शिक्षक का शाब्दिक व अशाब्दिक के अधिकार को किस प्रकार प्रभावित करता है ? स्पष्ट कीजिए।
शिक्षक का शाब्दिक व अशाब्दिक के अधिकार को किस प्रकार प्रभावित करता है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर— शाब्दिक व्यवहार–शिक्षक तथा छात्र कक्षा में बोलकर अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं, वाद-विवाद करते हैं उसे शाब्दिक व्यवहार कहते हैं। शाब्दिक व्यवहार में अभिव्यक्ति मौखिक, लिखित तथा चिह्नों के रूप में की जाती है। शिक्षक व्यवहार में शाब्दिकव्यवहार की प्रधानता रहती है।
स्किनर (1957) ने शाब्दिक व्यवहार की व्याख्या व्यापक रूप में की है। उन्होंने शाब्दिक व्यवहार के अन्तर्गत उन सभी प्रकार की अनुक्रियाओं को सम्मिलित किया है, जो किसी भी प्रकार का प्रभाव दूसरों पर डालती हैं। स्किनर की धारणा यह है कि जो अनुक्रिया प्रभावित करती है वह अधिक ग्राह्य होती है। कथन शाब्दिक व्यवहार का अंश मात्र है। उनके विचार से हाथ तथा मुख की क्रियाओं को शाब्दिकव्यवहार मानते हैं, यद्यपि इस प्रकार की क्रियाओं से किसी प्रकार के मौलिक भावों तथा विचारों की अभिव्यक्ति नहीं होती है। शिक्षक अपने शिक्षण में तीन प्रकार के शाब्दिक व्यवहारों का प्रयोग करता है—
(1) प्रथम प्रकार के शाब्दिक व्यवहार में शिक्षक की वे सभी सम्मिलित की जाती हैं जो बौद्धिक स्तर से सम्मिलित होती है। क्रियायें जैसे- व्याख्यान देना, परिभाषा देना, व्याख्या करना, स्पष्टीकरण करना आदि ।
(2) द्वितीय प्रकार के शाब्दिक व्यवहार में शिक्षक की वे सभी क्रियायें आती हैं जो भावात्मक- स्तर से सम्बन्धित होती है। जैसेप्रशंसा करना, भावनाओं तथा विचारों की स्वीकृति देना, आलोचना करना, परामर्श देना, छात्रों की क्रियाओं के लिये स्वतंत्रता देना आदि । कक्षा अन्तः क्रिया में इस प्रकार के शाब्दिक व्यवहार का विशेष महत्त्व होता है।बौद्धिक स्तर के लिये भी इसकी आवश्यकता होती है। संवेगात्मक- स्तर की ओर बढ़ना अधिक प्रभावशाली होता है ।
(3) तृतीय प्रकार के शाब्दिक व्यवहार में शिक्षक की वे सभी क्रियायें सम्मिलित की जाती है जो क्रियात्मक-स्तर से सम्बन्धित होती है। जैसे निर्देश देना, प्रदर्शन करना, प्रयोग कैसे करें, किस प्रकार लिखें, बोले पढ़े आदि ।
अशाब्दिक व्यवहार–शिक्षक व्यवहार में अधिकांश क्रियायें शाब्दिक व्यवहार से ही की जाती है। शिक्षक को कक्षा में अशाब्दिकव्यवहार भी करना होता है। इनमें शिक्षक अपने हाव-भाव तथा संकेतों की सहायता से छात्रों को कोई काम करने अथवा न करने के लिये दिशा प्रदान करता है। शिक्षक अपने भावों को अपने चेहरे की अनुक्रियाओं से व्यक्त करता है। छात्रों को प्रोत्साहित करने के लिये सिर हिलाना, छात्रों को शान्त करने के लिये मुँह पर अंगुली रखना, प्रेरणा देने के लिये मुस्कराना, छात्रों की गलत क्रियाओं को रोकने के लिए घूर कर देखना, आँखें दिखाना, कक्षा का नियंत्रण प्रभावशाली शिक्षक आँख से करता है। मुखाकृति से भी छात्रों को सही क्रियाओं को प्रोत्साहित करता है तथा गलत क्रियाओं को रोकता भी है। अधिकांश निर्देश अशाब्दिक-व्यवहार से ही दिये जाते हैं। किन्हीं विशेष परिस्थिति एवं संदर्भ में विचारों का भी आदान-प्रदान होता है ।
अशाब्दिक-व्यवहार साधारणत: शाब्दिक- व्यवहार को प्रभावशाली बनाता है। किन्हीं परिस्थितियों को प्रभावहीन भी करता है । अशाब्दिकव्यवहार अधिक प्रभावशाली होता है। छात्रों पर इनके द्वारा शिक्षक अपनी गहरी छाप छोड़ता है। कक्षा-शिक्षण की प्रधानता रहती है । शाब्दिकव्यवहार तथा अशाब्दिक व्यवहार का सह- सम्बन्ध सार्थक होता है । शाब्दिक- व्यवहार, शिक्षक- व्यवहार का सही प्रतिनिधित्व करता है । शाब्दिक – व्यवहार के निरीक्षण से ही शिक्षक व्यवहार के सम्बन्ध में सामान्यीकरण कर लिया जाता है । अशाब्दिक व्यवहार के निरीक्षण के लिये भी विदआल की प्रविधि अधिक प्रचलित है । ऐसीडान ने भी अशाब्दिक-व्यवहार के निरीक्षण की प्रविधि का विकास किया है।
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