शिक्षा मनोविज्ञान को परिभाषित कीजिए। शिक्षक के लिए मनोविज्ञान क्यों उपयोगी है ?
शिक्षा मनोविज्ञान को परिभाषित कीजिए। शिक्षक के लिए मनोविज्ञान क्यों उपयोगी है ?
उत्तर— शिक्षा मनोविज्ञान (Educational Psychology ) शिक्षा मनोविज्ञान, ‘शिक्षा’ एवं ‘मनोविज्ञान’ नामक दो अलग-अलग विषयों का योग है जिसका शाब्दिक अर्थ है, ‘शिक्षा सम्बन्धी मनोविज्ञान’ । शिक्षा मनोविज्ञान का सम्मिलित व वास्तविक अर्थ जानने के लिए शिक्षा एवं मनोविज्ञान को पहले समझना होगा । शिक्षा अंग्रेजी भाषा के Education शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है जो लैटिन भाषा के Educare शब्द से बना है जिसका शाब्दिक अभिप्राय ‘सामने लाना’, ‘बाहर निकालना’ या ‘विकास करना’ है । मनोविज्ञान अंग्रेजी भाषा के Psychology शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है जो लैटिन भाषा के दो शब्दों ‘Psycho’ एवं ‘Logos’ से मिलकर बना है। ‘Psycho’ का अर्थ है ‘आत्मा’ तथा “Logos” का अर्थ है ‘ अध्ययन करना’ या ‘विज्ञान’। इस प्रकार मनोविज्ञान का शाब्दिक अर्थ ‘ आत्मा के विज्ञान’ से है ।
जेम्स ड्रेवर के अनुसार, “शिक्षा मनोविज्ञान व्यावहारिक मनोविज्ञान की वह शखा है जो शिक्षा में मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों तथा खोजों के प्रयोग के साथ ही शिक्षा की समस्याओं के मनोवैज्ञानिक अध्ययन से सम्बन्धित है।”
स्वारे व टेलफोर्ड के अनुसार, “शिक्षा मनोविज्ञान का मुख्य सम्बन्ध सीखने से है। यह मनोविज्ञान का वह अंग है, जो शिक्षा के मनोवैज्ञानिक पहलुओं की वैज्ञानिक खोज से विशेष रूप से सम्बन्धित
कॉलसेनिक के अनुसार, “मनोविज्ञान के अनुसंधानों व सिद्धान्तों का शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग ही शिक्षा मनोविज्ञान है। “
क्रो क़ो और क्रो के अनुसार, “शिक्षा मनोविज्ञान व्यक्ति के जन्म से वृद्धावस्था तक सीखने के अनुभवों का वर्णन और व्याख्या करता है।’
स्टीफन के अनुसार, “शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षणिक विकास का क्रमबद्ध अध्ययन है।”
शिक्षक के लिए मनोविज्ञान की उपयोगिता–”संस्कृति को समझने के लिये शिक्षकों के द्वारा छात्रों को समझने की आवश्यकता है और उन्हें छात्रों के पथ-प्रदर्शकों के रूप में अपने को समझने की आवश्यकता है। इस प्रकार के अवबोध में मनोविज्ञान बहुत योग दे सकता है। “
स्किनर के शब्दों से ही स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षक के लिये मनोविज्ञान का ज्ञान बहुत आवश्यक, उपयोगी और महत्त्वपूर्ण है।
(1) बालक के विकास का ज्ञान– विभिन्न अवस्थाओं जैसे बाल्यावस्था किशोरावस्था में बालक के विकास की विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए अध्ययन कार्य को कराने का प्रयास कर सकता है।
(2) बालक की आवश्यकता का ज्ञान– शिक्षक बालक की आवश्यकताओं जैसे प्रेम, आजादी, सम्मान आदि अनेक आवश्यकताओं को समझ कर बालक से उसी के अनुसार कार्य करवा सकता है व उसे शिक्षण हेतु प्रेरित कर सकता है।
(3) अनुशासन में सहायक– शिक्षा मनोविज्ञान द्वारा अध्यापक को अनुशासन स्थापित करने की अनेक विधियों का ज्ञान प्राप्त होता है ।
(4) बालकों की मूल प्रवृत्तियों का ज्ञान– बालक के व्यवहार में उसकी मूल प्रवृत्तियों की भूमिका होती है। अध्यापक उनकी मूल प्रवृत्तियों का ज्ञान प्राप्त कर उनको सही दिशा में मार्गान्तरीकरण कर सकता है।
(5) बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ज्ञान– कक्षा में भिन्न-भिन्न रुचियों, योग्यताओं, आवश्यकताओं वाले छात्र होते हैं अध्यापक के लिये यह आवश्यक हो जाता है कि वह उन्हें ध्यान में रखते हुए शिक्षण कार्य करवायें जिससे उसे सफलता प्राप्त हो सके ।
(6) कक्षा व विद्यालयी समस्याओं का समाधान– बाल – अपराध, पिछड़े बालक, अनुशासनहीनता, समस्या बालक आदि बालकों के व्यवहार को समझकर उनकी समस्या के कारणों को जानने हेतु विभिन्न विधियों जैसे केस स्टडी आदि कर इन कारणों को दूर कर समाधान प्राप्त करने में सहायक।
(7) बालकों का चरित्र, नैतिकता या सर्वांगीण विकास–शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षक को बालक के सर्वांगीण विकास में सहायक विधियों की जानकारी प्रदान करता है।
(8) प्रभावी शिक्षण विधियों का प्रयोग– अध्यापक छात्रों की योग्यता, रुचि व आवश्यकता के अनुसार उचित व प्रभावी शिक्षण विधियों का प्रयोग कर सकता है।
(9) मूल्यांकन की विधियों का ज्ञान– छात्रों की प्रगति के ज्ञान व स्वयं की सफलता को ज्ञात करने के लिये मनोविज्ञान से मूल्यांकन की अनेक विधियों का ज्ञान प्राप्त करता है ।
(10) बाल स्वभाव, व्यवहार व छात्रों का ज्ञान– शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन से बालक के स्वभाव, व्यवहार व स्तर आदि समस्त बातों का ज्ञान प्राप्त हो जाता है जिससे शिक्षक अपने कर्त्तव्यों का कुशलता से ज्ञान प्राप्त कर लेता है।
(11) पाठ्यक्रम का निर्माण— बालक के विकास की अवस्थाओं के अनुसार परिवर्तित होने वाली रुचियों, प्रवृत्तियों और आवश्यकताओं आदि को ध्यान में रखते हुए विभिन्न अवस्थाओं के बालकों के लिये उपयोगी पाठ्यक्रम का निर्माण करने में मनोविज्ञान सहायता देता है।
अतः शिक्षा मनोविज्ञान न केवल कक्षागत शिक्षण अपितु समाज में व्याप्त शैक्षिक समस्याओं के समाधान को भी बताता है।
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