विद्यालय पाठ्यक्रम में अनुशासनात्मक ज्ञान की क्या भूमिका है ?

विद्यालय पाठ्यक्रम में अनुशासनात्मक ज्ञान की क्या भूमिका है ? 

                                    अथवा

विद्यालयी पाठ्यक्रम में अनुशासनिक ज्ञान की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर—विद्यालय पाठ्यक्रम में अनुशासनात्मक ज्ञान की भूमिका–ज्ञान अखण्ड है, मानव मस्तिष्क एक है, ज्ञान की ग्राह्यता मानव मस्तिष्क में ही होती है। ज्ञान का विभाजन शिक्षण की सुविधा की व्यवस्था के लिये किया गया है। अंत में बालक अपने सम्पूर्ण ज्ञान का उपयोग एकीकृत रूप से ही करता है। अतः चार विषय संकाय बनाये गये हैं तो सर्वप्रथम तो यह कि ये चारों विषय संकाय, अखण्ड ज्ञान का रूप ही है। जब ये चारों वर्ग अखण्ड हैं तो भिन्न-भिन्न रूप से प्रत्येक संकाय के उपविषयों में तो सम्बन्ध होगा ही क्योंकि प्रत्येक विषय संकाय के शिक्षण उद्देश्यों में अलग-अलग समानता है।
उपर्युक्त प्रस्तुति में देखा गया ज्ञान की प्रकृति, ज्ञान के विभाजित वर्ग, सह-सम्बन्ध का अर्थ और संकायों के आधार पर उनके उपविषयों की स्थिति व उनमें सह-सम्बन्ध । संकायों के उपविषयों में सह-सम्बन्धों को उसको समझने की आवश्यकता को देखते हुए थोड़ा विस्तार दिया गया है। इसका कारण है कि इसके अन्तर्गत उदाहरण भी प्रस्तुत किये गये हैं इस विस्तार का एक और लाभ यह भी होगा कि यह सह-सम्बन्ध अन्य विषय यदि कोई घट गया है, तो उसके लिये दिशा-दर्शन का कार्य कर पायेगा और प्रबुद्ध विद्यार्थी वर्ग स्वयं ही विषयों के अन्तर्गत सहसम्बन्ध स्थापित करने में सक्षम हो सकेगा। जो कुछ भी शिक्षा प्राप्त करेगा उसका व्यावहारिक उपयोग जीवन में करके अपने व्यक्तित्व जीवन व समाज के जीवन में समृद्ध बना सकेगा।
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