वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक कौन-कौनसे हैं ?
वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक कौन-कौनसे हैं ?
अथवा
वंशानुक्रम से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर— वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Growth and Development )—वृद्धि एवं विकास को निम्न कारक प्रभावित करते हैं—
(1) वंशानुक्रम (Genetic)– वंशानुक्रम की प्रक्रिया से यह स्पष्ट हो जाता है कि बच्चे के लिंग, स्वास्थ्य, रंगरूप एवं बुद्धि सबके निर्धारक पित्रैक (Genes) होते हैं। गर्भावस्था से लेकर बालक के जीवन के प्रत्येक चरण में होने वाले प्रत्येक परिवर्तन के लिए पित्रैक उत्तरदायी होते हैं। निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर वंशानुक्रम को स्पष्ट किया जा सकता है—
(i) शारीरिक विकास पर प्रभाव– डिक मेयर के अनुसार, “वंशानुक्रम कारक जन्मगत विशेषताएँ होती हैं जो बालक के अन्दर जन्म से ही पायी जाती है। वैज्ञानिकों ने यह स्पष्ट किया है कि गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के जिस प्रकार के शरीर सम्बन्धी पित्रैक का संयोग होता हैं बच्चे शरीर के विविध अंगों का विकास उसके अनुसार ही होता है। पित्रैकों के माध्यम से ही शारीरिक रोग एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरित होते हैं । “
(ii) सामाजिक विकास का प्रभाव– व्यक्ति में सामूहिकता की मूल प्रवृत्ति का निवास होता है। यही प्रवृत्ति व्यक्ति को समूह में रहने की प्रेरणा देती है। इस प्रवृत्ति की तीव्रता जिस व्यक्ति में अधिक होती है वह उतनी ही तीव्रता से विविध प्रकार के समाजों में समायोजित हो जाता है ।
(iii) स्वभाव पर प्रभाव– व्यक्ति का स्वभाव मुख्यतया उसके सामाजिक एवं संवेगात्मक विकास पर निर्भर करता है। स्वभाव के विकास में सबसे अधिक भूमिका अन्तःस्रावी ग्रन्थियों की होती है ।
(iv) मानसिक विकास पर प्रभाव– क्लिनबर्ग के अनुसार, “बुद्धि प्रजाति पर निर्भर करती है। वंशानुक्रम सम्बन्धी जितने भी।
प्रयोग किए गए हैं उनसे यह ज्ञात होता है कि बुद्धिमान माता-पिता के बच्चे भी बुद्धिमान होते हैं। कम-बुद्धि वाले माता-पिता के बच्चे भी कम बुद्धि के होते हैं।”
अतः व्यक्ति के मानसिक विकास का आधार भी वंशानुक्रम होता ।
(v) संवेगात्मक विकास पर प्रभाव– किसी भी व्यक्ति की संवेगात्मक स्थिति उसके शरीर एवं मस्तिष्क पर निर्भर करती है इसलिए मनुष्य के संवेगात्मक विकास में भी वंशानुक्रम का प्रभाव होता है।
(2) जैविक कारक (Biological Factor) – जैविक कारक से तात्पर्य ऐसे कारकों से होता है जो आनुवांशिक होते हैं तथा जो जन्म या जन्म के पहले से ही व्यक्ति में विद्यमान होते हैं और व्यक्ति के विकास को प्रभावित करते हैं। ऐसे प्रमुख कारक निम्न हैं—
(i) अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ (Endocrine Glands)—प्राय: यह देखा जाता है कि कभी-कभी हम बहुत सक्रिय तथा कभी-कभी निष्क्रिय हो जाते हैं व कभी-कभी उदास हो जाते हैं। इसका कारण यह है कि शरीर में कुछ ऐसे रासायनिक परिवर्तन होते हैं जिनका नियन्त्रण कुछ ग्रन्थियों द्वारा होता है। जैसे—
(a) पीयूष ग्रन्थि (Pituitary Gland)—इसका स्थान मस्तिष्क में होता है तथा अधिक हार्मोन्स स्रावित होने से व्यक्ति के शरीर की लम्बाई अधिक व कम होने से व्यक्ति बौना हो जाता है। इस ग्रन्थि के अग्रभाग से सोमेंटोट्रोकिन नामक हार्मोन्स स्रावित होता है। इस हार्मोन्स के सहारे पीयूष ग्रन्थि अन्य ग्रन्थियों जैसे— एड्रीनल ग्रन्थि, कण्ठ ग्रन्थि आदि के कार्यों पर अपना नियंत्रण रखती है।
(b) अधिवृक्क ग्रन्थि (Adrenal Gland)— इस ग्रन्थि का स्थान वृक्क के ऊपर होता है । इसके द्वारा ही व्यक्ति की सांवेगिक स्थिति का नियंत्रण होता है। भय, क्रोध, आदि संवेग में इस हार्मोन्स का अधिक महत्त्व है।
(ii) यौन ग्रन्थि (Sex Gland) — इस ग्रंथि के विकास से स्त्रियों में स्त्रियोचित गुणों तथा पुरुषों में पुरुषोचित गुणों का विकास होता है।
(3) पर्यावरण (Environment)– मनुष्य अपने वंशानुक्रम से जो भी गुण प्राप्त करता है वे सभी परिवर्तनशील होते हैं उन सब में पर्यावरण के अनुसार परिवर्तन होता है।
वाटसन के अनुसार, “मुझे नवजात शिशु दे दो, मैं उसे डॉक्टर, वकील, चोर या जो भी चाहूँ बना सकता हूँ।” यहाँ पर बालक के विकास में पर्यावरण के प्रभाव का क्रमबद्ध वर्णन प्रस्तुत किया गया है—
(i) शारीरिक विकास पर प्रभाव– गर्भावस्था में बच्चे के लिंग का निर्धारण एवं उसके रूप रंग का निर्धारण उसके माता-पिता के पित्रैक करते हैं लेकिन बच्चे का स्वास्थ्य उसकी माँ से प्राप्त तत्त्वों पर निर्भर करता है। गर्भावस्था के दौरान बच्चे के मस्तिष्क पर भी माँ की मानसिकता का प्रभाव पड़ता है। जन्म के उपरान्त बच्चे को जैसे वातावरण में रखा जाता है उसका विकास उसी रूप में होता है।
(ii) मानसिक विकास पर प्रभाव– जब दो जुड़वा बच्चों पर प्रयोग किया जाता है तो यह सिद्ध होता है कि बच्चों में वंशानुक्रमीय गुण समान होने पर भी पर्यावरण में बच्चों का मानसिक विकास भिन्न-भिन्न होता है। उचित पर्यावरण द्वारा बच्चों में उचित कल्पना, तर्क, स्मरण आदि शक्तियों का विकास होता है।
(iii) व्यक्तित्व के निर्माण पर प्रभाव– कोले के अनुसार, “मनुष्य व्यक्तित्व के निर्माण में उसके वंशानुक्रम से अधिक उसके पर्यावरण का प्रभाव होता है। “
(iv) चरित्र निर्माण पर प्रभाव– बालक जिन व्यक्तियों के बीच रहता है उन्हीं की आदतों को सीखता है, उन्हीं के विश्वास और मूल्य को सीखता है एवं उन्हीं के अनुसार आचरण करता है।
(v) विभिन्न योग्यताओं के विकास पर प्रभाव– बालक विशेष प्रकार की बुद्धि और अभिक्षमता लेकर पैदा होता है इसमें कोई भी संदेह नहीं है परन्तु वह उन्हीं चीजों को सीखता है जो उसे सिखाई जाती है ।
(vi) संवेगात्मक विकास पर प्रभाव – जिन बच्चों के माता-पिता तथा भाई-बहन में संवेदनशीलता होती है, वे बच्चे भी संवेदनशील होते हैं ।
(vii) सामाजिक विकास पर प्रभाव मनुष्य सामूहिकता की मूल प्रवृत्ति लेकर जन्म लेता है एवं सीखने की विभिन्न शक्तियों को साथ लेकर पैदा होता है परन्तु वह उसी भाषा का अनुसरण करता है जो उसके समाज में बोली जाती है अतः मनुष्य के सामाजिक विकास में पर्यावरण का विशेष महत्त्व होता है ।
(4) भौतिक / शारीरिक कारक (Physical Factor)— यद्यपि आजकल व्यक्ति पर प्रभाव डालने वाले जैविकीय कारकों में अन्तःस्रावी ग्रन्थियों को ही सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है परन्तु जैवकीय कारकों, शारीरिक रचना और शरीर रसायन का वर्णन भी प्रासंगिक होता है। दैनिक व्यवहार में हम देखते हैं कि व्यक्ति की शारीरिक रचना से उसके स्वभाव का कुछ न कुछ सम्बन्ध अवश्य होता है । प्रायः मोटे व्यक्ति हँसी-मजाक पसन्द करने वाले, आराम पसन्द और सामाजिक दिखाई पड़ते हैं और दुबले-पतले व्यक्ति संयमी, तेज और चिड़चिड़े होते हैं।
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