गेसेल के परिपक्वता सिद्धान्त का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।

गेसेल के परिपक्वता सिद्धान्त का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। 

उत्तर— गेसेल का परिपक्वन सिद्धान्त (Gessel’s Maturation Theory)– गेसेल एवं थाम्पसन ने अपने अध्ययन के अन्तर्गत 46 माह की दो जुड़वा बहनों का चयन किया। एक को छ: माह का सीढ़ी पर चढ़ने का प्रशिक्षण एवं अभ्यास कराया गया जबकि दूसरी लड़की को मात्र दो सप्ताह का अभ्यास व प्रशिक्षण दिया गया। निरीक्षण से देखा गया कि दोनों बालिकाओं में सीढ़ी पर चढ़ने की क्रिया साथ-साथ पायी गयी जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि प्रशिक्षण एवं अभ्यास का प्रभाव बिना उपयुक्त शारीरिक परिपक्वता के शून्य हो जाता है। अत: उपर्युक्त अध्ययन से परिपक्वता की महत्ता को बल प्रदान होता है।
माता-पिता, शिक्षक को भी इसकी विशेषता एवं प्रक्रिया से परिचित होना नितान्त आवश्यक है क्योंकि यह सर्वविदित सत्य है कि बालक को बालक समझकर व्यवहार की प्रत्याशा करनी चाहिए। दूसरे शब्दों में परिपक्व बालक से ही परिपक्व व्यवहार की अपेक्षा की जाए तो बालक की शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों एवं क्षमताओं का सकारात्मक विकास होता है। जब बालक के ऊपर आयु एवं परिपक्वता से इतर व्यवहार का दबाव डाल दिया जाता है तो बालक में दबाव के कारण हीनता एवं कुण्ठा की भावनाओं के उत्पन्न होने की सम्भावना प्रबल हो जाती है।
अत: बिना पूर्ण परिपक्वता प्राप्ति के किसी बालक को न तो कोई ( प्रशिक्षण व अभ्यास लाभ दे सकता है न तो किसी व्यवहार व क्रिया की अपेक्षा की जा सकती है। आज यह परिवर्तन दिखायी पड़ रहा है कि प्रत्येक माता-पिता निश्चित आयु से पूर्व ही बच्चों में क्रियाओं के विकास के लिए अनेक प्रकार का प्रशिक्षण व अभ्यास देने लगते हैं जिससे बच्चों में सकारात्मक क्रिया का विकास नहीं हो पाता है। जब बालक बार-बार प्रशिक्षण व सीखने के बाद भी अपरिपक्वता के कारण सम्बन्धित कौशल का अर्जन करने में विफल हो जाता है तो माता-1 ता-पिता की बच्चों के प्रति एक प्रकार की नकारात्मक वृत्ति विकसित हो जाती है। वास्तविकता यह है कि बच्चों के शारीरिक अंग सम्बन्धित क्रिया को सीखने या उनके प्रति क्रिया करने के लिए परिपक्व नहीं रहते हैं। परिपक्वता एक प्रकार की जैविक प्रक्रिया होने के कारण स्वतन्त्र रूप से अविरल गति से गतिमान रहती है।
परिपक्वता के कारण ही बालक की शारीरिक वृद्धि, मानसिक विकास एवं उसकी स्नायुविक क्रियाशीलता निर्धारित होती है न कि पर्यावरण का परिणाम है। बालक के स्वस्थ मनोवैज्ञानिक विकास व समायोजन के लिए यह नितान्त आवश्यक है कि उसके प्रशिक्षण एवं सीखने की क्रियाओं व व्यवस्थाओं के सन्दर्भ में जागरूक रहा जाए।
जरशील्ड एवं साथियों (Jersild and Associates, 1975) के अनुसार, “परिपक्वता की प्रक्रिया के द्वारा प्राणी में निहित सम्भावित क्षमताएँ, प्रकार्यात्मक तत्परता की अवस्था तक पहुँच जाती है। इस प्रक्रिया में दैहिक एवं मानसिक परिवर्तन घटित होते हैं। इन परिवर्तनों की उत्पत्ति विवृद्धि के साथ होती है तथा संरचनाओं का प्रगतिशील अभ्यास जो पश्चात् के निष्पादनों का आधार है, सम्मिलित है। “
हरलॉक (Hurlock, 1978) के अनुसार, “आन्तरिक परिपक्वता व्यक्ति में निहित उन सम्भाव्य विशेषताओं को अभिव्यक्त करता है जो प्राणी के आन्तरिक स्नायविक अवयवों को पुष्ट करते हैं।”
मार्टिन (Martin) के अनुसार, “परिपक्वता उन संरचनात्मक परिवर्तनों की अभिव्यक्ति है जो प्राणी के आन्तरिक स्नायविक अवयवों को पुष्ट करते हैं। “.
एस.एस. माथुर (S.S. Mathur) के अनुसार, “परिपक्वता व्यक्ति की वह स्वाभाविक विवृद्धि है जो बिना किसी विशिष्ट परिस्थितियों यथा-अधिगम एवं अभ्यास के ही सतत् रूप से गतिमान रहती है। “
बी. कुप्पू स्वामी (B. Kuppu Sawami) के अनुसार, “अनुभव एवं अधिगम की अपेक्षा संरचनाओं को संवृद्धि की प्रक्रिया के फलस्वरूप सम्भव होने वाले विकासात्मक परिवर्तन को परिपक्वता कहते हैं। ।
परिपक्वता की विशेषताएँ (Characteristics of Maturation)—परिपक्वता एक जैविक प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक का सकारात्मक विकास निर्धारित होता है। बिना परिपक्वता के विकास सम्भव नहीं है। अतः परिपक्वता में निम्नलिखित विशेषताएँ निहित हैं जिनका विवरण निम्नलिखित हैं—
(i) परिपक्वता किसी जीव की कोशकीय, जैविक तथा प्रकार्यात्मक विकास की प्रक्रिया है।
(ii) परिपक्वता, मानसिक, शारीरिक व प्राकृतिक प्रक्रिया है जो किसी अर्जित व्यवहार के प्रगट होने से पूर्व अथवा किसी व्यवहार के अर्जन के पूर्व आवश्यक होती है ।
(iii) किसी जीव की विभिन्नताओं में आयु वृद्धि के साथ घटित होने वाली प्राकृतिक प्रक्रिया परिपक्वता है ।
(iv) परिपक्वता का सम्बन्ध समय के साथ-साथ शारीरिक परिवर्तन से हैं ।
(v) परिपक्वता में मात्रात्मक एवं गुणात्मक परिवर्तन होते हैं।
(vi) यह प्राणी में एकाएक उत्पन्न न होकर धीरे-धीरे उत्पन्न होती है ।
(vii) परिपक्वता में निरन्तरता एवं सातत्य का गुण पाया जाता है।
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