स्किनर के अधिगम के सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त की विवेचना कीजिए। इस सिद्धान्त की शिक्षा में क्या उपयोगिता है ?

स्किनर के अधिगम के सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त की विवेचना कीजिए। इस सिद्धान्त की शिक्षा में क्या उपयोगिता है ? 

उत्तर— स्किनर का सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त (Skinner’s Theory of Operant Conditioning of Learning ) – इस सिद्धान्त को अमेरिकी मनोवैज्ञानिक बी. एफ. स्किनर ने प्रतिपादित किया था। इस सिद्धान्त को भी अनेक नामों से जाना जाता है। जिनमें प्रमुख नाम हैं—

(i) क्रिया प्रसूत अधिगम सिद्धान्त
(ii) यांत्रिक अनुबन्धन सिद्धान्त
(iii) प्रतिबद्ध कार्यात्मक अनुबन्धन
(iv) सक्रिय अनुबन्धन
स्किनर का मानना था कि प्राणियों की यह सहज प्रकृति होती है कि वह एक वातावरण में कुछ-ना-कुछ अनुक्रिया तो करेगा ही करेगा और यदि उनकी कोई वांछित अनुक्रिया पर पुनर्बलन दे दिया जाये तो धीरे-धीरे वह अनुक्रिया सीख ली जाती है और इसी प्रकार प्राणी की अनुचित अनुक्रिया पर यदि नकारात्मक पुनर्बलन दिया जाये तो अनुक्रिया धीरे-धीरे भुला दी जाती है । इस प्रकार स्किनर ने व्यवहारवाद के अन्तर्गत ही अधिगम का सक्रिय अनुबन्धन का सिद्धान्त प्रतिपादित किया जिसमें अनुक्रिया पहले होती है और उद्दीपक बाद में प्रस्तुत होता है जो उस अनुक्रिया को स्थापित करने में मदद करता है ।
स्किनऱ ने अपने सिद्धान्त के प्रतिपादन में कबूतर और सफेद चूहों पर प्रयोग किये थे । साथ ही स्किनर ने प्रयोग हेतु एक विशिष्ट बॉक्स का निर्माण किया था जिसे स्किनर बॉक्स के नाम से जाना जाता है। इस बक्से की व्यवस्था सहज थी उसमें एक खटका लगा था जिसे यदि दबाया जाये तो एक प्याली प्रकट होती जिसमें खाने के दाने होते और बक्से में एक बल्ब लगा था जो एक सहज उद्दीपक के रूप में वातावरण निर्मित करने में सहायक था । स्किनर ने अपने प्रयोग हेतु उस बक्से में कबूतर को रख दिया। अब बक्से के सहज वातावरण में कबूतर ने सहज क्रिया करना प्रारम्भ कर दिया और वह चारों ओर पंख फड़फड़ाने लगा। उसकी इस सहज क्रिया में अचानक एक क्रिया द्वारा खटका दब गया और उसके कारण दानों से भरी प्याली प्रस्तुत हुई जिसे उसकी उस सहज क्रिया को बल मिला और कबूतर ने उस पुनबलित प्रतिक्रिया को सीख लिया ।
इसी प्रयोग में स्किनर महोदय ने एक बदलाव किया और स्किनर बॉक्स की व्यवस्था में यदि खटका दबता तो बॉक्स में एक नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न होता और एक बिजली का वेग प्रवाहित होता । इस बार जब स्किनर ने कबूतर को बक्से में रख कर प्रयोग दोहराया तो पुनः कबूतर ने सहज क्रिया प्रारम्भ की और अचानक एक अनुक्रिया में खटका दब गया जिससे पिंजरे में बिजली का वेग प्रवाहित हुआ, जिसने कबूतर को एक नकारात्मक पुनर्बलन प्रस्तुत किया। अब कबूतर की उस सहज क्रिया जिसमें खटका दबने की सम्भावना हो कम हो गयी और कबूतर ने एक विशिष्ट क्रिया को भुला दिया। इस प्रकार स्किनर ने अनुक्रियाओं के दो प्रकार बताए—
                अनुक्रिया  → सहज (स्वतः)
उद्दीपक आधारित ( क्रिया प्रसूत) और कहा कि प्राणी में उद्दीपक की अनुपस्थिति में भी क्रिया होती है जिसे उन्होंने अनुक्रिया कहा। उन्होंने स्पष्ट किया कि सक्रिय (सहज ) अनुक्रिया में से किसी विशिष्ट अनुक्रिया पर यदि बल दिया जाए तो वह क्रिया सीख ली जाती है। और यदि किसी अनुक्रिया पर ऋणात्मक बल दिया जाये तो वह अनुक्रिया भुला दी जाती है ।
स्किनर के उपर्युक्त प्रयोग को निम्नलिखित समीकरण से प्रस्तुत कर सकते हैं—
सहज अनुक्रिया → R S (बल)
                            + ve पुनर्बलन
सहज अनुक्रिया  →    R-S (-ve)
                                (कमी उत्पन्न) नकारात्मक पुनर्बलन
साथ ही स्किनर ने अपने प्रयोग से सीखने की प्रक्रिया में दो प्रकार के पुनर्बलन को प्रस्तुत करके उसके प्रभाव को स्थापित किया
                               पुनर्बलन
सकारात्मक (+Ve)                        नकारात्मक (-Ve)
सहज अनुक्रिया (वांछित में बुद्धि) सहज अनुक्रिया (अवांछित में कमी ) स्किनर ने शिक्षा के क्षेत्र में अपने प्रयोग से एक क्रान्तिकारी योगदान को प्रस्तुत किया, जिसका आधार पुनर्बलन था और जिसने शिक्षण मशीन और अभिक्रमित अनुदेशन के सम्प्रत्यय की नींव रखी।
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