शिल्प- केन्द्रित पाठ्यक्रम क्या है ? इस पाठ्यक्रम की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। इसके दोष भी बताइये।
शिल्प- केन्द्रित पाठ्यक्रम क्या है ? इस पाठ्यक्रम की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। इसके दोष भी बताइये।
उत्तर— कार्य आधारित पाठ्यक्रम की यह नवीनतम अवधारणा है। इस धारणा के अनुसार पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिये जिसमें कुछ सैद्धान्तिक विषय पढ़ने हेतु हों, कुछ क्रियाएँ हों तथा किसी एक केन्द्रीय. कार्य पर आधारित हों। इसी अवधारणा के आधार पर कोठारी आयोग (1966) ने अपने द्वारा प्रस्तुत पाठ्यक्रम में कार्यानुभव को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया था। कार्य-आधारित पाठ्यक्रम में विभिन्न विषयों, क्रियाओं तथा कार्य को इस प्रकार से व्यवस्थित तथा संगठित किया जाता है कि छात्र निर्धारित शैक्षिक साध्यों तथा लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें।
इस प्रकार के पाठ्यक्रम में केन्द्रीय कार्य को शिक्षा का प्रमुख केन्द्र बिन्दु माना जाता है तथा सभी विषयों तथा क्रियाओं की शिक्षा उसी केन्द्रीय कार्य को आधार बनाकर दी जाती है। कार्य-आधारित पाठ्यक्रम में सैद्धान्तिक विषयों की अपेक्षा कार्य तथा क्रियाओं को अधिक महत्त्व दिया जाता है। बालक अपने शिक्षा – जीवन में किसी कार्य को करतेकरते शिक्षा के अन्त तक उस कार्य में सिद्धहस्त होकर स्वावलम्बी बन सकता है। इस प्रकार कार्य-आधारित पाठ्यक्रम छात्र को सैद्धान्तिक ज्ञान देने के साथ ही व्यावहारिक तथा जीवनोपयोगी ज्ञान भी देता है जिससे बालक अपने पैरों पर खड़ा हो सकने में सक्षम होता है तथा समाज के साथ स्वस्थ समन्वय स्थापित करता है ।
महात्मा गाँधी ने अपनी बुनियादी शिक्षा कार्य आधारित पाठ्यक्रम पर ही आधारित की थी, जिसमें प्रत्येक बुनियादी विद्यालय में एक केन्द्रीय क्रिया की व्यवस्था करनी पड़ती थी तथा बालक उस क्रिया को करते हुए ही अपनी सम्पूर्ण शिक्षा प्राप्त करता था। महात्मा गाँधी की शिक्षा-व्यवस्था में सम्पूर्ण शिक्षा किसी-न-किसी दस्तकारी से जुड़ी थी । रस्सी बनाना, साबुन बनाना, तेल निकालना, गुड़ बनाना, सूत कातना आदि कुछ ऐसी क्रियाएँ थीं जो बुनियादी शिक्षा व्यवस्था में रखी गई थीं। इनसे शरीर मन तथा आत्मा की शिक्षा दी जाती थी। महात्मा गाँधी के समान ही विश्व के कुछ अन्य राष्ट्रों में भी इसी प्रकार की शिक्षाव्यवस्थाएँ प्रारम्भ की गयीं ।
शिल्प-केन्द्रित पाठ्यक्रम के गुण-शिल्प- केन्द्रित पाठ्यक्रम में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं—
(1) यह पाठ्यक्रम अपेक्षाकृत अधिक मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित है।
(2) इसमें बालक शारीरिक श्रम एवं कार्य के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करता है।
(3) भावी जीवन की तैयारी कराता है।
(4) यह विद्यालय को स्वावलम्बी तथा आत्मनिर्भर बनाता है।
(5) इसमें प्रयोगों पर अधिक बल दिया जाता है।
(6) यह युवकों की बेरोजगारी की समस्या का समाधान करता
(7) इससे सृजनात्मकता तथा रचनात्मकता का विकास संभव है।
(8) यह बालक में सामाजिक एवं प्रजातांत्रिक गुणों का विकास करता है।
(9) यह व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र की आर्थिक उन्नति में सहायक है ।
(10) यह करके सीखने के कारण अर्जित ज्ञान स्थायी तथा अधिक प्रभावी होता है।
शिल्पकेन्द्रित पाठ्यक्रम के दोष—
(1) इसकी व्यवस्था आर्थिक रूप से सम्पन्न विद्यालय ही कर सकते हैं।
(2) यह शिक्षा के उच्चस्तरीय आदर्शों को गिरा देता है। इसके अनुसार शिक्षा केवल भौतिक उन्नति का साधन मात्र रह जाती है।
(3) यह पाठ्यक्रम सभी विषयों को समान महत्त्व प्रदान नहीं कर पाता है।
(4) क्रियाशीलता के कारण सैद्धान्तिक विषयों की उपेक्षा हो जाती है ।
(5) इसमें अति क्रियाशीलता का भी भय रहता है।
(6) यह आध्यात्मिक पक्ष की उपेक्षा करता है।
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