कला में ‘कल्पना’ की भूमिका समझाइए ।
कला में ‘कल्पना’ की भूमिका समझाइए ।
उत्तर— कला में कल्पना का बहुत महत्त्व है क्योंकि कल्पना ही वह शक्ति है, जिसके आधार पर कलाकार अपनी नवीन सृष्टि को रूप अथवा आकार प्रदान करता है। इस आधार पर कल्पना कलाकार की सृजनात्मक शक्ति मानी जाती है ।
भारतीय मत–कलप् + णिय् + युच्’ के संयोग से कल्पना बना है। जिसका अर्थ रचना या प्रबन्ध, कल्पना कथा है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने काव्य का समस्त रूप विधान कल्पना पर आधारित है। उन्होंने विधायक कल्पना तथा ग्राहक कल्पना के नाम से दो भेद किए हैं।
कल्पना का प्रयोग अंग्रेजी के IMAGINATION के समानार्थी शब्द के रूप में किया जाता है। इसका मूल अर्थ, “वह मानसिक क्रिया जिससे उन बाह्य वस्तुओं के बिम्बों का निर्माण होता है, जो मस्तिष्क की रचनात्मक शक्ति है किन्तु इन्द्रियों के सम्मुख उपस्थित नहीं रहती । “
परिभाषा–पाश्चात्य विद्वान चासर ने इसे सांकेतिक वस्तु का मानसिक बिम्ब कहा है। वर्ड्सवर्थ कल्पना को उस सृजनात्मक शक्ति के रूप में मान्यता देते हैं जो मानव भावनाओं को मूर्त रूप प्रदान करने में सहायक सिद्ध होती हैं। अरस्तू ने कहा है कि कल्पना मानव भावनाओं को संगठित रूप प्रदान करती है। कल्पना के अभाव में भाव का अस्तित्व ही नहीं रह पाता है। काण्ट के अनुसार कल्पना बोध जगत तथा भाव जगत के मध्य संयोजक का कार्य करती है। उन्होंने कल्पना के रूप माने हैं—
(i) पुनरुत्पादक कल्पना–इसका सम्बन्ध ऐन्द्रिय अनुभवजन्य सहजानुभूति को बिम्बों में परिवर्तित कर देने से है। इस कारण पुनरुत्पादक कल्पना में प्रभावों को ग्रहण करने के साथ ही सृजन की भी क्षमता होती है।
(ii) उत्पादक कल्पना–यह एक ऐसी आत्मनिर्भर तथा स्वतः स्फूर्त शक्ति है, जो सहजानुभूति को चित्रों में परिवर्तित कर देती है और इस प्रकार जिन बिम्बों का प्रत्यक्षीकरण होता है, उनका भावनाओं से कोई सम्बन्ध नहीं होता। इस प्रकार की कल्पना के विचार चित्र सामान्य होते हैं। इस कारण इन्हें उत्पादक कल्पना प्रसूत बिम्ब कहते हैं।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Google News ज्वाइन करे – Click Here