खाद्य रसायन (Food Chemistry)
खाद्य रसायन (Food Chemistry)
खाद्य रसायन (Food Chemistry)
जैव तन्त्र विभिन्न अजैविक जटिल जैव-अणुओं जैसे कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल, लिपिड, आदि से मिलकर बनते हैं। प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट हमारे भोजन के आवश्यक अवयव हैं। ये जैव अणु आपस में अन्योन्य क्रिया (interact) करते हैं तथा जैव प्रणाली का आण्विक आधार बनाते हैं।
कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrates)
पूर्व में यह माना जाता था कि इनमें कार्बन, हाइड्रोजन व ऑक्सीजन 1 : 2 : 1 के अनुपात में होता है। लेकिन सभी उपलब्ध कार्बोहाइड्रेट इस अनुपात के अनुरूप नहीं थे। अतः परिभाषाओं में संशोधन किया गया। आधुनिक परिभाषा के अनुसार, ‘ये ध्रुवण घूर्णक (optically active) पॉलिहाइड्रॉक्सी अथवा कीटोन है’ या ऐसे यौगिक हैं, जो जल-अपघटन के उपरान्त इस प्रकार की इकाईयाँ देते हैं। कार्बोहाइड्रेटों का सामान्य सूत्र Cx (H2O)y जैसे ग्लूकोस [C6H12O6 या C6(H2O)6], फ्रक्टोस, सुक्रोस, आदि। ये मुख्यतयाः पौधों द्वारा उत्पन्न किए जाते हैं। कार्बोहाइड्रेट के मुख्य स्रोत अनाज जैसे गेहूँ, मक्का, चावल, जौ, जई, आदि, आलू, शलजम, चुकन्दर, केला, अरबी, माँस, आदि हैं।
कार्बोहाइड्रेटों का वर्गीकरण (Classification of Carbohydrates)
I. कार्बोहाइड्रेटों को जल-अपघटन में उनके व्यवहार के आधार पर मुख्यतः निम्नलिखित तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है
(i) मोनोसैकेराइड (Monosaccharides) ये सरलतम कार्बोहाइड्रेट हैं इनका छोटे अणुओं में जल-अपघटन नहीं किया जा सकता हैं। उदाहरण ट्रायोस (triose), ग्लिसरैल्डिहाइड (glyceraldehyde), टेट्रोस (tetrose), इरेथ्रोस (erythrose), पेन्टोस (pentose), राइबोस (ribose) और हेक्सोस (hexose), ग्लूकोस, फ्रक्टोस (glucose, fructose), आदि ।
(ii) ओलिगोसैकेराइड (Oligosaccharides) ये जल-अपघटन के फलस्वरूप मोनोसैकेराइड की दो से दस तक इकाईयाँ देते हैं। जैसे सुक्रोस (गन्ने की शक्कर), माल्टोस, लैक्टोस ये सभी जल-अपघटन द्वारा दो अणु मोनोसैकेराइड के देते हैं। अतः ये डाइसैकेराइड कहलाते हैं। सुक्रोस जल-अपघटन द्वारा ग्लूकोस और फ्रक्टोस की एक-एक इकाई देता है जबकि माल्टोस से प्राप्त दोनों इकाईयाँ केवल ग्लूकोस की होती हैं।
(iii) पॉलिसैकेराइड (Polysaccharides) इनके जल-अपघटन के फलस्वरूप अत्यधिक संख्या में मोनोसैकेराइड इकाईयाँ प्राप्त होती हैं। उदाहरण स्टार्च, सेलुलोस, ग्लाइकोजन तथा गोंद, आदि। ये जल में अविलेय हैं तथा पौधों से प्राप्त किए जाते हैं।
II. कार्बोहाइड्रेटों को उनके भौतिक गुणों के आधार पर निम्नलिखित दो वर्गों में बाँटा गया है
(i) शर्कराएँ (Sugars) कार्बोहाइड्रेट जो कि स्वाद में मीठे होते हैं ‘शर्कराएँ’ कहलाते हैं। उदाहरण ग्लूकोस, सुक्रोस, फ्रक्टोस, लैक्टोस (दुग्ध शर्करा), आदि।
(ii) अशर्कराएँ (Non-Sugars) कार्बोहाइड्रेट जो कि स्वाद में मीठे नहीं होते हैं, ये जल में अविलेय या अति अल्पविलेय होते हैं। सभी पॉलिसैकेराइड अशर्करा हैं।
III. कार्बोहाइड्रेटों को उनके अपचायक गुणों के आधार पर निम्नलिखित दो वर्गों में बाँटा गया है
(i) अपचायी कार्बोहाइड्रेट (Reducing Carbohydrates) ये टॉलेन अभिकर्मक को सिल्वर दर्पण तथा फेहलिंग विलयन को लाल अवक्षेप में अपचयित कर देते हैं। सभी मोनोसैकेराइड तथा डाइसैकेराइड (सुक्रोस को छोड़कर) अपचायी कार्बोहाइड्रेट होते हैं।
(ii) अनापचायी कार्बोहाइड्रेट (Non-Reducing Carbohydrates) ये टॉलेन अभिकर्मक तथा फेहलिंग विलयन को अपचयित नहीं कर पाते हैं। सुक्रोस तथा दूसरे सभी उच्च सैकेराइड अनअपचायी कार्बोहाइड्रेट हैं।
कुछ सामान्य कार्बोहाइड्रेट (Some Common Carbohydrates)
कुछ सामान्य कार्बोहाइड्रेटों का वर्णन नीचे दिया गया है
ग्लूकोस (Glucose), C6H12O6 इसे डेक्सट्रोस भी कहते हैं। यह मीठे फलों (पके अंगूरों) और शहद में पाया जाता है। औद्योगिक स्तर पर इसे स्टार्च के जल-अपघटन से प्राप्त किया जाता है। यह उपापचय (metabolism) के फलस्वरूप शरीर को ऊर्जा प्रदान करने वाली मुख्य शर्करा है। रक्त में इसकी सान्द्रता का परास 70-115 मिग्रा / 100 मिली है। यह मानव शरीर को तात्कालिक ऊर्जा उपलब्ध कराता है।
फ्रक्टोस (Fructose), C6H12O6 इसे फलों की शक्कर भी कहा जाता है। यह शहद, फल तथा उच्च फ्रक्टोस कॉर्न सीरप में पाई जाती है। प्राकृतिक फ्रक्टोस को लेवुलोस (laevulose) भी कहते हैं। यह औषधियों के सीरप, टॉफियाँ, आदि को बनाने में प्रयुक्त की जाती है।
सुक्रोस (Sucrose), C12H22O11 इसे इक्षु-शर्करा (गन्ने की शक्कर) भी कहते हैं। जल-अपघटन के पश्चात यह सममोलर मात्रा में ग्लूकोस और फ्रक्टोस देता है। इस उत्पाद को अपवृत शर्करा (invert sugar) भी कहते हैं। यह एक अत्यन्त उत्तम परिरक्षक है, जो अधिकांश डब्बा बन्द भोज्य पदार्थों जैसे जैम जैली में उपस्थित होता है।
माल्टोस (Maltose), C12H22O11 यह दो ग्लूकोस इकाईयों से बना होता है। इसे माल्ट शर्करा भी कहते हैं। यह ऐल्कोहॉल के निर्माण में प्रयुक्त किया जाता है।
लैक्टोस (Lactose), C12H22O11 लैक्टोस स्तनधारियों के दूध में उपस्थित होता है। यह गाय के में दूध 4-6% तथा मानव दूध में 5-8% प्रतिशत होता है। अतः यह दुग्ध शर्करा भी कहलाती है। यह गैलेक्टोस तथा ग्लूकोस से निर्मित होती है।
स्टार्च (Starch), (C6H12O5)n यह पौधों में मुख्य संग्रहित पॉलिसैकेराइड है यह दाल, जड़, कन्द तथा कुछ सब्जियों में पाया जाता है। पाचन के समय सर्वप्रथम यह माल्टोस देता है, जो आगे अपघटित होकर ग्लूकोस देता है। यह ग्लूकोस का बहुलक है और दो घटकों ऐमिलोस (जल में विलेय ) तथा ऐमिलोपेक्टिन (जल में अविलेय) से मिलकर बनता है।
सेलुलोस (Cellulose), (C6H10O5)n यह पौधों में प्रचुरता में उपलब्ध कार्बनिक पदार्थ है। यह पौधों की कोशिकाओं की कोशिकाभित्ति का प्रधान अवयव हैं। यह ग्लूकोस से बनी ऋजु श्रृंखला (straight chain) युक्त पॉलिसैकेराइड है। यह चकनाचूर अवरोधी ग्लास बनाने में प्रयुक्त किया जाता है।
ग्लाइकोजन (Glycogen) प्राणी शरीर में कार्बोहाइड्रेट, ग्लाइकोजन के रूप में संग्रहित रहते हैं। चूँकि इसकी संरचना ऐमिलोपेक्टिन के समान होती है। इसे प्राणी स्टार्च (animal starch) भी कहते हैं । यह यकृत माँसपेशियों तथा मस्तिष्क में उपस्थित रहता है। शरीर में जरूरत के अनुसार, एन्जाइम ग्लाइकोजन को ग्लूकोस में तोड़ देते हैं।
कार्बोहाइड्रेटों का महत्त्व (Importance of Carbohydrates)
(i) यह हमारे भोजन का प्रमुख भाग है तथा ये ऑक्सीकरण की प्रक्रिया द्वारा हमारे शरीर को ऊर्जा की आपूर्ति करते हैं। ये न्यूक्लिक अम्ल भी बनाते हैं। आयुर्वेद में ऊर्जा के तत्कालिक (instant) स्रोत के रूप में शहद का प्रयोग किया जाता है।
(ii) कार्बोहाइड्रेट वनस्पतियों में स्टार्च के रूप में तथा जन्तुओं में ग्लाइकोजन के रूप में संचित रहते हैं।
(iii) लकड़ी के रूप में सेलुलोस का उपयोग फर्नीचर बनाने में होता है।
(iv) वस्त्र, कागज, प्रलाक्ष (लैकर), निसवन (मद्यनिर्माण) उद्योगों के लिए इनसे कच्चा माल प्राप्त होता है।
प्रोटीन (Proteins)
प्रोटीन शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द प्रोटियोस (Proteios) से हुई जिसका अर्थ प्राथमिक अथवा अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। इस शब्द की खोज मुलर (1838) ने की थी। ये नाइट्रोजनी पदार्थ हैं अर्थात् इनमें कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के साथ नाइट्रोजन भी होती है। सभी प्रोटीन α- ऐमीनो अम्लों के बहुलक हैं, जो पेप्टाइड आबन्ध (peptide linkage) द्वारा एक-दूसरे से जुड़ें होते हैं। प्रोटीन जीवन का मूलभूत संरचनात्मक एवं क्रियात्मक आधार बनाने के अलावा ये शरीर की वृद्धि एवं अनुरक्षण के लिए आवश्यक हैं। हमारे शरीर का लगभग 15% भाग (भारानुसार) प्रोटीन से बना है। ये अधिकांश भोजन के मुख्य अवयव हैं तथा पोषण के उद्देश्यों के लिए आवश्यक हैं। माँस और अण्डे इनके बहुत अच्छे स्रोत हैं। जानवरों में 20 प्रकार के ऐमीनो अम्ल पाए जाते हैं जिनमें प्रोटीन का संश्लेषण होता है।
प्रोटीनों का वर्गीकरण (Classification of Proteins)
I. आण्विक आकृति के आधार पर (On the Basis of Molecular Shape)
(i) रेशेदार प्रोटीन (Fibrous Proteins) ये जन्तु ऊतकों के संरचनात्मक भाग बनाते हैं तथा इनमें पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला सर्पिलाकार कुण्डलित (spirally coiled) होती हैं जिनके परिणामस्वरूप रेशे (fibres) बनते हैं। उदाहरण किरेटिन ( keratin) (बाल, ऊन, रेशम में उपस्थित), मायोसिन (myosin) (माँसपेशियों में), फाइब्रॉयन (fibroin) तथा कोलेजन (collagen), आदि ।
(ii) गोलिकाकार प्रोटीन (Globular Proteins) ये हमारे जीवन चक्र को नियमित बनाए रखते हैं। इनमें पॉलिपेप्टाइड शृंखलाएँ कुण्डली बनाकर गोलाकृति अणु बनाती हैं।
II. अणुओं के घटकों के आधार पर (On the Basis of Constituents of Molecules)
(i) सरल प्रोटीन (Simple Proteins) ये केवल ऐमीनो अम्लों से बने होते हैं। उदाहरण संयोजी ऊतकों के कोलेजन, एल्ब्यूमिन, एल्ब्यूमिनाइड, ग्लोब्यूलिन (collagen, albumins, albuminoid, globules), आदि।
(ii) संयुग्मी प्रोटीन (Conjugated Proteins) ये प्रोटीन अणु और प्रोटीन के अतिरिक्त अन्य अणु ( प्रोस्थैटिक समूह – prosthetic group) के संयोजन से बनते हैं। उदाहरण हीमोग्लोबिन, केसीन (दूध की), न्यूक्लिओप्रोटीन, ग्लाइकोप्रोटीन, फॉस्फोप्रोटीन (haemoglobin, casein of milk, nucleoprotein, glycoprotein, phosphoprotein), आदि ।
(iii) व्युत्पन्न प्रोटीन (Derived Protein) ये प्राकृतिक प्रोटीन के आंशिक अपघटन से बनते हैं उदाहरण पेप्टोन्स, इन्सुलिन, फाइब्रिन (peptones, insulin, fibrin), आदि।
प्रोटीन के कार्य (Functions of Proteins)
(i) पौधों और जन्तुओं में एन्जाइम के रूप में।
(ii) ये बाल, माँसपेशियों तथा त्वचा के मुख्य घटक हैं।
(iii) ये हॉर्मोनों की तरह कार्य करते हैं जैसे इन्सुलिन वेसोप्रेसिन ।
(iv) कार्बोहाइड्रेटों तथा वसाओं की कमी होने पर शरीर को त्वरित ऊर्जा (instantaneous energy) प्रदान करते हैं।
(v) ये उपापचय के लिए आवश्यक ऑक्सीजन, वसा तथा दूसरे पदार्थों का परिवहन करते हैं।
(vi) प्रोटीन शारीरिक वृद्धि और पोषण के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। ये कोशिकाओं, प्रोटोप्लाज्म तथा ऊतकों के संवर्धन ( tissue culturing) में सहायता करते हैं।
(vii) ये अनुवांशिक लक्षणों के विकास में तथा अनुवांशिक क्रिया-कलापों को नियन्त्रित करने में सहायक पाए गए हैं।
प्रोटीन का विकृतिकरण (Denaturation of Proteins)
जब प्राकृत प्रोटीन में भौतिक परिवर्तन (जैसे ताप में परिवर्तन) अथवा रासायनिक परिवर्तन (जैसे pH में परिवर्तन) करते हैं, तो प्रोटीन अपनी जैव सक्रियता खो देते हैं। इस प्रक्रिया को प्रोटीन का विकृतिकरण कहते हैं।
वसा एवं तेल (Fats and Oils)
वसा मुख्यतः एक ही ऐल्कोहॉल ग्लिसरॉल से बने संतृप्त (saturated) एस्टर जबकि तेल असंतृप्त (unsaturated) एस्टर हैं। अतः इन्हें ट्राइग्लिसराइड भी कहते हैं। इस प्रकार ट्राइग्लिसराइड ग्लिसरॉल के उच्च अणुभार वाले मोनोकार्बोक्सिलिक अम्लों जैसे पामिटिक अम्ल (C15H31COOH), स्टिऐरिक अम्ल (C17H35COOH), ओलिक अम्ल (C17H33 COOH), आदि के साथ बने एस्टर हैं। कार्बोहाइड्रेटों के समान ये भी कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से बने होते हैं लेकिन इनमें कार्बोहाइड्रेटों की अपेक्षा ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम होती है। ये जल में अविलेय हैं लेकिन कार्बनिक विलायकों जैसे वेन्जीन, कार्बन टेट्राक्लोराइड, पेट्रोलियम, आदि में विलेय हैं। ये जीवों में मुख्य भोजन संग्राहक हैं और विभिन्न कार्यों के लिए उत्तरदायी होते हैं।
फॉस्फोलिपिड, फास्फोरस युक्त वसा का मुख्य समूह है। असंतृप्त ट्राइग्लिसराइडों को तेल तथा संतृप्त ट्राइग्लिसराइडों को वसा कहते हैं। सामान्यतः जिन ग्लिसराइडों का गलनांक 20°C से कम होता है उन्हें तेल तथा जिनका गलनांक 20°C से अधिक होता है उन्हें वसा कहते हैं। कमरे के ताप पर वसा ठोस अवस्था में होती है। किसी वसा या तेल की असंतृप्तता को आयोडीन मान (iodine value) द्वारा निर्धारित किया जाता है।
वसा के प्रकार (Types of Fats )
अपने उद्गम के आधार पर वसाओं को निम्न दो वर्गों में वर्गीकृत किया गया हैं
(i) जन्तु वसा (Animal Fats) ये वास्तव में संतृप्त वसाएँ हैं तथा जन्तुओं से प्राप्त होती हैं। इनके मुख्य स्रोत दूध, मक्खन, माँस, पनीर, अण्डा, मछली, आदि हैं। ये ठोस अवस्था में पाए जाते हैं।
(ii) वनस्पति वसा (Vegetable Fats) ये ट्राँस संतृप्त वसा हैं। इनका मुख्य स्रोत मूँगफली, अखरोट, नारियल, बादाम, सरसों, तिल, सूर्यमुखी, आदि हैं।
वसा के कार्य (Functions of Fats )
(i) ये ऊर्जा के संचित स्रोत की तरह कार्य करते हैं।
(ii) ये त्वचा के नीचे जमा होकर शरीर को प्रतिरोधक (resistive) परत उपलब्ध कराते हैं।
(iii) ये आघात प्रतिरोधक परत के रूप में जमा होकर जीवों के विभिन्न अंगों का बचाव करते हैं।
मोम (Waxes)
(i) मोम कार्बनिक यौगिक हैं, जो प्राकृतिक तथा कृत्रिम दोनों प्रकार से पाए जाते हैं। प्राकृतिक मोम उच्च अणुभार वाले मोनोहाइड्रिक ऐल्कोहॉल व उच्च अणुभार वाले मोनोकार्बोक्सिलिक अम्लों के एस्टर हैं। संश्लेषित मोम पेट्रोलियम से प्राप्त लम्बी श्रृंखलाओं वाले हाइड्रोकार्बनों का मिश्रण हैं।
(ii) ये वसा एवं तेलों की तरह जल में अविलेय लेकिन कार्बनिक विलायकों में विलेय होते हैं।
मोम के प्रकार (Types of Waxes )
मोम निम्न प्रकार के होते हैं
(i) जन्तु मोम (Animal waxes)
(ii) पादप मोम (Plant waxes)
(iii) पेट्रोलियम से प्राप्त मोम (Petroleum derived waxes)
(iv) मॉटेन मोम (Montan waxes)
उपयोग (Uses) ये मोमबत्ती के निर्माण में, पदार्थों पर परत चढ़ाने में तथा प्रसाधन सामग्री में प्रयुक्त किए जाते हैं।
विटामिन (Vitamins)
विटामिन वे कार्बनिक यौगिक हैं जिनकी आवश्यकता हमारे भोजन में सूक्ष्म मात्रा में होती है। इनकी आवश्यकता ऊर्जा उपलब्ध कराने के लिए नहीं होती अपितु ये मानवों में उपापचय को नियन्त्रित करने के लिए आवश्यक होते हैं। इनकी कमी के कारण हमारे शरीर में अनेक रोग उत्पन्न हो सकते हैं। विटामिनों का आधिक्य भी हानिकारक होता है। अतः डॉक्टर के परामर्श के बिना विटामिन की गोली नहीं लेनी चाहिए। विटामिनों को अंग्रजी वर्णमाला के बड़े अक्षरों जैसे A, B, C, D से निरूपित किया जाता है।
विटामिनों का वर्गीकरण (Classification of Vitamins)
जल तथा वसा में विलेयता के आधार पर विटामिनों को दो भागों में बाँटा गया है
(i) वसा में विलेय विटामिन (Fat Soluble Vitamins) विटामिन A, D, E तथा K वसा तथा तेल में विलेय विटामिन है। ये यकृत तथा एडिपोस ( वसा संग्रहित करने वाला) ऊतक में संग्रहित रहते हैं।
(ii) जल में विलेय विटामिन (Water Soluble Vitamins) B वर्ग के विटामिन तथा विटामिन C जल में विलेय हैं (विटामिन B12 को छोड़कर)। इनकी आपूर्ति हमारे शरीर में नियमित रूप से होनी चाहिए क्योंकि ये मूत्र के साथ उत्सर्जित हो जाते है अर्थात् शरीर में एकत्रित नहीं होते हैं।
एन्जाइम (Enzymes)
एन्जाइम जटिल नाइट्रोजनी कार्बनिक यौगिक हैं। ये जीवित पौधों और जन्तुओं द्वारा उत्पन्न किए जाते हैं। वास्तव में ये उच्च अणु द्रव्यमान वाले गोलिकाकार प्रोटीन अणु हैं, इन्हें जैव रासायनिक उत्प्रेरक भी कहते हैं क्योंकि जन्तुओं और पौधों के शरीर में जैव प्रक्रियाओं को चलाने के लिए असंख्य अभिक्रियाएँ एन्जाइमों द्वारा उत्प्रेरित होती है।
एन्जाइमों के लक्षण (Characteristics of Enzymes)
(i) एन्जाइम सर्वोत्तम दक्षता रखते हैं। इसका एक अणु अभिक्रियक के दस लाख अणुओं को 1 मिनट में परिवर्तित कर सकता है।
(ii) प्रत्येक एन्जाइम की विशिष्टता किसी एक अभिक्रिया के लिए होती है जैसे एन्जाइम यूरिएस केवल यूरिया का जल-अपंघटन को उत्प्रेरित करता है।
(iii) एन्जाइम सक्रियता का इष्टतम ताप परास 298-310 K है। हमारे शरीर का ताप 310 K होता है। अनुकूल इष्टतम ताप के किसी भी ओर एन्जाइम की सक्रियता घट जाती है।
(iv) एन्जाइम उत्प्रेरित अभिक्रिया की दर इष्टतम pH ( 5-7) पर अधिकतम होती है।
(v) एन्जाइमों की सक्रियता सहएन्जाइमों की उपस्थिति में बढ़ जाती है। Na+ आयनों की उपस्थिति में बढ़ जाती है।
(vi) धातु आयनों की उपस्थिति में एन्जाइमों की सक्रियता बढ़ जाती है। उदाहरण ऐमिलेज की सक्रियता ।
(vii) संदमक (inhibitors) एवं विष की उपस्थिति में एन्जाइमों की उत्प्रेरकी सक्रियता कम या पूरी तरह समाप्त हो जाती हैं।
खाद्य परिरक्षक (Food Preservatives)
ये खाद्य पदार्थों को सूक्ष्मजीवों की वृद्धि के कारण होने वाली खराबी से बचाते हैं। खाने का नमक, चीनी, वनस्पति तेल सोडियम मेटाबाइसल्फाइट तथा सोडियम बेन्जोएट सामान्य रूप से उपयोग में आने वाले परिरक्षक हैं। साबिक अम्ल तथा प्रोपेनॉइक अम्ल के लवण भी परिरक्षकों के रूप में प्रयुक्त होते हैं।
कृत्रिम मधुरक (Artificial Sweetening Agents)
बहुत से लोग कृत्रिम मधुरक का प्रयोग करते हैं क्योंकि प्राकृत मधुरक जैसे सुक्रोस, ग्रहण की गई कैलोरी बढ़ाते हैं। इनका प्रयोग मधुमेह के रोगियों के लिए भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।
बाजार में बिकने वाले कुछ कृत्रिम मधुरक निम्न प्रकार हैं
सैकेरीन ( Saccharin) इसे ऑर्थोसल्फोबेन्जीमाइड भी कहते हैं। यह सुक्रोस से 550 गुना अधिक मीठी होती है। यह शरीर से अपरिवर्तित रूप में ही मूत्र के साथ उत्सर्जित हो जाती है। अतः सेवन के बाद पूर्णतः अक्रिय (entirely inert) अहानिकारक प्रतीत होती है।
ऐस्पार्टेम (Aspartame) यह सबसे अधिक सफल और व्यापक रूप से प्रयोग में आने वाला कृत्रिम मधुरक है। यह सुक्रोस से 100 गुना मीठा होता है तथा ठण्डे खाद्य पदार्थों तथा पेय पदार्थों में प्रयुक्त किया जाता है क्योंकि यह खाना पकाने के तापमान पर अस्थायी है।
एलिटेम (Alitame) यह अधिक प्रबल कृत्रिम मधुरक है। यह सुक्रोस की तुलना में 2000 गुना मीठा है।
सुक्रालोस (Sucralose) यह सुक्रोस का ट्राइक्लोरो व्युत्पन्न है। इसका रूप रंग स्वाद शर्करा जैसा होता है। यह सुक्रोस की तुलना में 600 गुना मीठा है। यह गर्म खाद्य पदार्थों में प्रयुक्त की जाती है क्योंकि यह खाना पकाने के तापमान पर स्थायी है।
खाद्य विषाक्तन (Food Poisoning)
हमारे भोजन में उत्पन्न होने वाले सूक्ष्म जीव कभी-कभी विषैले पदार्थ उत्पन्न करते हैं। जिनसे भोजन विषाक्त हो जाता है तथा जिसके कारण गंभीर रोग और मृत्यु तक हो सकती है।
◆ अधिक तली हुई खाद्य सामग्री कैन्सरजन्य (carcinogenic) होती हैं क्योंकि उनमें हाइड्रोकार्बन की मात्रा उच्च होती है।
प्रतिऑक्सीकारक (Antioxidants)
असंतृप्त तेल और वसायुक्त खाद्य पदार्थों को लम्बे समय तक रखने पर उनका क्षय (deterioration) होने लगता है। ऐसा वायुमण्डलीय ऑक्सीजन के द्वारा ऑक्सीकरण से होता है। खाद्य पदार्थों को खराब होने तथा ऑक्सीकरण से रोकने के लिए कुछ रसायन जो कि ऑक्सीकरण को रोकने में सहायक होते हैं, इनमें मिलाए जाते हैं। इन पदार्थों को प्रतिऑक्सीकारक कहते हैं।
अतः वे रसायन, जो खाद्य पदार्थों पर ऑक्सीजन की क्रिया को घटाते हो तथा इनके परिरक्षण में सहायक हो प्रतिऑक्सीकारक कहलाते हैं | BHA ( ब्यूटाइलेटिड p-हाइड्रॉक्सी एनिसॉल-butylat” p-hydroxy anisole), BHT (ब्यूटाइलेटिड p-हाइड्रॉक्सी टॉलुईन-butylated p-hydroxy toluene), अम्ल के एस्टर तथा लैसिथिन (lecithin), आदि कुछ प्रतिऑक्सीकारक के उदाहरण हैं।
कुछ प्रतिऑक्सीकारक खाद्य पदार्थों में उपस्थित होते हैं जैसा कि नीचे सारणी में दिखाया गया है।
कुछ प्रतिऑक्सीकारक के स्रोत (Sources of Some Antioxidants)
प्रति ऑक्सीकारक | प्रति ऑक्सीकारक युक्त खाद्य पदार्थ |
विटामिन-C (ऐस्कार्बिक अम्ल) | फल तथा सब्जियाँ |
विटामिन-E (टोकोफेरॉल) | वनस्पति तेल |
कैरोटिनॉयड | फल तथा सब्जियाँ |
पॉली, फिनॉलिक प्रतिऑक्सीकारक | चाय, कॉफी, सोयाबीन, चॉकलेट, आदि। |
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