ठ तत्सम शब्द प्रसाद को प्रिय रहे हैं, किंतु इससे भाषा कठोर नहीं हो पायी है। संगीतात्मकता और लयात्मकता इस गीत की प्रमुख विशेषता है। प्रस्तुत गीत में भारत का महिमा-वर्णन संयम भाषा शैली में की गई है।

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