चुनाव प्रचार से आप क्या समझते हैं ? बिहार के चुनाव प्रचार की महत्वपूर्ण पद्धतियों पर प्रकाश डालिए।

चुनाव प्रचार से आप क्या समझते हैं ? बिहार के चुनाव प्रचार की महत्वपूर्ण पद्धतियों पर प्रकाश डालिए।

अथवा

चुनाव प्रचार का अर्थ, इसकी उपयोगिता के साथ ही बिहार के चुनाव प्रचार की सामान्य एवं स्थानीय पद्धतियों का वर्णन करें।
उत्तर- संसद, राज्य विधानसभा तथा स्थानीय निकायों के चुनाव में विभिन्न पार्टियों, प्रत्याशियों तथा उनके समर्थकों द्वारा अपनी नीति, विशेषता तथा कार्ययोजना के बारे में विभिन्न साधनों के माध्यम से जनता को अवगत करवाना ही चुनाव प्रचार है।
चुनाव प्रचार के माध्यम से राजनीतिक दल जनता को राजनीतिक शिक्षा प्रदान करते हैं जिससे लोगों में चुनाव तथा लोकतंत्र के प्रति एक रूझान पैदा होता है जो लोकतंत्र की मजबूती में सहायक सिद्ध होता है। दूसरी बात जनता के मध्य अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए पार्टियां विभिन्न घोषणाएं तथा वादे करते हैं जिससे पाटियों में उत्तदायित्व की भावना पैदा होती है।
बिहार में चुनाव प्रचार के लिए कुछ सामान्य तरीकों के साथ ही स्थानीय तरीकों को भी आजमाया जाता है। पार्टियों के प्रमुख नेता अपनी पार्टी की नीतियों तथा भविष्य की कार्ययोजना से जनता को अवगत करवाते हैं तथा उन्हें पूरा करने का वादा करते हैं। बिहार में मतदाता जाति आधारित वोट बैंक में बंटे हुए हैं, इसका उपयोग नेता अपने चुनावी भाषणों में करते हैं तथा जाति-आधारित चुनाव को हवा देते हैं। परंतु हाल के विधान सभा में बिहार का यह मिथक टूटा है एवं जनता ने जाति-आधारित राजनीति को दरकिनार कर विकास – आधारित राजनीति को बहुमत प्रदान किया है। यह बिहार की जनता की राजनीतिक परिपक्वता को प्रदर्शित करता है। बड़े नेताओं द्वारा बड़ी-बड़ी जनसभाओं को संबोधित करने के अलावा भी चुनाव प्रचार के लिए छोटी-बड़ी रैलियों का आयोजन, नुक्कड़ नाटक आदि का आयोजन किया जाता है। ये सभी चीजें जनतंत्र में लोकतंत्र के प्रति रुचि एवं जागरुकता पैदा करने के लिए किया जाता है जिससे जनता राजनीति की गूढ़ चीजों को इन सरल माध्यमों से समझ सकें।
राजनीतिक पार्टियां चुनाव प्रचार के लिए और भी तरीके अपनाते हैं, जैसे- घर-घर जाकर लोगों को मतदान के लिए प्रेरित करना, अपनी पार्टी की विशेषताओं को बतलाना, पोस्टर, बैनर आदि दीवारों पर लगवाना आदि। पार्टियां कभी-कभी प्रचार के लिए अनैतिक एवं गलत तरीके भी अपनाती हैं, जैसे- मतदाताओं के मध्य रुपये या उपहार बांटना तथा लोगों को धमकाना आदि । विगत कुछ वर्षों से चुनाव आयोग ने इस पर कड़ा रूख अपनाया है जिससे ऐसी प्रवृत्तियों पर अंकुश लगा है।
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