विद्यालय में आयोजित की जाने वाली विभिन्न पाठ्य सहगामी क्रियाओं का वर्णन कीजिए।

विद्यालय में आयोजित की जाने वाली विभिन्न पाठ्य सहगामी क्रियाओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर— विद्यालय में पाठ्य सहगामी प्रवृत्तियाँ— पाठ्य सहगामी प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं, जिनका वर्णन इस प्रकार हैं—
(1) छात्र परिषद–छात्र परिषद आज प्रायः प्रत्येक विद्यालय में पायी जाती है। किसी विद्यालय में यह बाल सभा कहलाती है तो कहीं यह शिक्षा परिषद्, छात्र संघ विद्यालय सभा अथवा अन्य किसी नाम से। इस सहगामी क्रिया का मुख्य उद्देश्य विद्यालय में स्वशासन लाना है। यदि विद्यालय में छात्र-परिषद होती है तो विद्यालय में अनेक कार्यों में छात्रों का सक्रिय सहयोग प्राप्त किया जा सकता है।
(2) विद्यालय पत्रिका प्रकाशन–विद्यालय की पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं में दूसरी प्रमुख प्रकृति विद्यालय पत्रिका का प्रकाशन है। विद्यालयों में पत्रिकाओं का प्रकाशन कई आधारों पर किया जा सकता है। समय के हिसाब से पत्रिकाओं का प्रकाशन मासिक, त्रैमासिक, अर्द्धवार्षिक हो सकता है। स्तर के आधार पर पत्रिकाएँ, कक्षा-पत्रिका, विभाग पत्रिका तथा सम्पूर्ण विद्यालय पत्रिका हो सकती है।
(3) शैक्षिक भ्रमण–शैक्षिक भ्रमण से तात्पर्य उन छोटी-छोटी यात्राओं से हैं जो स्थानीय संस्थाओं; जैसे—उद्योग संगठन, ऐतिहासिक स्थल, व्यावसायिक संगठन, धार्मिक तथा सांस्कृतिक स्थान तथा सामाजिक उत्सवों को देखने के लिए की जाती है। इस प्रकार के भ्रमणों का बहुत ही अधिक शैक्षिक महत्त्व है ।
शैक्षिक भ्रमण बालकों को वास्तविक ज्ञान प्रदान करते हैं । भ्रमण से वे किसी वस्तु को उसके वास्तविक रूप में अपनी आँखों से देखते हैं। इससे उन्हें जो ज्ञान प्राप्त होता है वह अधिक स्थायी होता है ।
(4) समाज-सेवा क्रियाएँ–विद्यालय में पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं में कुछ ऐसी क्रियाएँ भी होती हैं जो बालकों में समाज सेवा की भावना का विकास करती हैं। इस प्रकार की क्रियाओं में निम्नांकित क्रियाएँ प्रमुख हैं—
(i) जूनियर रेडक्रास–रेडक्रास एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था है जिसकी विद्यालयों में पायी जाने वाली शाखा जूनियर रेडक्रास कहलाती है। पारस्परिक सहयोग सहिष्णुता, सहानुभूति, भ्रातृत्व भाव जैसे मानवीय गुणों का विकास करने के लिए जूनियर रेडक्रास जैसे क्रियाएँ बड़ी लाभदायक रहती हैं। रेडक्रास से बालकों में समाज सेवा का भाव पैदा होता है वे अपने तथा समाज के स्वास्थ्य के प्रति सजग रहते हैं उन्हें सामूहिक आरोग्य सम्बन्धी बातों का ज्ञान प्राप्त होता है।
(ii) बालचर तथा गर्लगाइड–बालचर (Scouting) को सर राबर्ट बेडेन पावेल ने जन्म दिया। बालचर के सम्बन्ध में सर पावेल अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखते हैं कि ‘स्काउटिंग’ एक प्रकार का खेल है जिसमें सभी भाई मिलकर अवकाश के समय एक ऐसा सत्संग करते हैं जिसमें बड़े भाई अपने छोटे भाइयों को जीवनोपयोगी व्यावहारिक शिक्षा प्रदान करते हैं। बालचर के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए माध्यमिक शिक्षा आयोग ने लिखा है कि चरित्र एवं सुनागरिक गुणों का विकास करने का बालचर सर्वोत्तम साधन है।
(iii) एन.सी.सी. तथा ए.सी.सी.–कुछ समय पूर्व देश के विद्यालयों में एन.सी.सी. तथा ए.सी.सी. सेवाएँ प्रारम्भ की गई । इन सेवाओं के प्रारम्भ के पीछे निम्नलिखित उद्देश्य निहित हैं—
(1) शारीरिक श्रम के प्रति समुचित दृष्टिकोण का विकास करना ।
(2) देश रक्षा की दूसरी पंक्ति तैयार करना ।
(3) छात्रों का चारित्रिक, मानसिक तथा शारीरिक विकास करना ।
(4) देशप्रेम की भावना का विकास करना।
(5) अनुशासन तथा आत्मविश्वास का विकास करना।
(iv) समाज-सेवा शिविर–छात्रों में सामाजिकता का विकास करने के लिए प्रकार के शिविरों का आयोजन किया जाता है। इससे लाभ हैं—
(a) शारीरिक श्रम के प्रति उचित दृष्टिकोण का विकास।
(b) छात्र समाज की समस्याओं तथा रीति-रिवाजों से परिचित होते हैं ।
(c) विद्यालय एवं समाज एक-दूसरे के निकट आते हैं।
(5) खेल-कूद–बालकों के लिए अनेक प्रकार की शारीरिक क्रियाएँ आवश्यक हैं। बालक स्वभाव से शान्त नहीं बैठ सकता है। वह गहन मानसिक चिन्तन नहीं कर सकता है और लम्बे समय तक पढ़ भी नहीं सकता है। किन्तु उसमें अतिरिक्त शारीरिक शक्ति होती है जिसके कारण वह कई शारीरिक क्रियाएँ करता रहता है। खेल न केवल शारीरिक दृष्टि से ही आवश्यक हैं वरन् इनके बौद्धिक सामाजिक महत्त्व भी है ।
(6) प्रिय कार्य–प्रियकार्य विद्यालय कार्यों से भिन्न होते हैं, किन्तु इनका शैक्षिक महत्त्व इतना अधिक है कि कोई भी विद्यालय इनकी अवहेलना नहीं कर सकता है। प्रिय कार्यों से हमारा तात्पर्य ऐसे कार्यों से है, जिनमें हमारी रुचि होती है, किन्तु उनका आर्थिक पक्ष नहीं होता है। यह कार्य केवल आनन्द प्राप्ति तथा समय व्यतीत करने की दृष्टि से किये जाते हैं ।
(7) साहित्यिक क्रियाएँ–विद्यालय में कुछ सहगामी क्रियाओं के रूप में साहित्यिक क्रियाएँ भी करायी जा सकती हैं। साहित्यिक क्रियाओं में भाषण, निबन्ध लेखन, वाद-विवाद, नाट्याभिनय, कविता पाठ, साहित्य प्रतियोगिताओं आदि का आयोजन किया जा सकता है। इनमें से वाद-विवाद तथा नाट्याभिनय का वर्णन किया जा रहा है—
(i) वाद-विवाद–विद्यालय में छात्रों के लिए वाद-विवाद सभा का होना बड़ा उपयोगी होता है। वाद-विवाद प्रतियोगिताएँ छात्रों में तर्क तथा चिन्तन करने की शक्ति का विकास करती हैं। इससे छात्रों में समस्या समाधान शक्ति का विकास होता है। वे अपने विचारों को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करने की क्षमता का निर्माण करते हैं तथा दूसरे के विचारों को ध्यानपूर्वक सुनकर ग्रहण करने की शक्ति विकसित होती है। इन प्रतियोगिताओं से छात्रों की भाषण कला का विकास होता है, वे समूह में बोलना तथा व्यवहार करना सीखते हैं। इनसे छात्रों के ज्ञान में वृद्धि होती है, उनके उच्चारण में शुद्धता आती है तथा स्वास्थ्य की आदत का निर्माण होता है। वाद-विवाद में भाग लेने में वे अध्ययन करते हैं। उनमें संकोच तथा दब्बूपन की आदत का निवारण होता है।
(ii) नाट्याभिनय–विद्यालय में कभी-कभी नाटकों की भी व्यवस्था करना अच्छा रहता है। इससे न केवल छात्रों का मनोरंजन ही होता है वरन् उन्हें सामाजिकता का प्रशिक्षण भी मिलता है। इससे इतिहास की घटनाओं, सामाजिक अवस्था तथा आर्थिक स्थिति का आभास होता है। इनसे भाषाशैली परिमार्जित होती है। छात्र सामूहिक व्यवहार करना सीखते हैं। इनसे चिन्तन तथा तर्कशक्ति का विकास होता है तथा प्रचार कार्य में सफलता मिलती है।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *