‘कला प्रदर्शनी’ क्यों महत्त्वपूर्ण है? संक्षेप में लिखिये।
‘कला प्रदर्शनी’ क्यों महत्त्वपूर्ण है? संक्षेप में लिखिये।
उत्तर— मेलों और प्रदर्शनियों में प्रदर्शित विभिन्न हस्तनिर्मित वस्तुएँ, दस्तकारी मानव की सौन्दर्य व कलाभिरुचि का प्रकटीकरण होता है। मनुष्य में सुन्दर वस्तु के दर्शन की इच्छा अथवा सौन्दर्य के आस्वादन की प्रवृत्ति जन्मजात होती है। इसी सन्दर्भ में सौन्दर्यात्मक और कलात्मक संवेदनाओं की वृद्धि और विकास में मेलों और प्रदर्शनियों की भूमिका को निम्न बिन्दुओं से व्याख्यायित किया जा सकता है—
(1) शिल्प मेले और प्रदर्शनियाँ मनुष्य के सौन्दर्य-चेतना के संस्कार को सक्रिय करती हैं ।
(2) मेलों व प्रदर्शनियों में प्रदर्शित घरेलू पात्र, वस्त्र, आभूषण खेल-खिलौने, मनोरंजन के साधन आदि सभी में मनुष्य की सौन्दर्यवृत्ति लक्षित होती है। दस्तकार दैनिक उपयोग की वस्तुओं को ही प्रायः अलंकृत करता है । चादर, तकिया, मोढा, झूला, पालना, बटुआ, बर्तन आदि दैनिक उपयोग की वस्तुओं में अनेक प्रकार के कलात्मक अभिप्राय अंकित मिलते हैं।
(3) दैनिक उपयोग की वस्तुओं पर ज्यामितीय आकृतियों की सरल रेखाओं, कोणों, वृत्तों पर बने अलंकरणों की अधिकता होती है। फूल-पत्तियों, पशु-पक्षियों की आकृतियों से कला की प्रौढ़ता झलकती है। ये सब दर्शकों को रोमांचित कर देती हैं। तोतों और हाथियों की कतारों की चित्रांकन के अलावा शीशे जड़े कढ़ाई के उत्कृष्ट नमूने दर्शकों को आन्दोलित करते हैं ।
(4) मेले और प्रदर्शनियाँ मनुष्य को कल्पना और बुद्धि के संयोग से भावनात्मक प्रतिक्रिया को व्यक्त करने का अवसर देती हैं।
(5) मनुष्य के अन्दर सौन्दर्यानुभूति व कलानुभूति का चाहे जो भी स्तर हो, वह सुन्दर हस्तशिल्प को देखकर मुग्ध हो जाता है और मेलों व प्रदर्शनियों में बिकने वाली सुन्दर वस्तुओं को खरीदकर अपनी अनुभूति को अपने ढंग से व्यक्त कर आनन्द और सन्तोष अनुभव करता है।
(6) प्रदर्शनियों और शिल्प मेलों सौन्दर्यात्मक एवं कलात्मक संवेदना के विकास की दृष्टि से महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता। दस्तकारों और शिल्पकारों की रचना/कला अलंकारिता के साथ-साथ लोक-मानस और उनके अन्तर्विचारों को भी झंकृत करते हैं। इन मेलों व प्रदर्शनियों में मेहंदी चित्रण का भी प्रदर्शन होता है। मेहंदी भारतीय नारी समाज का सौन्दर्य प्रसाधन है। मेहंदी के सघन आलंकारिक आकार बनाए जाते हैं जिसमें लहरिया, कैरी, पुष्प, लता इत्यादि प्रमुख हैं।
(7) पानी भरने के घड़ों पर, अनाज रखने के मिट्टी के हंडों पर और आटा पीसने की चक्की तक पर लोक-चित्रांकन के विविध रूप देखने को मिल जाते हैं। घरेलू उत्सवों में सजाए जाने वाले मंगल कलश पर भी आलंकारिक लोकांकनों के उदाहरण मिलते हैं। ये सब सौन्दर्यानुभूति और कलानुभूति का विकास करते हैं।
(8) इन मेलों प्रदर्शनियों में शृंगारिक उपयोग की सामग्री, शृंगार – पात्र, सिन्दूरदानी, आलंकारिक शीशे, चूड़ी रखने का डिब्बा आदि, हस्तकला की सुन्दरता को व्याख्यायित करते हैं। इनके रंग, इन पर रेखांकन, इनके आकारों में विविधता और सौन्दर्य, चित्रों का संयोजन जनमानस की चेतना पर अपनी अमिट छाप छोड़ते हैं। दर्शकों को सौन्दर्य के प्रति सहज आकर्षित करते हैं।
मेले और प्रदर्शनियों को सौन्दर्यानुभूति का एक सशक्त अभिकरण माना जाता है, इसीलिए वर्तमान शिक्षाविदों ने शैक्षिक प्रक्रिया में इनके आयोजनों और अवलोकनों पर बल दिया है।
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