1857 के विद्रोह में कुंवर सिंह की भूमिका का मूल्यांकन करें।

1857 के विद्रोह में कुंवर सिंह की भूमिका का मूल्यांकन करें।

( 43वीं BPSC / 2001 )

अथवा
1857 के विद्रोह में कुंवर सिंह के बिहार तथा अन्य क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका का मूल्यांकन करें।
> दानापुर से सैनिकों के आरा पहुंचने पर कुंवर सिंह ने नेतृत्व स्वीकार करते हुए विद्रोह प्रारंभ किया।
> स्वयं को आरा का शासक घोषित किया एवं कैप्टन डानवर को हराया।
> वीसेन्ट आयर के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना की जीत एवं कुंवर सिंह ने आरा छोड़ा।
> लखनऊ पहुंचे जहां अवध के दरबार से उन्हें सम्मान एवं सहयोग मिला।
> कानपुर एवं आजमगढ़ में अंग्रेजों को हराया।
> अप्रैल 1858 को कैप्टन ली ग्रांड के नेतृत्व में आई ब्रिटिश सेना को हराया।
>  कुछ दिनों बाद वीरगति को प्राप्त हुए ।
उत्तर– 1857 के विद्रोह का नाम आते ही बाबू कुंवर सिंह का नाम मन में कौंधता है और एक बूढ़े परंतु अदम्य साहसी एवं उत्साही सेनानी का चित्र उभरता है। बिहार में जमींदारों एवं सामंतों के विरुद्ध अंग्रेजों द्वारा अपनायी गयी नीति, 1857 में विद्रोह में जमींदारों की भूमिका का प्रमुख कारण रहा। विद्रोहियों के प्रमुख नेता एवं जगदीशपुर के जमींदार बाबू कुंवर सिंह को अंग्रेजों ने दिवालिएपन के कगार पर पहुंचा दिया था। इन बातों ने कुंवर सिंह को विद्रोही बना दिया। ऐसी स्थिति में जैसे ही 3 रेजीमेंटों के सैनिक ने दानापुर से आरा पहुंचकर कुंवर सिंह को अपना नेता बनाना चाहा, उन्होंने तुरंत नेतृत्व स्वीकार करते हुए विप्लव आरंभ कर दिया। कुंवर सिंह ने अपने सैनिकों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ाकर लगभग 10,000 कर ली और आरा पर अधिकार कर स्वयं को शासक घोषित कर दिया। आरा को मुक्त करवाने के लिए विलियम टेलर ने कैप्टन डानवर को आरा भेजा। घमासान युद्ध के बाद कैप्टन डानवर मारा गया जिससे कुंवर सिंह एवं उनके सैनिकों के हौसले बुलंद हो गए। लेकिन पुन: मेजर वीसेन्ट आयर के नेतृत्व में अंग्रेजों ने लड़ाई की जिसमें कुंवर सिंह की हार हुई और उन्हें आरा छोड़ना पड़ा। अंग्रेज आरा को कुंवर सिंह से मुक्त कराने में सफल रहे। इधर कुंवर सिंह लखनऊ पहुंचे एवं वहां से नाना साहब से मिलने पहुंचे एवं उनके साथ मिलकर कानपुर को जीतने में सहायता की। कानपुर से कुंवर सिंह आजमगढ़ की ओर बढ़े और आजमगढ़ को जीतने में सफलता प्राप्त की। अंग्रेज कुंवर सिंह की वीरता, साहस से परेशान हो गए थे। गवर्नर-जनरल लार्ड कैनिंग ने मार्क कीर तथा सर एडवर्ड लुगार्ड को कुंवर सिंह पर दबाव डालने एवं आजमगढ़ को मुक्त कराने के लिए भेजा। लेकिन कुंवर सिंह पुनः अंग्रेजों से दृढ़तापूर्वक लड़े तथा उन्हें हराया। कुंवर सिंह आजमगढ़ से अपने घर जगदीशपुर लौटकर पुनः उसे अपने अधिकार में लेना चाहते थे। कुंवर सिंह एवं कैप्टन ली ग्रांड की सेना में संघर्ष हुआ जिसमें कुंवर सिंह ने अंग्रेजी सेना को हराया परंतु खुद भी घायल हो गए। गंगा पार करते समय हाथ में गोली लग गई थी जिसे उन्होंने काट कर गंगा में फेंक दिया। यह उनके अदम्य साहस एवं सहनशीलता को प्रदर्शित करता है। वे वीरगति को प्राप्त हुए।
संघर्ष के क्रम को उनके भाई अमर सिंह ने आगे बढ़ाया परंतु संघर्ष ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका एवं महारानी विक्टोरिया द्वारा क्षमादान की घोषणा के बाद ही इस क्षेत्र में विद्रोहियों ने हथियार डाले। 1859 तक ब्रिटिश सत्ता की बहाली न केवल बिहार, बल्कि सारे देश में हो चुकी थी।
लेकिन 1857 के इस महासंग्राम ने सारे देश में एक नई परिस्थिति को जन्म दिया। कंपनी के शासन का अंत हुआ और भारत का शासन इंग्लैंड की सरकार के प्रत्यक्ष नियंत्रण में आ गया। इसके अनेक दूरगामी प्रभाव उत्पन्न हुए जिससे बिहार सहित पूरा देश प्रभावित हुआ।
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