पैनल परिचर्चा के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए इसकी उपयोगिता बताइये तथा इसके विभिन्न सोपानों का उल्लेख कीजिए ।

पैनल परिचर्चा के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए इसकी उपयोगिता बताइये तथा इसके विभिन्न सोपानों का उल्लेख कीजिए । 

उत्तर— पैनल वाद-विवाद का स्वरूप― पैनल वाद-विवाद में चार प्रकार की भूमिकाएँ निभानी पड़ती हैं। ये चारों भूमिकाएँ इस प्रकार की हैं—
(1) अनुदेशक– अनुदेशक वाद-विवाद की सम्पूर्ण व्यवस्था करता है। वह इसका पूर्वाभ्यास भी कराता है।
(2) अध्यक्ष– अध्यक्ष की भूमिका वाद-विवाद के समय होती है । यह वाद-विवाद का संचालन करता है। उसको प्रकरण के सम्बन्ध में विशेषज्ञ होना चाहिए।
(3) समूह के सदस्य– इनकी संख्या 4 से 10 तक होती है। ये सदस्य अर्द्ध- गोलाकार स्थिति में अपना स्थान ग्रहण करते हैं। इनके मध्य में अध्यक्ष का स्थान होता है। ये सदस्य प्रकरण के विभिन्न बिन्दुओं पर प्रतिक्रिया करते हैं ।
(4) श्रोतागण– श्रोतागण वाद-विवाद की समाप्ति पर प्रश्न पूछते हैं और अपना दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करते हैं। सदस्यगण उनके प्रश्नों के उत्तर देते हैं । अन्त में अध्यक्ष वाद-विवाद के निष्कर्षों को संक्षेप में प्रस्तुत करता है ।
पैनल वाद-विवाद का उपयोग—
(1) इसमें सामाजिक अधिगम को अधिक प्रोत्साहन मिलता है ।
(2) इसके द्वारा पाठ्य-वस्तु के बोधगम्य के साथ आत्मसात् के लिए अवसर प्रदान किया जाता है ।
(3) शैक्षिक वाद-विवाद के द्वारा छात्रों में भाग लेने के तरीकों को सीखने तथा अनुकरण करने का अवसर प्रदान किया जाता है ।
(4) इसके द्वारा छात्रों के ज्ञान की वृद्धि की जाती है। साथ ही उसमें समस्या समाधान, तर्कशक्ति, आलोचना करने की क्षमताओं का विकास किया जाता है ।
(5) इसके द्वारा छात्रों में दूसरों के विचारों के प्रति सम्मान की प्रवृत्ति का विकास किया जाता है।
पैनल परिचर्चा के सोपान– इसके माध्यम से कई जटिल एवं गूढ़ विषयों का सम्यक् विश्लेषण, अवबोध एवं मूल्यांकन होता है। परिचर्चा में भाग लेने वाले सभी छात्र एवं शिक्षक तल्लीनता के साथ हर मुद्दे पर विचार करते हैं और अपना मत व्यक्त करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी बात रखने की पूर्ण स्वतंत्रता रहती है, इस तरह सबकी राय को ध्यान में रखते हुए बहुमत के आधार पर विषय या समस्या के संदर्भ में निर्णय लिये जाते हैं। भिन्न मत रखने वाले व्यक्तियों के सुझाव या असहमति को अंकित कर लिया जाता है। अल्पमत रखने वाले सहभागियों के प्रति कोई भेदभाव नहीं किया जाता। इसलिये परिचर्चा को मूलतः लोकतांत्रिक व्यवस्था का लघुरूप कहा जाता है।

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