वाद-विवाद से आप क्या समझते हैं ? वाद-विवाद की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। वाद-विवाद के गुण और दोषों का उल्लेख कीजिए।

वाद-विवाद से आप क्या समझते हैं ? वाद-विवाद की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। वाद-विवाद के गुण और दोषों का उल्लेख कीजिए। 

उत्तर— वाद-विवाद का अर्थ–’ वाद विवाद’ मौखिक अभिव्यक्ति की वह विधा है, जिसके अन्तर्गत किसी विषय के पक्ष या विपक्ष में वक्ता अपने क्रमबद्ध एवं तर्कपूर्ण विचार प्रस्तुत करके अपना मत प्रतिपादित करता है । वाद-विवाद को एक सामूहिक चर्चा भी कहते हैं।

प्रक्रिया– वाद-विवाद के विषयों का चयन बालकों के मानसिक तथा शारीरिक स्तरानुसार किया जाए तथा विषय की जानकारी से उन्हें निश्चित तिथि से काफी पूर्व ही अवगत करा देना चाहिए। विषय के एक पक्ष को महत्त्व नहीं दिया जाए। छात्रों को समान रूप से पक्ष तथा विपक्ष विषय दोनों पर ही बोलने के लिए उत्साहित किया जाए।
विद्यालय स्तर पर दो या दो से अधिक बालक किसी भी विषय पर आपस में बात करते हैं। इस प्रकार किसी विवाद- पूर्ण विचार के पक्ष एवं विपक्ष में दो दल बना लिए जाते हैं। इसका एक सभापति होता है जो अध्यख का काम करता है। प्रत्येक दल के सदस्य विचार पक्ष अथवा विपक्ष में निर्धारित समय में तर्क व्यक्त करते हैं। वक्ता अपने मत का प्रतिपादन तर्कों द्वारा करते हैं तथा वे अध्यक्ष को सम्बोधित करते हुए श्रोताओं के समक्ष अपने विचार प्रकट करते हैं। एक दल दूसरे दल के विचार का खण्डन करने का प्रयास करता है। इससे विचार के प्रत्येक पक्ष का विश्लेषण हो जाता है और इसमें सामूहिक रूप से एक निष्कर्ष निकाला जाता है।
वाद-विवाद के गुण / लाभ– इस क्रिया-कलाप से छात्र निम्न प्रकार से लाभान्वित होते हैं—
(1) विद्यार्थियों में मौखिक अभिव्यक्ति कौशल विकसित करने के लिए विद्यालय में वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है।
(2) इससे बालक विचारों की प्रभावशाली व क्रमिक अभिव्यक्ति करना सीखते हैं।
(3) इसमें विचारों की अभिव्यक्ति के साथ-साथ बालक की बोध शक्ति, मौलिक चिन्तन शक्ति व तर्क शक्ति का विकास भी होता है।
(4) इस गतिविधि से विद्यार्थियों में उचित हावभाव, उचित मुखमुद्रा सुस्वरता, सम्यक् गति, उचित प्रवाह, शिष्टाचार आदि के साथ अभिव्यक्ति करने का अभ्यास होता
(5) इससे छात्रों में बलाघात, अनुतान, विराम चिह्नों आदि का प्रयोग करते हुए बोलने की योग्यता विकसित होती है।
(6) इस गतिविधि में भाग लेने के लिए तरह-तरह के विषयों को तैयार करने के लिए विद्यार्थियों को तरह-तरह की पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाएँ आदि पढ़नी पड़ती हैं जिससे उनमें स्वाध्याय की प्रवृत्ति का विकास होता है ।
(7) इसमें दूसरे पक्ष की बात को ध्यान से सुनना पड़ता है जिससे बालक का मस्तिष्क सक्रिय रहता है तथा उसके ज्ञान में वृद्धि होती है ।
(8) ये क्रियाएँ विद्यार्थियों के भावी जीवन, शिक्षण, वकालत, राजनीति आदि में सहायक सिद्ध होती हैं ।
(9) बालक कम समय में उदाहरणों द्वारा अपने पक्ष को प्रस्तुत करना सीख जाता है ।
(10) इसमें वक्ता अन्य लोगों को अपने मत के अनुकूल करने में सफलता प्राप्त करता है ।
(11) इस क्रिया में छात्रों में आत्माभिव्यक्ति द्वारा आत्मविश्वास की भावना विकसित होती है, जिससे बालक के साक्षात्कार आदि में घबराहट हिचकिचाहट आदि नहीं आ पाती।
(12) इस गतिविधि में छात्र अपने उच्चारण को शुद्ध रखने का प्रयास करते हैं जिससे उनमें शुद्ध बोलने की आदत विकसित हो जाती है ।
(13) छात्रों को विषयानुकूल शब्दों का चयन करना पड़ता है जिससे उनके शब्द भण्डार में वृद्धि होती है तथा वाक्यविन्यास की कुशलता भी आती है।
(14) बालक उपयोगी विचारों का चयन करना व उनको संगठित करना सीख जाता है ।
(15) इस गतिविधि में निरन्तर भाग लेने से, अर्थात् मंच पर बोलने से विद्यार्थियों की एक निश्चित शैली विकसित हो जाती है ।
(16) इस क्रिया में भाग लेने से विद्यार्थियों का भाषा पर अधिकार हो जाता है।
(17) इस क्रिया में बालक में अपनी बात दूसरों से मनवाने की कला का विकास होता है ।
वाद-विवाद के दोष – वाद-विवाद से निम्नांकित हानियाँ हैं–
(1) वर्तमान परिवेश में जहाँ पर कक्षा में बालकों की संख्या बहुत अधिकं है तथा पाठ्यक्रम भी बड़ा है, इसको अनुकूल नहीं कहा जा सकता ।
(2) इसका प्रयोग करने से पूर्व पर्याप्त तैयारी की आवश्यकता होती है क्योंकि वाद-विवाद किसी रिक्तिता से प्रारम्भ नहीं हो सकता।
(3) विद्यार्थियों में गुटबाजी को प्रोत्साहन मिलता है, जिसका परिणाम अच्छा नहीं होता।
(4) इसमें प्राय: देखा गया है कि कुछ विद्यार्थी ही छाये रहते हैं। वे दूसरों को समय नहीं देते जबकि अन्तर्मुखी (Introvert) विद्यार्थी भाग लेने में सकुचाते हैं। अतः सहभागिता के सिद्धान्त पर पूर्णतः खरी नहीं उतरती ।
(5) इसमें समय का अपव्यय होता है। कई बार विद्यार्थियों में अपने-अपने विचार रखने की प्रतियोगिता-सी लग जाती है, जिससे समय नष्ट होता है।
(6) तीस या चालीस मिनट के कालांश में इसके द्वारा शिक्षण कार्य करना बड़ा कठिन कार्य है।
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