बिहार अपनी घरेलू, कृषि तथा औद्योगिक संबंधी आवश्यकताओं के लिए जल संसाधनों का उपयोग युक्तिसंगत ढंग से नहीं कर रहा है। समीक्षा कीजिए |

बिहार अपनी घरेलू, कृषि तथा औद्योगिक संबंधी आवश्यकताओं के लिए जल संसाधनों का उपयोग युक्तिसंगत ढंग से नहीं कर रहा है। समीक्षा कीजिए |

अथवा

बिहार के जल संसाधनों के उपयोग की क्षमता का कृषि तथा उद्योग के संदर्भ में समीक्षा (पक्ष-विपक्ष दोनों) करें।
उत्तर – बिहार में जल संसाधनों की प्रचुरता है। यहां सतही जलस्त्रोत जैसे- नदी, झील, जल-निमग्न क्षेत्र तथा भूगर्भीय जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। यहां वर्षा की स्थिति भी अच्छी है। वार्षिक वर्षा 105 सेमी. होती है जो मीठे पानी का एक बड़ा स्रोत है। इन सबके बावजूद हम अपने जल संसाधनों का समुचित प्रबंधन नहीं कर पाये हैं जिससे प्रकृति का यह वरदान बाढ़, सूखा, जल जमाव आदि के रूप में अभिशाप बन गया है ।
जल संसाधन का उपयोग पेयजल, घरेलू उपयोग, भवन निर्माण, विभिन्न उद्योगों, कृषि तथा पशुपालन, परिवहन आदि में होता है। जल संसाधनों की प्रचुरता के बावजूद हमने इसका दोहन पर्याप्त एवं वैज्ञानिक तरीके से नहीं किया है। राज्य के कई जिलों में भू-जल स्तर काफी नीचे चला गया है जिसे वर्षाजल का संचय कर रिचार्ज किया जा सकता है। जल संचय के विभिन्न तरीकों पर अभी तक ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है। जबकि भू-जल स्तर के ज्यादा नीचे जाने से जहां कृषि लागत बढ़ रही है, वहीं यह भविष्य के लिए एक खतरनाक संकेत भी है। यद्यपि MNREGA के अंतर्गत वर्षा जल संचय के लिए तालाबों का निर्माण किया जा रहा है जो एक उत्साहवर्धक कदम है। इसे वृहत पैमाने पर अपनाया जा सकता है जिससे कृषि-सिंचाई की समस्या दूर हो जाएगी। ऐसे प्रयासों में गैर-सरकारी संगठनों अथवा व्यक्तियों को भी आगे आना होगा। महाराष्ट्र के रालेगांव सिद्धि में अन्ना हजारे द्वारा किया गया सफल जल प्रबंधन अनुकरणीय है। बिहार में नदियों का प्रयोग आंतरिक परिवहन के साधन के तौर पर किया जा सकता है। इससे भारी सामान के यातायात में सुगमता होगी। हमें उपलब्ध जल संसाधनों की शुद्धता पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। नदियों एवं अन्य जल स्रोतों के पानी को स्थानीय लोगों एवं औद्योगिक इकाइयों द्वारा प्रदूषित किया जा रहा है। कई स्थानों पर भू-जल प्रदूषण से ये उपयोग लायक नहीं रहते एवं भविष्य में इनके समाप्त होने का खतरा उत्पन्न हो जाता है। प्रदूषण के कारण दिल्ली की यमुना की स्थिति दयनीय हो गई है। इसके लिए जल जागरूकता के साथ ही सरकारी स्तर पर गंभीर प्रयास की आवश्यकता है।
राज्य की कृषि वर्षा एवं अन्य प्राकृतिक साधनों पर निर्भर है लेकिन यदि इन प्राकृतिक साधनों का हम समुचित विकास करें तो हमारी कृषि की सिंचाई आवश्यकता बहुत हद तक पूरी हो जाएगी। नदियों से नहरों का निर्माण कर एवं नदियों को आपस में जोड़ने की योजनाओं पर अमल कर कृषि का विकास किया जा सकता है साथ ही बाढ़ एवं सूखा से भी बचा जा सकता है। बिहार में भूगर्भीय जल संसाधन का पूर्ण दोहन नहीं हो पाया है। कृषि विकास के लिए इनका समुचित प्रयोग आवश्यक है। यद्यपि इनके दोहन के साथ ही हमें ‘जल संचय’ एवं ‘भू-जल के रिचार्ज’ को भी ध्यान में रखना होगा।
जल संसाधनों के उचित प्रयोग न कर पाने का ही नतीजा बाढ़ एवं जल-जमाव की समस्या है। बाढ़ की समस्या बिहार के लिए अभिशाप है। प्रतिवर्ष 68.8 लाख हेक्टेयर भूमि बाढ़ से प्रभावित होती है जिससे भूमि पर जल जमाव के कारण जान-माल की अपार क्षति होती है। नदियों पर जहां संभव हो, बहु-उद्देश्यीय परियोजनाओं का निर्माण किया जाना चाहिए जो कि अभी तक संभव न हो सका है। इससे एक तरफ जहां बाढ़ की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है, वहीं कृषि के लिए नहरों एवं बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। बिजली उत्पादन से राज्य के उद्योग-धंधों को बल मिलेगा। जल संसाधनों का प्रयोग उद्योगों के विकास के लिए भी किया जाना चाहिए। कृषि आधारित उद्योग एवं मत्स्य उद्योग स्थापित किए जा सकते हैं। मत्स्य उद्योग का विकास जल जमाव वाले क्षेत्र में भी किया जा सकता है, यद्यपि इनका विकास स्थानीय लोगों के द्वारा हो रहा है परन्तु सरकार को इनका विकास आधुनिक पद्धति से करना चाहिए ।
 अतः हम उपलब्ध जल संसाधनों का युक्तिसंगत तरीके से उपयोग नहीं कर पाये हैं, लेकिन इस दिशा में सरकारी एवं गैर-सरकारी स्तर पर अनेक कार्य किए जा रहे हैं।
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