शिक्षा का अधिकार अधिनियम तथा इसे लागू करने में चुनौतियों पर अपने विचार लिखिए।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम तथा इसे लागू करने में चुनौतियों पर अपने विचार लिखिए।

उत्तर—  शिक्षा का अधिकार अधिनियम – “विश्व में सर्वाधिक निरक्षर भारत में रहते हैं” जैसे अभिशाप से देश को मुक्ति दिलाने का निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा पाने का अधिकार अन्ततः 1 अप्रैल, 2010 को एक वास्तविकता बन गया है। सन् 2002 में संविधान के 86वें संशोधन से ‘शिक्षा पाने के अधिकार’ को मौलिक अधिकारों में शामिल करने के लिए सन् 2009 में निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा पाने का अधिकार अधिनियम, 2009 पारित किया गया। इस प्रकार अब भारत में 6-14 वर्ष की आयु वर्ग के सभी बच्चे विधिक तौर पर निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा पाने के हकदार हैं।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम जिसमें संविधान के 86वें संशोधन अधिनियम 2002 के द्वारा 21 क जोड़कर शिक्षा को मौलिक अधिकार बना दिया गया है, के द्वारा राज्य को यह कर्त्तव्य सौंपा गया है कि वह 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा। शिक्षा अधिकार विधेयक को संसद ने 4 अगस्त, 2009 को मंजूरी प्रदान की तथा 1 अप्रैल, 2010 से शिक्षा का अधिकार कानून लागू किया गया। कानून के अन्तर्गत बच्चों को अनिवार्य व निःशुल्क शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए अनेक प्रावधान किए गए हैं, जिसमें शिक्षकों को नियुक्ति देने सम्बन्धी प्रशिक्षण, आवश्यक आधारभूत ढाँचे का विकास, निजी स्कूलों में बच्चों का प्रवेश देने सम्बन्धी आरक्षण, स्कूलों में मिड डे मील समेत अन्य आवश्यक सुविधाओं के विकास के लिए विशेष कदम उठाए गए हैं।
इस कानून के अनुसार शिक्षा के दायरे से बाहर छूट गए करोड़ों बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाना, हर बच्चे के पड़ोस में विद्यालय की व्यवस्था करना, हर विद्यालय को आर. टी. ई. में दिए गए मानक के आधार पर मान्यता लेने योग्य बनाना तथा मान्यता न होने पर दण्ड का प्रावधान, पैरा शिक्षक की नियुक्ति तथा नॉनफॉर्मल स्कूलों पर पाबन्दी, कानून में दिए गए मानक के आधार पर आधारभूत संरचना उपलब्ध कराने, योग्य व प्रशिक्षित अध्यापकों की नियुक्ति तथा अप्रशिक्षित व अल्पवेतन भोगी अध्यापकों को प्रशिक्षित करने, फेस-पास प्रणाली से अलग बच्चों के लगातार सम्पूर्ण मूल्यांकन (सीसीई) आदि जैसे कदम तत्काल उठाने होंगे, साथ ही 75% अभिभावकों एवं कुल संख्या का पचास प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी वाली स्कूल प्रबन्धन समितियों का जनतान्त्रिक तरीके से गठन व संचालन तथा उनके द्वारा स्कूल के विकास योजना बनाने व निगरानी जैसी प्रगतिशील योजनाएँ तय की गई हैं। प्राइवेट स्कूलों में कुल बच्चों की संख्या का 25% पड़ोस की गरीब बस्तियों में रह रहे आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को दाखिला दिए जाने का प्रावधान किया गया है। प्राइवेट स्कूलों के प्रबन्धन ने एकजुट होकर उच्चतम न्यायालय की अदालत में इस प्रावधान को रद्द करने की याचिका दाखिल की थी। मगर उच्चतम न्यायालय ने अप्रैल, 2012 के आदेश के जरिए इस याचिका को खारिज कर दिया। हालाँकि अदालत ने अनुदानरहित अल्पसंख्यक स्कूलों को कानून के दायरे से बाहर कर दिया। इन अल्पसंख्यक विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चे कानून द्वारा दिए गए अन्य अधिकारों से भी वंचित हो जाऐंगे। जबकि यह मौलिक अधिकार 6-14 वर्ष की उम्र के सभी बच्चों को हासिल है। संसद ने एक और संशोधन कर मदरसों व वैदिक विद्यालयों को भी इसके दायरे से बाहर कर दिया है। सरकारी स्कूलों को मजबूत करने की बजाय कानून को ही कमजोर बना देने की तमाम कोशिश जारी है व यह कानून तरह-तरह के राजनीतिक दबावों और समझौतों का शिकार होता जा रहा है। अतः इस कानून की सफलता के लिए अध्यापकों व अभिभावकों में जागरूकता फैलाना और उन्हें साथ लाना आवश्यक हो गया है जिसके लिए उन्हें इस अधिनियम से । परिचित होना भी आवश्यक है।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम की विशेषताएँ – इस अधिनियम की प्रमुख विशेषतायें निम्न प्रकार हैं—
(1) 6-14 वर्ष तक के उम्र के सभी बच्चों को निःशुल्क व अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार होगा।
(2) 6-14 वर्ष तक के लगभग 22 करोड़ बच्चों में से 92 लाख यानि 4.6% अभी स्कूल नहीं जा पाते हैं जिनकी शिक्षा के लिए 1.71 लाख करोड़ रुपये की 5 वर्षों में जरूरत होगी जिसमें 25,000 करोड़ रुपये वित्त आयोग राज्यों को देगा।
(3) 6-14 वर्ष की आयु वर्ग के अशिक्षित और विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त नहीं कर पा रहे बालकों को चिन्हित करने का कार्य स्थानीय विद्यालय की प्रबन्ध समिति अथवा स्थानीय निकायों द्वारा किया जायेगा ।
(4) स्थानीय निकाय ही बालकों के चिन्हांकन के लिए परिवार स्तर पर सर्वेक्षण आयोजित करेगा। इस प्रकार के सर्वेक्षण नियमित रूप से आयोजित किये जायेंगे। इससे प्राथमिक शिक्षा से वंचित बालकों का चिन्हांकन करने में मदद मिलेगी।
(5) निजी क्षेत्र के प्रत्येक विद्यालय में 2% स्थान कमजोर वर्ग के विद्यार्थियों के लिए आरक्षित किए जा सकेंगे और उनमें वही शुल्क लिया जायेगा जो सरकारी विद्यालय के समकक्ष छात्रों से लिया जाता है।
(6) इन बच्चों को न स्कूल फीस देनी होगी, न ही यूनिफॉर्म, पुस्तकों, ट्रांसपोर्टेशन या मिड डे मील जैसी चीजों पर खर्च करना होगा ।
(7) बच्चों को न तो अगली कक्षा में पहुँचने से रोका जा जायेगा न निकाला, जायेगा और न ही बोर्ड परीक्षा पास करना अनिवार्य होगा।
(8) कोई स्कूल बच्चों को प्रवेश देने से इन्कार नहीं कर सकेगा।
(9) सभी निजी स्कूलों में पहली कक्षा में नामांकन के दौरान कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए 25% सीटें आरक्षित होगी ।
अधिनियम की प्रमुख चुनौतियाँ—
(1) शिक्षा का अधिकार 1 अप्रैल, 2010 में लागू हुआ परन्तु इसे पूर्ण रूप से गति प्रदान करने के लिए अभी लम्बी दूरी तय करनी बाकी है।
(2) इस अधिनियम को लागू करने के लिए विशाल धन राशि की आवश्यकता है। इन खर्चों का बँटवारा राज्य व केन्द्र सरकारों के बीच किया गया है। इन खर्चों में 55% केन्द्र तथा 45% राज्य सरकार के पक्ष में आया है जिसमें केन्द्र सरकार ने 25,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। अगले 5 वर्षों में 1,71,000 करोड़ रुपये तक के खर्चे का अनुमान लगाया गया है।
(3) केन्द्र ने शिक्षा के अधिकार कानून का पालन करने के लिए एक शैक्षिक ढांचे का निर्माण किया है। इस शैक्षिक ढाँचे के आधार पर ही प्रत्येक राज्य और संघ शासित क्षेत्र दिशा-निर्देश तैयार करेंगे। इसमें काफी समय लग जायेगा ।
(4) शिक्षा के अधिकार के लिए पहले देशभर में प्राथमिक शिक्षा में मजबूत इन्फ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता है। कानून में बच्चों को अपने घर से 3 किमी. के दायरे में स्कूल देने का प्रावधान है। यदि स्कूल इससे दूर होगा तो बच्चों को लाने व ले जाने की निःशुल्क व्यवस्था राज्य सरकार द्वारा की जायेगी।
(5) नये स्कूल खोलने से पहले राज्य सरकार को स्थानीय निकायों की सहायता से यह पता लगाना होगा कि 6-14 वर्ष के कितने बच्चे हैं जो शिक्षा नहीं ग्रहण कर रहे हैं। उनकी एक सूची तैयार करना और यह पता लगाना कि वे किस वर्ग के हैं। यदि वे पिछड़ी जाति के हो तो उनकी एक अलग सूची तैयार करना, इस काम में बहुत अधिक समय लगेगा।
(6) शिक्षा के अधिकार को लागू करने के लिए बड़े स्तर पर प्राइमरी शिक्षकों की भर्ती होगी। अभी देश में प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी को पूरा करने के लिए राज्य स्तर पर भर्ती प्रक्रिया चरण बद्ध रूप से चल रही है ।
(7) निजी स्कूलों की 25% सीटें पिछड़े वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षित किये जाने का भी प्रावधान किया गया है। राज्य सरकारें सरकारी स्कूल से तुलना कर इन बच्चों को खर्च देगी परन्तु इसमें भी विवाद है क्योंकि कुछ स्कूलों का कहना है कि वे ज्यादा सुविधायें देते हैं तो उन्हें ज्यादा पैसा दिया जाए।
इसके अतिरिक्त और भी अन्य समस्यायें हैं; जैसे— संसाधनों की उपलब्धता । इस कानून के पारित होते ही राज्य सरकारों ने इसे खर्चों को वहन करने में अपनी असमर्थता को व्यक्त करना प्रारम्भ कर दिया। तब यह घोषणा की गई कि जब तक भारत सरकार इसके खर्चों को वहन करने में सहायता नहीं करेगी तब तक इसे लागू करना असम्भव है। परन्तु ऐसा नहीं है कि यह नियम लागू होने के बाद शिक्षा व्यवस्था में सुधार न आया हो। कई क्षेत्रों में इसके लागू होने के अच्छे परिणाम दिखने लगे हैं ।
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