जाति एवं वर्ग भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस उक्ति की व्याख्या बिहार के संदर्भ में करें।

जाति एवं वर्ग भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस उक्ति की व्याख्या बिहार के संदर्भ में करें।

अथवा

बिहार में कुछ दल पूर्णत: जाति आधारित राजनीति के आधार पर ही चुनाव जीतते हैं, लेकिन वर्तमान स्थिति विकास की मांग है की व्याख्या करते हुए उत्तर दीजिए।
उत्तर – भारतीय राजनीति में जाति समूहों का प्रभाव स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान स्पष्ट परिलक्षित होता है। अम्बेडकर जहां दलितों एवं शोषित वर्गों का नेतृत्व करते थे, वहीं कांग्रेस पर उच्च वर्गों के प्रभाव दिखते हैं। आजादी के बाद लोकतंत्र की स्थापना हुई जिससे बहुसंख्यक जाति के लोगों अथवा नेताओं का प्रभाव राजनीति में थोड़ा बढ़ा। जाति आज के समय में चुनावी एजेंडा हो गया है। बिहार में भी प्रारंभ में उच्च जाति के लोगों का राजनीति में वर्चस्व था परंतु राम मनोहर लोहिया के समाजवादी आंदोलन एवं जे.पी. के आंदोलन के बाद बिहार में स्थिति बदली एवं पिछड़ी जाति के कुछ नेताओं का बिहार की धरती पर आगमन हुआ। लालू प्रसाद, नीतीश कुमार एवं रामविलास पासवान मूलत: जे. पी. आंदोलन से जुड़े नेता थे, जिन्होंने बाद के वर्षों में प्रदेश का नेतृत्व किया। बिहार की राजनीति में जाति एवं वर्ग की भूमिका सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों रही है।
> सकारात्मक प्रभाव / भूमिका
बिहार में पिछड़ी जाति की बहुलता है लेकिन आजादी के प्रारंभिक वर्षों में जब तक उच्च जाति का राजनीति में वर्चस्व रहा, पिछड़ी जातियों, दलितों का अत्यधिक शोषण हुआ, उनकी सामाजिक स्थिति जानवरों से ज्यादा नहीं थी। लेकिन जब पिछड़े लोगों में राजनीतिक जागरूकता आई और नेतृत्व उनके हाथों में आया तो स्थिति बदली। स्थिति बिल्कुल बदल चुकी है और पिछड़ी जातियों की सामाजिक स्थिति अपेक्षाकृत सुधरी है। उनकी आर्थिक स्थिति एवं शैक्षणिक स्थिति में भी सुधार आया है।
> नकारात्मक प्रभाव / भूमिका
बिहार की राजनीति पर जाति के प्रभाव के सकारात्मक प्रभाव के साथ-साथ नकारात्मक प्रभाव भी पड़े हैं। आज राजनीतिक दल विभिन्न जातियों को लुभाने के लिए अत्यंत निम्नस्तरीय तरीकों को अपना रहे हैं जिससे सामाजिक एकता भंग हो रही हैं।
 है। विभिन्न जाति समूह एक-दूसरे को बैर-भाव एवं घृणा से देखते हैं। जाति के कारण राजनीति में अपराधीकरण भी बढ़ रहा है। राजनेता अपनी जाति के अपराधियों को संरक्षण देते हैं एवं चुनाव में उनका इस्तेमाल करते हैं। जाति आधारित राजनीति वास्तव में लोकतंत्र की मूल भावना के विरुद्ध है, क्योंकि संविधान निर्माताओं ने ऐसा कभी नहीं सोचा था कि राजनीति में जातिवाद के प्रवेश से स्थिति इतनी खराब हो जाएगी। आज बिहार की जनता भी जातिवादी राजनीति को नकारने लगी है, इसका ताजा उदाहरण विकास के आधार पर दुबारा सत्ता प्राप्त करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं।
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