भारत में बेरोजगारी की समस्या की प्रकृति क्या है ? क्या आप सोचते हैं कि “राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम” ग्रामीण निर्धनों की निर्धनता एवं बेरोजगारी की समस्या को हल कर सकेगा ?
भारत में बेरोजगारी की समस्या की प्रकृति क्या है ? क्या आप सोचते हैं कि “राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम” ग्रामीण निर्धनों की निर्धनता एवं बेरोजगारी की समस्या को हल कर सकेगा ?
(46वीं BPSC/2005)
अथवा
भारत में बेरोजगारी के विभिन्न प्रकार लिखें, NREGA (अब MNREGA) की निर्धनता, बेरोजगारी उन्मूलन क्षमता को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत करें।
उत्तर – भारत में विशाल जनसंख्या भार के कारण बेरोजगारी एक बड़ी समस्या के रूप में विद्यमान है। राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (NSSO) ने बेरोजगारी को इस प्रकार परिभाषित किया है कि यह वह अवस्था है, जिसमें व्यक्ति काम के अभाव के कारण बिना काम के रह जाता है। परन्तु भारत में यह समस्या अनेक रूपों में हैं। इनके कुछ रूप हैं
1. प्रच्छन्न बेरोजगारी या अदृश्य बेरोजगारी – भारत के कृषि में फैली बेरोजगारी को अर्थशास्त्री प्रच्छन्न बेरोजगारी कहते हैं। यदि किसी एक किसान के पास चार एकड़ का भूखंड है और उसे अपने खेत में विभिन्न प्रकार की क्रियाओं को निष्पादित करने में दो श्रमिकों की आवश्यकता है, किन्तु यदि वह अपने परिवार के 5 सदस्यों को कृषिकार्य में लगा ले तो यह स्थिति प्रच्छन्न बेरोजगारी के नाम से जानी जाती है। 1950 के एक कृषि अध्ययन के द्वारा भारत में एक-तिहाई कृषि श्रमिकों को प्रच्छन्न रूप से बेरोजगार दिखाया गया था।
2. मौसमी बेरोजगारी – यह कृषि में प्रचलित बेरोजगारी है जिसमें कृषकों एवं कृषि-मजदूरों को फसलों की बुआई, कटाई के वक्त तो आसानी से रोजगार मिल जाता है लेकिन उसके बाद उन्हें कोई रोजगार नहीं मिलता।
3. औद्योगिक बेरोजगारी- उद्योगों में काम करने वाले श्रमिक संबंधित उद्योग के बंद हो जाने अथवा श्रमिकों की छंटनी के कारण बेरोजगार हो जाते हैं। अकुशल औद्योगिक श्रमिकों की ऐसी स्थिति काफी समस्याओं से भरी होती है, क्योंकि उनके पास रोजगार का कोई वैकल्पिक साधन उपलब्ध नहीं होता।
4. खुली बेरोजगारी – कई लोग काम के अभाव में अपने घरों में ही बैठे होते हैं। ऐसे बेरोजगार किसी दूसरे काम की तलाश भी नहीं करते। ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी ही बेरोजगारी विद्यमान है।
5. शिक्षित बेरोजगार – मानव संसाधन के विकास अथवा ज्यादा कार्यकुशल बनाने के लिए उसे शिक्षित किया जाता है। यदि शिक्षा – प्राप्ति के बाद भी व्यक्ति बेरोजगार रहे तो यह शिक्षित बेरोजगारी की स्थिति है। हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली के कारण ऐसे बेरोजगारों की संख्या बढ़ती जा रही है ।
बेरोजगारी तथा गरीबी की समस्या के समाधान के लिए 2006 में सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (NREGA) कानून, जिसे अब महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (MNREGA) कहा जाता है, बनाया। इसके तहत देश के ग्रामीण परिवारों के सदस्यों को 100 दिन का काम उपलब्ध कराने की गारंटी दी जाती है। मजदूरी के रूप में एक निश्चित धनराशि नकद दी जाती है। सरकार की यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी समाप्त करने में एक कारगर कदम है। मजदूरों को अपने पंचायत अथवा पास के पंचायत में काम मिल जाता है। इससे छोटे एवं सीमांत किसान भी लाभान्वित हो रहे हैं। यह योजना ग्रामीण अवसंरचना विकास पर कार्य कर रही है। हमारे गांव यदि पिछड़े हुए हैं तो इसका यह भी कारण है कि गांवों में आधारभूत संरचना, यथा – सड़क, बांध, तालाब, छोटी नहरों आदि का अभाव है। इस योजना से इनका विकास व्यापक तौर पर हो रहा है। तीसरी बात इस योजना का लाभ महिलाओं को भी मिल रहा है। यदि पुरुष कृषिकार्य अथवा अन्य कार्यों में लगा है एवं महिला को MNREGA के तहत मजदूरी मिल रही है तो परिवार की आमदनी बढ़ी है। उसी प्रकार ग्राम्य क्षेत्र के बाजार में धन का प्रवाह हुआ है जिससे व्यापार एवं संबंधित उद्योगों को भी लाभ पहुंचा है। यद्यपि देश से गरीबी अथवा बेरोजगारी को कम करने में ये योजना सक्षम है परन्तु इन योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने की आवश्यकता है। साथ ही राज्य स्तर पर MNREGI के तहत करवाये जाने वाले कार्यों की रूपरेखा तैयार होनी चाहिए जिससे इसका फायदा स्थायी हो सके।
• भारत में बेरोजगारी की प्रकृति –
> प्रच्छन्न बेरोजगारी या अदृश्य बेरोजगारी – मुख्यतः कृषि क्षेत्र में
> मौसमी बेरोजगारी – मुख्यतः कृषि में
> औद्योगिक बेरोजगारी
> खुली बेरोजगारी
> शिक्षित बेरोजगारी
> MNREGA ग्रामीण निर्धनता को दूर करने में बहुत हद तक सक्षम है।
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