किस प्रकार से भारतीय मानसून का परिवर्तशील स्वभाव भारत के कृषि को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है? बिहार के विशेष संदर्भ में इसकी व्याख्या कीजिए ।

किस प्रकार से भारतीय मानसून का परिवर्तशील स्वभाव भारत के कृषि को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है? बिहार के विशेष संदर्भ में इसकी व्याख्या कीजिए ।

उत्तर – भारत में मानसूनी वर्षा अत्यधिक परिवर्तनशील (Variable) है। किसी जगह किसी वर्ष में वास्तविक वर्षा उस जगह के औसत वर्षा से विसामान्य होती है। यह विसमान्यता 10 प्रतिशत से अधिक तथा 60 प्रतिशत तक होती है।
भारत में मानसूनी वर्षा की परिवर्तनशीलता उन क्षेत्रों में सबसे अधिक होती है जहां औसत वार्षिक वर्षा सबसे न्यूनतम होती है। उदाहरण के तौर पर बाड़मेर, गंगानगर, जैसलमेर, जोधपुर आदि, जहां औसत वर्षा 20 सेमी. से भी कम होती है। इन क्षेत्रों में मानसूनी वर्षा की परिवर्तनशीलता लगभग 60 प्रतिशत होती है। इसके विपरीत जहां औसत वार्षिक वर्षा लगभग 1200 सेमी से अधिक होती है (उदाहरणार्थ- मॉसिनराम तथा चेरापूंजी, मेघालय पठार) वहां वर्षा की वार्षिक परिवर्तनशीलता 10 प्रतिशत से कम होती है।
पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढाल, लघु हिमालय, शिवालिक तथा तराई क्षेत्र में भी 100 से 200 सेमी. के बीच औसत वार्षिक वर्षा दर्ज की जाती है। इन क्षेत्रों में वर्षा की परिवर्तनशीलता लगभग 10 से 20 प्रतिशत तक है। इस तरह औसत वार्षिक वर्षा तथा वर्षा की परिवर्तनशीलता के बीच एक प्रतिलोम संबंध है।
वर्षा की यह परिवर्तनशीलता कृषिगत प्रक्रियाओं तथा अन्य आर्थिक क्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जिन क्षेत्रों में वर्षा की परिवर्तनशीलता अधिक होती है, वहां चिरकालिक जल का अभाव होता है। ये क्षेत्र सूखा, बाढ़ तथा अकाल के लिए अधिक प्रवण क्षेत्र होते हैं। उन क्षेत्रों में जहां औसत वार्षिक वर्षा अधिक होती है, ऐसे क्षेत्र सूखे से कम प्रभावित होते हैं। यद्यपि बाढ़ प्रवण क्षेत्र यहां की एक विशेषता है।
भारतीय कृषि का लगभग 60 प्रतिशत क्षेत्र मानसूनी वर्षा पर निर्भर है तथा सिंचाई की सुविधा लगभग 40 प्रतिशत क्षेत्र को उपलब्ध है। लेकिन, इसके लिए भी वर्षा की आवश्यकता होती है, क्योंकि वर्षा नहीं होने से नदियों का पानी घट जाता है जिससे बांधों में पानी की कमी हो जाती है। भू-जल का पुनर्भरण तभी होता है जब वर्षा होती है। बांधों में पानी की कमी से बिजली उत्पादन प्रभावित होता है। बिजली न होने से नलकूप भी नहीं चल पाते। उसी तरह नदियों का पानी घटने से नहरें सूखने लगती हैं। इस तरह बाढ़ और सूखे दोनों के कारण कृषकों की ऋणग्रस्तता एवं गरीबी और भयावह हो जाती है, जिससे कृषि में उनकी निवेश क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इस तरह कृषि अधोगति के दुष्चक्र में फंसा रहता है।
• मानसून की परिवर्तनशीलता का बिहार पर प्रभाव
बिहार में वर्षा का आगमन मानसून के प्रारंभ के साथ माना जाता है। सामान्यतः मध्य जून तक पूरे प्रदेश में मानसून का विस्तार हो जाता है। जब कभी मानसून बिहार में देर से पहुंचता है तो चावल की कृषि पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
वर्षा की क्रमबद्धता पूरे वर्ष एक समान नहीं पाई जाती है। यहां कभी-कभी मानसूनी वर्षा अपना भयावह रूप दिखाती है, तो कभी सुखाड़ की स्थिति आ जाती है और कभी असमय वर्षा के कारण रबी की फसल भी बर्बाद और नष्ट हो जाती है। सक्रिय मानसून काल में यहां की नदियों में बाढ़ आने से तटबंधों के टूटने की स्थिति प्राय: देखने को मिलती है। यहां की अनेक नदियां, जैसे- कोसी, गण्डक तथा बागमती आदि अपने बाढ़ की विभीषिका के लिए प्रसिद्ध हैं। इस प्रकार निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि मानसून की परिवर्तनशीलता के कारण बिहार सहित समग्र भारत की कृषि में कभी बाढ़, कभी सूखा और कभी अन्य तरह की अनिश्चितताएं बनी रहती हैं, जो प्रतिकूल रूप से कृषि को प्रभावित करती हैं।
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