विस्मृति के सिद्धान्त एवं महत्त्व को स्पष्ट कीजिये।

विस्मृति के सिद्धान्त एवं महत्त्व को स्पष्ट कीजिये। 

उत्तर— विस्मृति के सिद्धान्त (Theories of Forgetting ) विस्मृति के प्रमुख सिद्धानत निम्नलिखित हैं—

(1) चिह्न ह्रास का सिद्धान्त (Theory of Trace Decay)– यह सिद्धान्त सामान्य अनुभवों पर आधारित है। इस सिद्धान्त का मुख्य आधार समय है। सामान्यतः यह देखा गया है कि समय के साथ-साथ हमारी स्मृति धूमिल हो जाती है । इस विस्मरण के दो कारण हैं पहला समय तथा दूसरा प्रयोग । प्रायः यह देखा गया है कि सीखी हुई बातों को पुनः स्मरण न किया जाए तो वह हमारे मस्तिष्क से विस्मृत हो जाती है। इस प्रकार विस्मृति में समय का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। प्रयोग भी विस्मृति का एक प्रमुख कारण है यदि हम सीखी बातों को व्यवहार में नहीं लायेंगे तो वह भी कुछ समय बाद स्मृति से धूमिल हो जाएगी क्योंकि जिन बातों को हम अपने व्यवहार में प्रयोग करते हैं उनके स्मृति चिह्न सुदृढ़ हो जाते हैं। इस सिद्धान्त को थार्नडाइक ने अपने ‘अनुपयोगिता सिद्धान्त’ द्वारा सिद्ध भी कर दिया ।
(2) अभिप्रेरणा का सिद्धान्त (Motivational Theory)– इसे दमन का सिद्धान्त भी कहते हैं। इस सम्बन्ध में प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जिगारनिक (Zeigarnik) ने एक प्रयोग किया जिसमें उन्होंने बताया कि बालक पूर्ण कार्यों की तुलना में अपूर्ण कार्यों के प्रति अधिक अभिप्रेरित होते हैं ।
जिगारनिक के अनुसार, “अपूर्ण कार्यों के पुनः स्मरण में सफलता का कारण वे अभिप्रेरणाएँ होती है जिनकी उपलब्धि पूर्ण नहीं होती और उद्देश्य प्राप्ति का आकर्षण बना रहता है। इसके विपरीत पूर्ण कार्यों में उपलब्धि प्राप्त होने के कारण अभिप्रेरणा सन्तुष्ट हो चुकी होती है।”
(3) व्यतिकरण का सिद्धान्त (Theory of Interference)– गुलर, वुडवर्थ तथा पिल्जेकर आदि मनोवैज्ञानिकों ने बताया कि अधिगम के समय उत्पन्न बाधाएँ हमारी धारण क्षमता को प्रभावित करती हैं। समय के तीनों काल भूतकाल, वर्तमानकाल तथा भविष्यकाल का प्रभावात्मक सम्बन्ध होता है। यह व्यतिकरण दो भागों में विभक्त होता है—अग्रोन्मुख (Proactive) तथा पृष्ठोन्मुख (Retroactive)। अग्रोन्मुख व्यक्तिकरण में व्यक्ति के भूतकाल का अधिगम वर्तमान को प्रभावित करता है। पृष्ठोन्मुखी व्यतिकरण में अधिगम से पूर्व ही बाधा आती है।
(4) पुनआह्वान की विफलता का सिद्धान्त (Theory of Retrieval Failure)– इस सिद्धान्त में मनोवैज्ञानिकों ने बताया है कि विस्मृति का कोई स्थायी रूप नहीं होता है बल्कि यह अस्थाई रूप में होता है। अधिगम के पश्चात् हम उस सीखी हुई विषय सामग्री का जब हम पुनर्वाह्यवन करते हैं तो हमारा मस्तिष्क उसे हमारे स्मृति कोष में खोजता है। वह पुनर्वाहावन करता है। इस प्रक्रिया में वह सफलता मिलने पर स्मृति क्रियाशील होती है किन्तु प्रयास यदि विफल हो जाता है तो विस्मृति क्रियाशील होती है। इस प्रकार पुनर्भाह्वन में विफलता की स्थिति ही विस्मृति है
(5) अनुबद्धता का सिद्धान्त (Theory of Conselidation )— यह सिद्धान्त स्मृति की अपरिपक्व या असंगठित हो जाने से सम्बन्धित है। ऐसी स्थिति में पुनः स्मरण (Recall) में सफलता नहीं मिलती है । एक स्मृति चिह्न द्वारा दूसरी स्मृति चिह्न में बाधा पहुँचाना विस्मरण का कारण होता है। विस्मरण का यह सिद्धान्त अपूर्ण तथा असन्तोषजनक माना जाता है क्योंकि यह विस्मरण की पूर्ण व्याख्या प्रस्तुत नहीं करता
विस्मृति का महत्त्व (Importance of Forgetting)– शिक्षा में विस्मृति का अपना अलग ही महत्त्व है। इसकी महत्ता का स्पष्टीकरण करते हुए प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक कॉलिन्स व ड्रेवर के अनुसार, “यह सत्य है कि विस्मरण, स्मरण के विपरीत है, पर व्यावहारिक दृष्टिकोण से विस्मरण लगभग उतना ही लाभप्रद है जितना कि स्मरण” ।
(1) क्षणिक महत्त्व की बातों को भुलाना– बालक को विद्यालय में ऐसी बहुत सी बातें बतायी जाती हैं जिनका महत्त्व क्षणिक होता है अतः उन्हें भूल जाना ही बालक के लिए अच्छा रहता है।
(2) पुरानी बातों को भूलकर नई बात सीखना– बालक जितनी जल्दी पुरानी बातें भूलकर नई बात सीखता है वह उसके लिए उतना ही लाभप्रद होता है क्योंकि पुरानी बात नई बात के सीखने में बाधा उत्पन्न करती है ।
(3) अस्त व्यस्तता से बचाव– यदि बालक सभी बातों को याद रखेगा तो कुछ समय पश्चात् उसकी स्मृति में इतनी बातें हो जाएँगी वह उनका सम्बन्ध स्थापित नहीं कर पाएगा और विचार पूर्ण रूप से अस्त-व्यस्त हो जाएगा। अतः बालकों का कुछ बातों को भूल जाना ही उचित रहता है।
(4) दुःखद अनुभवों को भूलना– बालक अपने जीवन काल में कई दुःखद अनुभवों का सामना करता है और वे अनुभव बालक की स्मरण प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करते हैं। अतः बालक का इसे भूल जाना ही उचित रहता है ।
(5) सीमित क्षेत्र का प्रयोग– बालक की स्मरण क्षमता सीमित होती है। यदि बालक पुरानी बातों को भूलेगा नहीं तो नई बातें सीखना असम्भव हो जाएगा। अतः बालक को पुरानी बातें भूलकर नई बातें सीखनी चाहिए ।
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