Bihar Board Class 9Th Hindi Grammar Solutions | Bseb class 9Th Hindi Grammar Notes
Bihar Board Class 9Th Hindi Grammar Solutions | Bseb class 9Th Hindi Grammar Notes
1. संज्ञा
प्रश्न- संज्ञा किसे कहते हैं ?
उत्तर— किसी भी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, भाव अथवा जानवर के नाम को संज्ञा कहते हैं। जैसे- राम, पटना, दूध, बुढ़ापा, गाय आदि ।
प्रश्न- संज्ञा कितने भेद हैं ?
उत्तर— संज्ञा के संज्ञा के पाँच भेद हैं ।
(1) व्यक्तिवाचक संज्ञा – किसी खास व्यक्ति, स्थान का नाम या फिर जो दुनिया में केवल एक ही हो ।
उदाहरण: राम, बेगूसराय, गंगा, सूर्य आदि ।
( 2 ) जातिवाचक संज्ञा – जिससे समस्त जाति भर का बोध हो ।
जैसे- गाय, बकरी, पक्षी, आदमी आदि ।
(3) द्रव्यवाचक संज्ञा – जिसे गिना न जा सके, केवल नापा या तौला जाए।
जैसे-पानी, दूध, सोना, चाँदी, चावल आदि ।
(4) समूहवाचक संज्ञा – जिससे व्यक्ति या वस्तुओं का समूह में होने का पता चले ।
जैसे- सभा, गुच्छा, दर्जन आदि ।
(5) भाववाचक संज्ञा- जिससे किसी व्यक्ति या वस्तु के भाव एवं गुणे, स्वाभाव का पता चले ।
जैसे – बुढ़ापा, सुंदरता, जवानी आदि ।
2. सर्वनाम
प्रश्न- सर्वनाम किसे कहते हैं ?
उत्तर— संज्ञा के स्थान पर उनके बदले प्रयोग होने वाले शब्द, सर्वनाम कहलाते हैं । जैसे- यह, वह, मैं, तुम, कुछ, स्वयं आदि ।
प्रश्न- सर्वनाम के कितने भेद हैं ?
उत्तर— सर्वनाम के छः भेद है ।
(1) पुरूषवाचक सर्वनाम – यह वह, मैं, तुम, आप, हम आदि।
(2) निश्चयवाचक सर्वनाम – यह, वह, ये सब आदि ।
(3) अनिश्चयवाचक सर्वनाम कोई कुछ, किसी आदि ।
(4) प्रश्नवाचक सर्वनाम क्या कौन, किसे, किसने आदि।
(5) संबंधवाचक सर्वनाम मेरा, तुम्हारा, उसका, जिसे आदि।
(6) निजवाचक सर्वनाम- स्वयं अपने आप, खुद आदि।
3. विशेषण
1. विशेषण- जो शब्द संज्ञा अथवा सर्वनाम की विशेषता बतलाती है उसे विशेषण कहते हैं। जैसे- राम अच्छा लड़का है। दूध सफेद होता है ।
2. विशेष्य – जिस शब्द की विशेषता बतलायी जाती है, उसे विशेष्य कहते है। जैसे- यह काली गाय है। यहाँ काली विशेषण है और गाय विशेष्य ।
4. विलोम शब्द
शब्द | विलोम |
अंधकार | प्रकाश |
अवनति | उन्नति |
अहिंसा | हिंसा |
अग्रज | अनुज |
आस्तिक | नास्तिक |
इधर | उधर |
अधम | उत्तम |
अमृत | विष |
आकाश |
पाताल
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5. पर्यायवाची शब्द
अमृत |
सुधा, अमिय, अगरल ।
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असुर | राक्षस, दानव, दैत्य । |
आँख | नयन, नेत्र, लोचन, चक्षु |
आकाश |
गगन, अंबर, आसमान ।
|
कमल |
पकंज, जलज, सरसिज ।
|
किताब | पुस्तक, पोथी, ग्रंथ । |
गंगा |
देवनदी, मंदाकिनी, भागीरथी ।
|
घोड़ा | अश्व, तुरंग, हय । |
जंगल | वन, कानन, अरण्य । |
जल | पानी, नीर, अम्बु । |
6. लोकोक्तियाँ एवं मुहावरे
मुहावरे | अर्थ |
नाक रगड़ना | बहुत खुशामद करना |
कान देना | ध्यान देना, |
बारूद की पुड़िया होना
|
बहुत तेज होना |
घी के दिए जलाना | बहुत खुशी मनाना |
सुबह का चिराग होना | मर जाना |
पाँचों ऊँगलियाँ घी में होना | बहुत अच्छे दिन होना |
कोढ़ में खाज होना | दोहरी मुसीबत |
बाट जोहना | इंतजार करना |
सब धन बाईस पसेरी
|
अच्छा-बुरा सबको समान समझना
|
नौ दो ग्यारह होना | भाग जाना |
7. वर्णों के उच्चारण स्थान
वर्ण |
उच्चारण स्थान
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अ, आ, क, ख, ग, घ, ह | कंठ |
इ, ई, च, छ, ज, झ, य, श | तालु |
ॠ, ट, ठ, ड, ढ, र, ष | मूर्द्धा |
त, थ, द, ध, न, ल, स | दंत |
प, फ, ब, भ, उ, ऊ | ओष्ठ |
ए, ऐ | कंठ व तालु |
ओ, औ | कंठ व ओष्ठ |
व | दंत व ओष्ठ |
8. अनेक शब्दों के एक शब्द
जिसका अंत न हो | अनंत |
जो पहले पैदा हुआ हो | अग्रज |
जिसका जन्म बाद में हुआ हो | अनुज |
जिसकी कोई उपमा न हो | अनुपम |
जिसका कोई मूल्य न हो | अमूल्य |
जिसका वण्रन नहीं किया जा सके | अवर्णनीय |
जो अनुकरण के योग्य हो | अनुकरणीय |
जिसकी कोई सीमा न हो | असीम |
जिसके जैसा दूसरा न हो | अद्वितीय |
युद्ध में स्थिर रहने वाला | युधिष्ठिर |
9. संधि
दो वर्णों के मेल से उत्पन्न होने वाले विकार को संधि कहते हैं।
संधि के भेद— वर्णों के आधार पर संधि के तीन भेद हैंस्वर संधि, व्यंजन संधि एवं विसर्ग संधि ।
I. दीर्घ स्वर संधि
यदि ‘अ’, आ, इ, ई, उ, ऊ, या ऋ के बाद वे ही ह्रस्व या दीर्घ स्वर आये तो दोनो मिलकर क्रमश: आ, ई, ऊ और ऋ हो जाते हैं। जैसे—
II. गुण स्वर संधि
यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘इ’ या ‘ई’, उ या ऊ, या ऋ आये तो दोनों मिलकर क्रमश: ‘ए’, ‘ओ’ और ‘अर्’ हो जाता है। जैसे—
III. वृद्धि स्वर संधि
यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ए’ या ‘ऐ’ आये तो दोनों के स्थान पर ‘ऐ’ और ‘ओ’ या औ का ‘औ’ बन जाता है। जैसे—
IV. येणू स्वर संधि
यदि ‘इ’, ‘ई’, उ, ऊ या ॠ के बाद कोई भिन्न स्वर आये तो इ, ई का ‘यू’, उ ऊ का ‘व्’ और ॠ का ‘र्’ हो जाता है। जैसे—
V. अयादि स्वर संधि
यदि ए, ऐ, ओ, औ के बाद कोई भी भिन्न स्वर आये तो ‘ए’ का अय्’, ऐ का ‘आय्’, ओ का ‘अव’ और औ का ‘आव्’ बन जाता है। जैसे—
• स्वयं से संधि विच्छेद करें।
अन्यान्य, अभीष्ट, अन्वय, अभ्युदय अन्वेषण अत्यन्त, पवन, परीक्षा, पदोन्नति, मृगेन्द्र ।
व्यंजन संधि
स्वरव्यंजन अथवा व्यंजन-व्यंजन के मेल से उत्पन्न विकार को व्यंजन संधि कहते हैं। इसे बनाने के लिए हम कुछ नियम का पालन करते हैं ।
नियम-1- यदि प्रथम वर्ण (क, च्, द्, त्, प्) के बाद किसी वर्ग का तीसरा या चौथा वर्ण रहे अथवा य र ल व या कोई स्वर वर्ण रहे तो क, च्, त्, द, प् के स्थान पर अपने ही वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है।
दिक् + गज = दिग्गज
सत् + वाणी = सद्वावाणी
दिक् + भ्रम = दिग्भ्रम
जगत् + आनन्द = जगदानन्द
नियम – 2- यदि ‘म्’ के बाद कोई व्यंजन वर्ण आये तो म् का ‘अनुस्वर’ या व्यंजन के बाद वाले वर्ग का पाँचवा वर्ण हो जाता है। जैसे—
अहंम् + कार = अहंकार
किम् + चित् = किञ्चित
सम् + सार = संसार
सम् + कृति = संस्कृति
नियम 3- ह्रस्व स्वर के बाद ‘छ’ हो तो ‘छ’ से पहले ‘च्’ जुट जाता है। जैसे— पारि + छेद = परिच्छेद
विसर्ग संधि
नियम 1- यदि विसर्ग (:) के बाद ‘च-छ’ हो तो ‘श’ ‘ट-ठ’ हो तो ‘ष्’ और त-थ हो तो विसर्ग का ‘स्’ हो जाता है। जैसे—
निः + चय = निश्चय
निः + छल = निश्छल
धनु: + टंकार = धनुष्टंकार
वि: + तारं = विस्तार
नियम 2- यदि विसर्ग के पहले इ कार या उकार आये और बाद का वर्ण क, ख, प, फ हो तो विसर्ग का ‘प्’ हो जाता है। जैसे—
निः + कपट = निष्कपट
निः + कारण = निष्कारण
निः + फल = निष्फल
निः + पाप = निष्पाप
नियम 3- यदि विसर्ग के पहले ‘अ-आ’ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो और बाद में किसी वर्ग का तीसरा, चौथ या पाँचवा वर्ण हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘र’ हो जाता है। जैसे—
निः + उपाय = निरूपाय
दु: + गन्ध = दुर्गन्ध
दुः + आत्मा = दुरात्मा
निः + विकार = निर्विकार
नियम 4- यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ रहे उसके बाद किसी वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवा वर्ण या य, र, ल, व, ह रहे तो वहाँ ‘ओ’ हो जाता है। जैसे—
मनः + रथ = मनोरथ
सरः + ज = सरोज
यश: + धरा = यशोधरा
सरः + वर = सरोवर
मनः + योग = मनोयोग
विकार + मनः = मनोविकार
नियम 5- यदि विसर्ग के पहले व बाद दोनों में ‘अ’ रहे तो और अ मिलकर ‘ओकार’ बनाते ही हैं साथ ही बाद वाले ‘अ’ का लोप हो जाता है और वहाँ लुप्ताकार (S ) का चिह्न लगा देते हैं। जैसे—
प्रथमः + अध्याय = प्रथमोऽध्याय
मनः + अभिलाषि = मनोऽभिलाषि
नोटू :- विसर्ग के बाद ‘अ’ को छोड़कर दुसरा स्वर वर्ण रहने पर यह नियम नहीं लगेगा। वहाँ सिर्फ विसर्ग का लोप होगा। जै—
अतः + एव = अतएव
10. समास
प्रश्न- समास किसे कहते हैं ? इसके कितने भेद हैं ?
उत्तर— दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से उत्पन्न विकार को समास कहते हैं ।
समास के छः भेद होते हैं ।
(i) अव्ययीभाव
(ii) तत्पुरूष
(iii) कर्मधारय
(iv) द्विगु
(v) द्वन्द्व
(vi) बहुव्रीहि ।
1. अव्ययीभाव समास— जिस समास का पहला पद ‘अव्यय’ हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं।
समस्त पद | विग्रह |
आजीवन |
जीवनभर
|
यथा शक्ति | शक्ति के अनुसार |
निस्संदेह | संदेह रहितं |
यथाशीघ्र | जितना शीघ्र हो |
2. तत्पुरूष समास— जिस समास का बाद वाला पद प्रधान हो एवं समास करने पर पहली विभक्ति का लोप हो जाये तत्पुरूष समास कहलाता है।
समस्त पद | विग्रह |
स्वर्ग प्राप्त |
स्वर्ग को प्राप्त
|
शरणागत |
शरण को आया हुआ
|
हस्तलिखित | हाथ से लिखा हुआ |
विद्यालय |
विद्या के लिए आलय
|
धनहीन | धन से हीन |
सत्याग्रह | सत्य के लिए आग्रह |
3. कर्मधारय समास— जिस समास के दोनों पद विशेष्य-विशेषण या उपमान-उपमेय हो, उसे कर्मधारय समास कहते हैं ।
समस्त पद | विग्रह |
नीलकमल | नीला है जो कमल |
नरसिंह | सिंह के समान है जो नर |
घनश्याम |
धन के समान काला
|
4. द्विगु समास— जिस समस्त पद (समास ) में पहला पद ‘संख्या’ का बोध कराता हो वो द्विगु समास होता है।
पंचवटी | पाँच वंटों का समूह |
चौराहा | चार राहों का समाहार |
चारपाई | चार पाइयों का समूह |
नवग्रह | नौ ग्रहों का समाहार |
अठन्नी |
आठ आनों का समुह
|
5. दंदू समास— जिस समास में दोनों पद प्रधान होते है, उसे द्वंद्व समास कहते हैं। इनके विग्रह के बीच में ‘और’, ‘अथवा’ या ‘आदि’ का प्रयोग होता है।
राम – लक्ष्मण |
राम और लक्ष्मण
|
नर – नारी | नर और नारी |
दाल – रोटी | दाल और रोटी |
लोटा – डोरी |
लोटा और डोरी
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6. बहुव्रीहि समास— जिस समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता है और समस्त पद किसी अन्य संज्ञा के विशेषण होते हैं, बहुब्रीहि समास कहलाते हैं।
दशानन | दश है आनन (मुख) जिसके अर्थात रावण |
लम्बोदर | लम्बा है उदर (पेट) जिसका यानि गणेश जी |
पिताम्बर | पीला है वस्त्र जिसका अर्थात विष्णु |
चक्रपाणि | चक्र है पाणि (हाथ) में जिसके यानि विष्णु जी |
नीलकंठ |
नीला है कंठ जिसका अर्थात शिवजी
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11. उपसर्ग
वे शब्दांश जो किन्हीं शब्द के आगे लगकर उनके अर्थ को बदल देते हैं। उपसर्ग कहलाते हैं।
प्र | प्रारंभ, प्रभाव । |
परा | पराजय, पराश्रय । |
वि | विनाश, विकार |
अभि | अभिमान, अभिवादन । |
सु |
सुशोभित, सुकुमार ।
|
अन | अनपढ़, अनमोल । |
अति |
अतिशय, अत्यधिक ।
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अव |
अवनति, अवलोकन ।
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उप |
उपकार, उपागम ।
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निर् |
निभ्रय, निर्लज्ज ।
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निबंध लेखन
(1) दीपावली
दीपावली हिन्दुओं का महत्त्वपूर्ण त्योहार है। यह कार्तिक मास की अमावस्या की रात्रि में मनाया जाता है। इस रात घर-घर में दीपक जलाए जाते हैं, इसलिए इसे दीपावली कहा जाता है। रात्रि के घनघोर अँधेरे में दीवाली का जंगमगाता हुआ प्रकाश अति सुन्दर दृश्य की रचना करता है।
दीपावली कब और क्यों मनाते हैं? – दीपावली वर्षा ऋतु की समाप्ति पर मनाई जाती है। इस समय धरती की कीचड़ और गन्दगी समाप्त हो जाती है। अतः लोग अपने घरों दुकानों की पूरी सफाई करते. हैं ताकि कीड़े-मकोड़े और अन्य रोगाणु नष्ट हो जाएँ। दीपावली से पहले लोग रंग करवाकर अपने भवनों को नया कर लेते हैं। दीपावली को मानाने के पीछे कुछ धार्मिक मान्यताएँ भी है। कहा जाता है कि जब चौदह वर्षों के वनवास काटने के बाद एवं लंका पर विजयी पाने के बाद जब राम भगवान सीता मैया के साथ वापस अयोद्धया लौटे तो लोगों ने उनके स्वगत के लिए घी के दीपक जलाये थे, तब से आज तक प्रतिवर्ष उस दिन को दीपावली के रूप में मनाया जा रहा
इससे क्या लाभ है – व्यापारियों के लिए दीपावली उत्सव शिरोमणि है। इस दिन व्यापारी लोग अपनी-अपनी दुकानों का कायाकल्प तो करते ही हैं, साथ ही ‘शुभ-लाभ’ की आकांक्षा भी करते हैं। बड़े-बड़े व्यापारी प्रसन्नता से अपने ग्राहकों में मिठाई बांटते । घर-घर में लक्ष्मी का पूजन होता है। ऐसी मान्यता है कि इस रात लक्ष्मी घर में प्रवेश करती है। इस कारण लोग रात को अपने घर के दरवाजे खुले रखते हैं। मिठाई और पटाखों की दुकानों पर इस दिन विशेष उत्साह होता है। लोग पटाखे छोड़कर भी अपना प्रसन्नता व्यक्त करते हैं।
हानि – दीपावली की रात को कई लोग खुलकर जुआ खेलते हैं। इस कुप्रथा को बन्द किया जाना चाहिए। कई बार जुएबाजी के कारण प्राणघातक झगड़े हो जाते हैं। पटाखे पर भी व्यर्थ में करोड़ों-अरबों रूपये खर्च हो जाते हैं। कई बार तो आग भी लग जाती है। इन विषयों पर पर्याप्त विचार होना चाहिए।
(2) भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार का अर्थ एवं स्वरूपः भ्रष्टाचार से तात्पर्य है बिगड़े हुए अथवा भ्रष्ट आचारण की स्थिति । भ्रष्ट लोग सामाजिक स्तर पर नैतिक मूल्यों को ताक पर रखकर अनैतिकता फैलाते हैं। भ्रष्टाचारी व्यक्ति अपने निजी स्वार्थों की सिद्धि के लिए बराबर प्रयत्नशील रहते हैं। बेईमानी, चोरबाजारी, रिश्वतखोरी, तानाशाही आदि सारी सामाजिक बुराइयाँ भ्रष्टाचार को ही जन्म देती हैं। इन सबसे लोभ, स्वार्थ अहित तथा अहंकार को बल मिला करता है। सामाजिक अथवा नागरिक अधिकारों का दुरुपयोग भ्रष्टाचार का मूल सिद्धांत है।
भ्रष्टाचार का वर्तमान स्वरूपः भ्रष्टाचार का जीवन में सर्वत्र बोलबाला है। समाज के किसी भी पक्ष को ले लीजिए, उनमें भ्रष्टाचार की जड़ें काफी गहरी मिलेंगी। किसी समाज अथवा देश के जन-जीवन के दो पक्ष हैं- एक सरकारी तंत्र पर आश्रित है तो दूसरा व्यक्ति समुदाय की वैयक्तिकता पर टिका है। भ्रष्टाचार की जड़ें इन दोनों ही धरातल पर हैं।
राजनीतिज्ञ और भ्रष्टाचार: कुछ समय पूर्व भ्रष्टाचार से लिप्त : रहने के कारण एक मुख्यमंत्री को इस्तीफा देने के लिए विवश होना पड़ा। मुख्यमंत्री जैसे गौरवशाली पद पर आसीन व्यक्ति भी जब भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं तो सामान्य पदाधिकारी बहती गंगा में हाथ धोने से पीछे क्यों रहेंगे। कुछ दिन पूर्व केन्द्रीय मंत्रिमंडल के कई सदस्यों को घोटाले में संलिप्त होने के कारण अपने पद से इस्तफा देना पड़ा। “
निवारण के उपाय: भ्रष्टाचार रोकने के लिए पहले यह आवश्यक है कि भ्रष्टाचार को बल देने वाले सारे कारणों की छानबीन की जाए। इन कारणों का अध्ययन करके वे साधन जुटाए जाएँ जिनका अभाव भ्रष्टाचार को जन्म देता है। इस स्थिति में न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी’ इन कारणों तथा समाधानों के संदर्भ में समाज के लिए पुनः नैतिक शिक्षा के माध्यम से ऐसा वातावरण देने की आवश्यकता है, जिससे कानूनप्रियता, उत्तरदायित्व, लोकमंगल की भावना तथा मानवतावाद की विचारधारा का जन्म हो सके। समाज को सच्चरित्र वाला बनना भ्रष्टाचार को रोकने का विशेष उपाय है।
(3) महंगाई
वर्तमान समय में महँगाई समूचे भारत वर्ष में निरंतर बढ़ती जा रही है। विभिन्न वस्तुओं के मूल्य में अप्रत्याशित वृद्धि को देखकर आश्चर्य होता है। निरंतर बढ़ती हुई महँगाई भारत जैसे विकासशील देश के लिए अभिशाप होता जा रहा है। निम्न वर्ग तथा मध्यम वर्ग के लोगों के साथ उच्च वर्ग के लो। भी महँगाई से त्रस्त हो उठे हैं। महँगाई का सबसे अधिक असर निम्न एवं मध्यम वर्ग के लोग पर हुआ है। अधिकांश वेतनभोगी कर्मचारी इस कमरतोड़ महँगाई के समक्ष घुटने टेक चुके है। महँगाई के विकराल दानव ने आज सम्पूर्ण भारतीय समाज को आतंकित कर दिया है। भारत के 80% लोग महँगाई के मार को झेल रहे हैं।
निरन्तर बढ़ती महँगाई – देश के नेता बार-बार आश्वासन देते हैं कि महँगाई को रोकने के लिए कारगार उपाय किये जा रहे हैं परन्तु नेताओं के आश्वासन पूर्णतः असफल होते जा रहे हैं। मूल्य वृद्धि के कारण जनता की क्रय शक्ति बहुत ही कम हो गई है।
सरकार के दावे – निरन्तर बढ़ती महँगाई पर सरकार के दावे विफल होते जा रहे हैं। सरकार इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रही है। कालाबजारी एवं जमाखोरी बढ़ते जा रहे हैं और सरकार इस पर चुप्पी साधे बैठी जा रही है।
आमलोगों पर प्रभाव – मूल्य में वृद्धि के कारण आम लोगों के क्रयशक्ति बहुत कम हो गई है। वे महँगाई के कारण संतुलित आहार नहीं ले पा रहे हैं। आम लोग महँगे अनाज एवं साग-सब्जियों को नहीं खरीद पाते हैं।
उपसंहार – महँगाई देश के लिए अभिशाप है। इससे देश का विकास अवरुद्ध होता है। बढ़ती हुई महँगाई से देश के विकास की परिकल्पना नहीं की जा सकती। महँगाई पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को कठोर कदम उठाना चाहिए तथा जनता को भी सादगीपूर्ण जीवन-शैली में निष्ठा रखनी चाहिए।
(4) समाचार – पत्र
समाचार पत्र ही एक ऐसा साधन है, जिसमें लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली पल्लवति और पुष्पित होती है। समाचार पत्र शासक और शासित में सामंजस्य स्थापित करने का काम करते हैं। इनकी वाणी जनता-जनार्दन की वाणी है। ये जनता के हाथों का महान शस्त्र हैं। ‘विभिन्न राष्ट्रों और जातियों के उत्थान एवं पतन में सामचार पत्रों का बहुत बड़ा हाथ रहा है। समाचार पत्रों ने आज एक देश से दूसरे देश की दूरी को समाप्त कर दिया है। सात समुद्र पार की घटना को हम प्रातः काल की समाचार पत्रों में पढ़ लेते हैं। वास्वत में समाचार पत्र विश्व एकता की भावना को सफल बनाने के अमूल्य साधन हैं।
देशवासियों की व्यापारिक उन्नति में समाचार पत्र बहुत बड़ा सहायक साधन है। अपनी व्यावसायिक उन्नति के लिए किसी भी पत्र में अपना विज्ञापन प्रकाशित कराया जा सकता है। इससे ग्राहक संख्या बढ़ जाती है और घर बैठे ही बाहर से माल मँगवाने का ऑर्डर आते रहते हैं। बड़ी-बड़ी विदेशी कम्पनियाँ इसके माध्यम से घर बैठे लाखों रुपए कमाती हैं।
पढ़े-लिखे किंतु बेरोजगार युवक समाचार पत्रों में अपनी नौकरियाँ ढूँढ़ते हैं। अविवाहित युवक/युवती समाचार पत्रों में वर-वधू की तलाश करते हैं। परीक्षाओं के परिणाम भी समाचार पत्रों में प्रकाशित होते हैं।
समाचार पत्र आज़ की आवश्यकता है। व्यक्ति और समाज दोनों के लिए समाचार पत्र अत्यंत उपयोगी हैं। ये व्यक्ति की सांसारिक आवश्यकताओं और मानसिक शांति के सबसे सरल और सर्वसुलभ साधन हैं। प्रायः लोग समाचार पत्र देखकर ही अपने दिन के कार्यक्रम निश्चित करते हैं।
(5) आदर्श विद्यार्थी
विद्यार्थी का अर्थ है- विद्या पाने वाला आदर्श विद्यार्थी वही है जो सीखने की इच्छा से ओतप्रोत हो, जिसमें ज्ञान प्राप्त करने की गहरी ललक हो । विद्यार्थी अपने जीवन में सर्वाधिक महत्व विद्या को देता है।
अच्छे विद्यार्थी के गुणः विद्यार्थी का सबसे पहला गुण है-जिज्ञासा । वह नए-नए विषयों के बारे में नित नई जानकारी चाहता है। वह केवल पुस्तकों और अध्यापकों के भरोसे ही नहीं रहता, अपितु स्वयं मेहनत करके ज्ञान प्राप्त करता है। सच्चा छात्र श्रद्धावान होता है। कहावत भी है- ‘श्रद्धावान् लभते ज्ञानम्। श्रद्धावान ही ज्ञान पा सकता है।
सच्चा छात्र सांसारिक सुख और आराम का कायल नही होता। वह कठोर जीवन जीकर तपस्या का आनंद प्राप्त करता है। संस्कृत में एक. सूक्ति भी है
‘सुखार्थिनः कुतो विद्या, विद्यार्थिनः कुतो सुखम्’
आदर्श विद्यार्थी परिश्रम, लगन और तपस्या की आँच में पिघलकर स्वयं को सोना बनाता है। जो छात्र सुख-सुविधा और आराम के चक्कर में पड़े रहते हैं, वे अपने जीवन की नींव को ही कमजोर बना लेते हैं।
अनुशासित और नियमित जीवनः आदर्श छात्र अपनी निश्चित दिनचर्या बनाता है और उसका कठोरता से पालन करता है। वह अपनी पढ़ाई, खेल-कूद व्यायाम, मनोरंजन तथा अन्य गतिविधियों में तालमेल बैठाता है।
उसके अध्ययन के घंटे निश्चित होते हैं जिनके साथ वह कभी समझौता नहीं करता । वह खेल-कूद और व्यायाम के लिए भी निश्चित समय रखता है।
सादा जीवन: आदर्श छात्र फैशन और ग्लैमर की दुनिया से दूर रहता है। वह सादा जीवन जीता है और उच्च विचार मन में धारण करता है। जो छात्र श्रृंगार, नशा, सैर-सपाटा, चस्केबाजी आदि में आनंद लेते हैं, वे विद्या के लक्ष्य से भटक जाते हैं।
(6) कम्प्यूटर
ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार, “कम्प्यूटर एक स्वचालित इलेक्ट्रॉनिक मशीन है, जो अनेक प्रकार की तर्कपूर्ण गणनाओं के लिए प्रयोग किया जाता है। “
इसका सदुपयोग तथा इससे लाभ निम्नलिखित हैं—
(i) तेज गति – कम्प्यूटर बहुत ही तेजी से गणनाएँ करता है। कम्प्यूटर एक सेकेण्ड में लाखों गणनाएँ कर सकता है। कम्प्यूटर के प्रोसेसर की स्पीड को हर्ट्ज में मापा जाता है।
(ii) स्वचलित – कम्प्यूटर एक स्वचालित उपकरण है। जब एक बार उपयोगकर्ता कम्प्यूटर को निर्देश दे देता है। तो उसके बाद कम्प्यूटर सारा कार्य अपने आप ही करता है तथा इस दौरान इंसनी हस्तक्षेप की जरूरत बहुत ही कम होती है।
(iii) त्रुटि रहित – कम्प्यूटर बहुत तेजी से त्रुटिरहित गणनाएँ कर सकता है। अगर उपयोगकर्ता कम्प्यूटर में निर्देष देते समय गलती न करे तो कम्प्यूटर सारी गणनाएँ सही कर सकता है।
दैनिक जीवन में कम्प्यूटर – दैनिक जीवन में कम्प्यूटर अत्यन्त आवश्यक हो गया है, अगर गणितीय गणना एवं कार्यालयों से संबंधित कार्य करना हो तो कम्प्यूटर की जरूरत पड़ती है। यह आसानी से डाटा को स्टोर करता है और जरूरत पड़ने पर इसकी उपयोग में लाते हैं।
कार्यालयी उपयोग – आज वर्तमान समय में सभी कंपनी के कार्यालयों में कम्प्यूटर का उपयोग होता है। ऐसी कोई भी कंपनी नहीं जिसके कार्यालय में इसका उपयोग न होता हो। इससे काम को आसानी से किया जा सकता है जो काम महीनों में होता है, यह घंटों में करता है।
उपसंहार – कम्प्यूटर हमारा जीवन साथी है। उसकी उपयोगिता नजरअंदाज नहीं की जा सकती। आज कम्प्यूटर ‘सुपर माइंड’ की तरह कार्य कर रहा है। कठिन जीवन को सरल बनाने में कम्प्यूटर का योगदान महत्वपूर्ण है। रक्षा उपकरणों, हजारों मील की दूरी पर सटीक निशाने साधने, सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तुओं को खोजने, हार्ट सर्जरी करने में कम्प्यूटर का महत्व बेमिसाल है।
(7) दहेज प्रथा
भारतीय समाज में कुछ ऐसी प्रथाएँ हैं, जो देश को खोखला किए जा रही हैं जैसे-छुआ-छूत, जात-पात तथा दहेज प्रथा आदि । तीन वर्णों से मिलकर बना ‘दहेज’ शब्द अपने-आप में इतना भयानक, डरावना बन जाएगा, कादाचित् ऐसा इस प्रथा को प्रारंभ करने वालों ने सोचा तक न होगा।
दहेज शब्द अरबी भाषा के ‘जहेज’ शब्द से बना है। इसका अर्थ है- ‘सौगात’। यह संस्कृत के ‘दायज’ शब्द से मिलता है, जिसका अर्थ ‘उपहार’ या ‘भेंट’ होता है।
आज दहेज एक अनिवार्य प्रथा बन गई है। कन्या पक्ष की सामर्थ्य और स्वेच्छा का स्थान वर पक्ष की माँग ने ले लिया है। इस प्रथा ने वर्तमान समय में एक दानव का रूप ले लिया है, जो अनगिनत मासूम कन्याओं को अपना ग्रास बना रहा है।
धन के अभाव में सर्वगुण संपन्न कन्या को पतिगृह में नारकीय जीवन व्यतीत करना पड़ता है या फिर पर्याप्त दहेज न जुटा पाने की स्थिति में माता-पिता सुंदर, कामऊ लड़की को भी अनुचित वर के साथ बाँध देते हैं। बेचारी कन्या खून के घूँट पीकर रह जाती है।
एक लेखिका ने ऐसे व्यक्तियों पर व्यंग्य करते हुए कहा है—
देखो तो, दहेज ने संसार की बदल दी है सोच, बेटी माँ-बाप के लिए बनी हुई है बोझ ।
कई बार कन्याएँ पिता की दयनीय दशा देखकर स्वयं को कोसने लगती है। समाचार पत्रों में प्रतिदिनि छपने-वाले आत्महत्याओं तथा जलने या जलाने से हुई हत्याओं के समाचार पड़ने से पता चलता है कि इनका मूल कारण दहेज ही है, जिसने नारी के जीवन को अंधकारमय और नरक से भरपूर कर दिया है। देखा जाए तो स्त्री-पुरुष जीवन की गाड़ी के दो पहिए हैं, जो कि एक-दूसरे के पूरक हैं। यदि एक भी पहिया ढीला पड़ जाए, तो गाड़ी अस्थिर हो जाती है।
(8) बसंत ऋतु
वसंत ऋतु का आगमन शरद् ऋतु की समाप्ति के साथ होली के अवसर पर शुरू हो जाती है । चैत वैशाख के दो महीने वसंत के अपने हैं। माघ शुक्ल पंचमी से प्रकृति वंसत के आगमन का समाचार पाकर वसंती छटा धारण करने लगती है। वसंत ऋतु असाधारण ऋतु है। आँख उठाकर देखिए प्रकृति का कोना-कोना मानो कोयल की कूक से सुर में सुर मिलाक कूक रहा हो । भ्रमरों का गुंजन, फूलों की मोहक गंध और सुगंध वायु हृदय को प्रफुल्लित कर देती है। पृथ्वी सरसों के पीले फूलों की वसंती साड़ी में इतनी मोहक प्रतीत होती है मानो कोई नई दुल्हन प्रियतम के स्वागत का प्रस्तुत हो सरोवर में कल प्रस्फुटित हो जाते हैं। आम के वृक्ष मंजरियों से लद जाते हैं। हवा ठंडे-ठडे झोकों से पाथिक के श्रम को हर लेती है।
कछार में, दिशा में, दुनी में, देश-दर्शन में बनन में, बागन में नगरयो वसंत है।
वंसत ऋतुओं का राजा है। उत्साह, उल्लास और आनंद इसके अनुचर हैं। वसंत में प्रकृति उन सभी संचित निधियों को एक साथ हमारे. समक्ष प्रस्तुक कर देती है। जो मानवमात्र को मोहक और रमणीक लगते हैं। तभी तो वसंत के कामदेव के साथ नाना प्रकार के संबंध जोड़ दिये गए है।
श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने तो वसंत की समृद्धता और ऐश्वर्यता की तुलना मठ के प्रधान महंत से की है आए महंत वसंत
मखमल के झूले पड़े हाथी-सा टीला। बैठे किंशुक छत्र लगा बाँध पाग पीला।
(9) मेरे प्रिय शिक्षक
मेरे विद्यालय में कुल 10 शिक्षकगण है। मैं अपने सभी शिक्षकों का बहुत सम्मान करता हूँ। सभी शिक्षक हम बच्चों को समान रूप से प्यार करते हैं और अच्छे से पढ़ाते हैं ।
फिर भी सभी शिक्षकों में से रौशन सर मेरे प्रिय शिक्षक है। वे हमें विज्ञान पढ़ाते है। उन्हें अपनी विषय की काफी अच्छी व गहरी समझ है। वे हमें विज्ञान के जटिल से जटिल प्रश्न भी आसानी से समझा देते हैं।
वे काफी अध्ययनशील है। वे निरंतर अपने विषय से संबंधित नई-नई पुस्तकें पढ़ते रहते हैं और फिर उनके बारे में हमें भी अच्छी जानकारियाँ देते है ।
पहले हम बहुत सारे बच्चों की विज्ञान में थोड़ी भी रूची नहीं थी, कारण था इसका अच्छे से समझ में ना आना । परन्तु जब से रौशन सर् आये हैं, हमें विज्ञान पढ़ने में काफी मजा आने लगा है। उन्होंने हमें न्यूटन, आंइस्टाइन, टेसला, एडीसन जैसे कई वैज्ञानिकां की जीवनी सुनाई है जिनसे हमें हमेशा प्रेरणा मिलती है। उन्होंने हमें न्यूटन के गति के नियम व गुरुत्वाकर्षण के विषय में भी अच्छी जानकारी दी है।
मेरे प्रिय शिक्षक की जीवन शैली सादगी से भरी हुई है, उनमें किसी भी प्रकार का बनावटीपन नहीं है। पढ़ाई के दौरान वो हमें कभी भी मारते या डाँटते नहीं है बस प्यार से समझा देते हैं ।
मुझे उम्मीद है कि हम सभी बच्चे इनके सानिध्य में रह के जीवन के उच्चतम शिखर पे पहुँच सकेंगे। मेरी कामना है कि ईश्वर मेरे प्रिय शिक्षक को लम्बी उम्र प्रदान करें ।
पत्र लेखन
प्रश्न- अपने प्रधानाध्यापक को छात्रवृत्ति के लिए प्रार्थना पत्र लिखिए।
उत्तर—
सेवा में,
प्रधानाचार्य महोदय,
संत जोसेफ कॉन्वेंट स्कूल,
बाँकीपुर पटना ।
विषय – आर्थिक सहायता के लिए प्रार्थना पत्र
द्वारा – वर्ग शिक्षक महोदय
महाशय,
सेवा में सादर निवेदन यह है कि मैं आपके विद्यालय में नवम् कक्षा का छात्र हूँ । पिछले वर्ष मेरे पिताजी का आकस्मिक देहांत हो गया था। उनके देहांत से हमारी आर्थिक स्थिति बड़ी दयनीय हो गई है। मेरी माता जी दूसरों के घरों में छोटे-मोटे काम करके जैसे-तैसे अपना तथा हम तीन बहन- भाइयों का पेट पालती है। ऐसी स्थिति में मेरे लिए अपनी पढ़ाई का खर्चा चलाना असंभव है।
मान्यवर, मेरी तीव्र इच्छा है कि मैं अपनी पढ़ाई का क्रम बनाए रखकर एम० ए० की परीक्षा पास करूँ। मैं नवमी तक सभी श्रेणियों में सदैव अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होता रहा हूँ। मैंने अनेक बार भाषण तथा वाद-विवाद प्रतियोगिता में पुरस्कार भी जीते हैं।
मेरी आपसे प्रार्थन है कि मुझे विद्यालय की ओर से आर्थिक सहायता प्रदान की जाए, जिससे मेरी पढ़ाई का खर्च चल सके। आपके इस कृपा के लिए मैं सदैव आपका अभारी रहूँगा।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
अमर कुमार
कक्षा-नवम्
अनुक्रमांक 12
दिनांक: 25 जून, 2018
प्रश्न- विद्यालय में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होने पर अपने मित्र को एक बधाई पत्र लिखिए।
उत्तर— स्टेशन रोड
बेगूसराय
दिनांक – 27 अप्रैल, 2018
प्रिय रेखा
मधुर स्मृति !
बहुत – बहुत बधाई हो रेखा! मुझे अभी-अभी तुम्हारी सखी बबीता का टेलीफोन संदेश मिला है। पता चला कि तुमने इस वर्ष नवम कक्षा में अपने विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त की है। अगले वर्ष तुम्हारी बोर्ड की परीक्षा होना है। आशा करती हूँ कि तुम उसमें भी अपने माता-पिता का नाम रौशन करोगी।
रेखा ! मुझे इस समाचार से बहुत प्रसन्नता हुई है। मन में इतनी खुशी हुई कि सारे जरूरी काम छोड़कर तुम्हें बधाई पत्र लिख रही हूँ। मेरी ओर से हार्दिक बधाई । ईश्वर करे तुम दिन दुगुनी रात चौगुनी तरक्की करो । मेरे मम्मी-पापा भी तुम्हें आर्शीवाद भेज रहे हैं।
पुनः बधाई के साथ।
तुम्हारी सखी
रूचि
प्रश्न- अपने विद्यालय के प्राधानाचार्य को पाँच दिनों के अवकाश के लिए प्रार्थना पत्र लिखिए।
उत्तर—
सेवा में,
प्रधानाचार्य महोदाय,
राजकीय उच्च विद्यालय, बेगूसराय ।
विषय- पाँच दिनों के अवकाश के लिए प्रार्थना पत्र द्वारा वर्ग शिक्षक महोदय
महाशय,
सेवा में सविनय निवेदन है कि कल अचानक ही मेरा स्वास्थ्य खराब हो गया। स्कूल से लौटते हुए चिलचिलाती धूप में चलने से मुझे जोर का सिर दर्द हुआ, जिससे मैं बेचैन हो उठा। मुझे अब काफी शारीरिक कमजोरी अनुभव हो रही है। मैं स्कूल आने की स्थिति में नहीं हूँ। डॉक्टर ने भी मुझे पूर्ण विश्राम का परामर्श दिया है क्योंकि मुझे तेज बुखार है।
अतः आपसे अनुरोध है कि मुझे पाँच दिनों का अवकाश प्रदान किया जाए। आपके इस कृपा के लिए मैं सदा आपका आभारी रहूँगा।
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
विजय कुमार
कक्षा-नवम्
अनुक्रमांक 49
दिनांक : 4 जुलाई, 2017
प्रश्न- अपने पिता को एक पत्र लिखिए, जिसमें पुस्तकें खरीदने के लिए रूपये भेजने के लिए प्रार्थना की गई हो।
उत्तर—
परीक्षा भवन,
……केन्द्र,
1 मार्च, 2018
पूज्य पिताजी,
सादर प्रणाम ।
आशा करता हूँ कि आप व घर के अन्य सभी सदस्य सकुशल होंगे। इस बार मैं आपको पत्र जल्दी न भेज सका, क्योंकि मेरी परीक्षा हो रही थी। मैं उसी की तैयारी में लगा रहा। मेरी संस्कृत की परीक्षा इस बार इसलिए कुछ ढीली रह गई, क्योंकि मेरे पास संस्कृत व्याकरण की अच्छी पुस्तकें नही थी। अतः आपसे प्रार्थना है कि संस्कृत व्याकरण की अच्छी पुस्तक खरीदने के लिए आप मुझे 200 रुपये भेज दें । मैं N.C.E.R.T. द्वारा प्रकाशित संस्कृत व्याकरण एवं रचना की पुस्तकें खरीदना चाहता हूँ। इन पुस्तकों की प्रशंसा मेरे अन्य सहपाठियों ने भी की है।
मेरी ओर से माता जी को सादर चरणवंदना। अनिल तथा अनीता को प्यार। मेरे योग्य कोई सेवा हो, तो अवश्य लिखें। पत्रोत्तर शीघ्र दें तथा रूपये भी जल्दी भिजवाएँ।
आपका सुपुत्र
रोहित
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