उत्तर कोरिया एवं अमेरिका के बीच विवाद को विस्तार से समझाइए | क्या इस विवाद को हल करने में संयुक्त राष्ट्र एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है? यदि हाँ, तो कैसे? और, यदि नहीं, तो इसके अंतर्निहित कारण क्या हैं? इस विवाद को सुलझाने में कुछ उपयुक्त सुझाव दीजिए।

उत्तर कोरिया एवं अमेरिका के बीच विवाद को विस्तार से समझाइए | क्या इस विवाद को हल करने में संयुक्त राष्ट्र एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है? यदि हाँ, तो कैसे? और, यदि नहीं, तो इसके अंतर्निहित कारण क्या हैं? इस विवाद को सुलझाने में कुछ उपयुक्त सुझाव दीजिए।

अथवा

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच वर्तमान विवाद की विस्तृत चर्चा करें तथा इस परिप्रेक्ष्य में संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका का वर्णन करते हुए इस विवाद को सुलझाने के लिए कुछ सुझाव भी व्यक्त करें।
उत्तर – उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच विवाद की शुरुआत कोरियाई युद्ध के दौरान उत्पन्न हुई। कोरियाई युद्ध 1950 से 1953 तक चला। उस समय उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया की सीमा में घुसने का प्रयास किया। इस युद्ध में संयुक्त राष्ट्र ने अमेरिका की मदद से दक्षिण कोरिया की मदद की तथा चीन ने उत्तर कोरिया की मदद की। सोवियत संघ ने भी उत्तर कोरिया का साथ दिया। अमेरिका ने उत्तर कोरिया पर बमवर्षक विमानों से बम हमला किया जिससे उत्तर कोरिया की 20% आबादी नष्ट हो गई। तब से इन दोनों देशों के संबंधों में गतिरोध बना हुआ है। अमेरिका और उत्तर कोरिया में कोई भी मैत्री करार नहीं है। इसलिए यूरोपीय देश स्वीडन, अमेरिका की तरफ से अमेरिका का पक्ष उत्तर कोरिया के समक्ष रखता है। कोरियाई युद्ध के समय से ही अमेरिका ने दक्षिण कोरिया में अपने सैनिक बेस बना रखे हैं जो कि तनाव बढ़ने की एक और मुख्य वजह है। बीच-बीच में दोनों देशों के रिश्ते खराब होते रहे हैं लेकिन सन् 2007 में एक सकारात्मक कदम उठाया गया जब छह देशों- अमेरिका, उ. कोरिया, द. कोरिया, जापान, चीन, रूस ने मिलकर एक समझौता किया। इस समझौते के अनुसार सभी देशों ने उत्तर-पूर्व एशिया में शान्ति स्थापित करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की। बदले में अमेरिका ने उत्तर कोरिया को आतंकी सूची से हटाने पर विचार करने का भरोसा दिया। वर्ष 2008 में अमेरिका उत्तर कोरिया का नाम आतंकी सूची से हटाने को राजी हो गया। इसके एवज में उसने उत्तर कोरिया से उसके न्यूक्लियर प्लांट को नष्ट करने का एक वीडियो मांगा जिसे उत्तर कोरिया ने सौंप दिया। इसके पहले ही 2007 में हिन्द महासागर में उत्तर कोरियाई जहाज को सोमालियाई लुटेरों से अमेरिका ने बचाया था जिससे दोनों के रिश्तों में काफी सुधार आया । परन्तु 2009 में दो अमेरिकी पत्रकारों को उत्तर कोरिया ने पकड़कर उन्हें 15 वर्ष की सश्रम कारावास की सजा सुना दी जिससे रिश्तों में पुनः खटास आनी शुरू हो गई। 2012 में उत्तर कोरिया ने अपना पहला सैटेलाइट छोड़ने की घोषणा की जिससे अमेरिका और सशंकित हो गया, क्योंकि सैटेलाइट और मिसाइल दोनों को एक ही प्रक्रिया से छोड़ा जाता है। 2013 में उत्तर कोरियाई तानाशाह ने अमेरिका को खुली धमकी दी और कहा कि उसके मिसाइल अमेरिका तक पहुंचने में सक्षम हो गए हैं। वर्तमान परिदृश्य में 2017 में उत्तर कोरिया ने लम्बी दूरी की मिसाइल का सफल परिक्षण किया। इसके बाद उत्तर कोरिया ने अपना परमाणु परिक्षण कर अमेरिका के साथ-साथ पूरी दुनिया को भी संकट में डाल दिया। इससे अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच गतिरोध नाटकीय रूप से बहुत ज्यादा बढ़ गया। अमेरिका ने इसी दौरान मिसाइल विरोधी सिस्टम थाड की तैनाती दक्षिण कोरिया में करके इस गतिरोध को और बढ़ा दिया है। वर्तमान परमाणु संकट स्पष्ट रूप से परमाणु कूटनीति की विफलता को प्रदर्शित करता है। मौजूदा परिदृश्य में उत्तर कोरिया अपने जीडीपी का 25% खर्च रक्षा क्षेत्र में करता है।
उत्तर कोरिया-अमेरिका विवाद में संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका सीमित है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी देशों में से अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन उत्तर कोरिया पर दण्डात्मक कार्रवाई करने का पक्ष रखते हैं, तो वहीं रूस व चीन उत्तर कोरिया का पक्ष लेते हुए इस पर वीटो लगा देते हैं। इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका इस विवाद में उ. कोरिया पर केवल व्यापारिक या आर्थिक बैन लगाने तक ही सीमित है, जो पूरी तरह उपयोगी नहीं है, क्योंकि उत्तर कोरिया का लगभग 90% व्यापार चीन से होता है।
जून, 2018 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प एवं उ. कोरियाई प्रमुख किम जोंग की सिंगापुर में मुलाकात और बैठक के बाद विवाद में थोड़ी नरमी आई है। दोनों राष्ट्राध्यक्षों की बैठक के पश्चात उ. कोरिया परमाणु हथियारों को नष्ट करने के लिए मौखिक रूप से सहमत हो गया है।
इस विवाद को निपटाने लिए कुछ प्रमुख सुझाव निम्नलिखित हैं
> एक-दूसरे के क्षेत्रों तथा प्रभुसत्ता का आदर करना । अनाक्रमण की नीति अपनाना ।
> एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना ।
> समानता तथा आपसी लाभ पर बल।
> शान्तिपूर्वक सह अस्तित्व की नीति का अनुसरण
> पारम्परिक सुभेद्यताओं को स्वीकार करना तथा वार्ता जारी रखना ।
> चीन द्वारा एक उत्तरदायित्वपूर्ण की भूमिका निभाई जा सकती है जिस प्रकार से ईरान समझौता सुनिश्चित करने में रूस ने योगदान दिया था।
> अंतर्राष्ट्रीय परमाणु निःशस्त्रीकरण कार्रवाई पर बल
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