सामाजिक विज्ञान में स्रोत विधि क्या है ?
सामाजिक विज्ञान में स्रोत विधि क्या है ?
उत्तर— स्रोत विधि सामाजिक विज्ञान वर्ग के मूल विषयों के अध्यापन की दृष्टि से अधिक उपयोगी है। इस विधि का अधिकतम उपयोग इतिहास के अध्यापन में होता है। मूलत: यह अनुसंधान विधि का ही एक सरलीकृत रूप है।
स्रोत विधि से तात्पर्य–स्रोत से तात्पर्य ज्ञान एवं सूचनाओं के उस मूल से हैं, जो किसी व्यक्ति या घटना से समय तथा स्थान आदि की दृष्टि से सीधा सम्बन्धित होने के कारण उस व्यक्ति अथवा स्थान के सम्बन्ध में प्रामाणिक जानकारी दे सकने की क्षमता रखता है।
स्रोत–स्रोत विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं, जैसे—
(1) ताम्रपत्र एवं शिलालेख, सिक्के आदि।
(2) व्यक्ति विशेष द्वारा लिखी गई जीवनी, जैसे—तुजके बाबरी, जहाँगीरनामा आदि ।
(3) समकालीन व्यक्ति द्वारा आँखों देखी अथवा सुनी बातों के आधार पर लिखित जीवनी या घटना वर्णन जैसेअकबरनामा, आइने-अकबरी आदि ।
(4) तत्कालीन पत्र, फर्मान, आदेश।
(5) यात्रियों के वर्णन जैसे—मार्कोपोलो, फाह्यान आदि के यात्रा वर्णन।
(6) गुहाओं में मिले भित्ति-चित्र, पाषाणकालीन औजार आदि।
(7) पुरातात्विक खुदाई के परिणामस्वरूप निकले भवनों के अवशेष, पात्र, औजार, कंकाल अवशेष आदि ।
(8) खोजकर्त्ताओं की दैनन्दिनी और स्वयं या साथी यात्री द्वारा लिखा गया वर्णन, जैसे– केप्टिन स्टॉक, नेल्सन आदि की डायरी ।
(9) यात्रियों द्वारा प्रस्तुत भौगोलिक वर्णन, जैसे–लिविंगस्टन, स्टेन्ले आदि द्वारा लिखे गये वर्णन |
(10) यात्रियों द्वारा या अन्य सर्वेक्षणकर्त्ताओं द्वारा संकलित तापक्रम, वर्षा आँकड़ें एवं उपज आदि के नमूने, उनके फोटो बनाए गए स्केच तथा अन्य लोगों द्वारा वेधशालाओं में संकलित आँकड़ें।
उपर्युक्त सभी साधन मूल स्रोतों की श्रेणी में आते हैं, कारण कि इनके माध्यम से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में तत्कालीन अथवा सम्बन्धित स्थान की प्रामाणिक जानकारी प्राप्त होती है।
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