जैसलमेर, करौली, अलवर का इतिहास

जैसलमेर, करौली, अलवर का इतिहास

जैसलमेर का भाटी वंश

 जैसलमेर के भाटी चन्द्रवंशीय यादव थे और अपना सम्बन्ध भगवान कृष्ण से जोड़ते थे
भट्टीय –
 भट्टीय नामक व्यक्ति ने 285 ई. में भाटी वंश की स्थापना की। इसने भटनेर का किला बनवाकर इसे अपनी राजधानी बनाया ।
मंगलराव भाटी-
 मंगलराव भाटी को गजनी के डुण्डी ने पराजित कर भटनेर से निकाल दिया, तत्पश्चात् इसने तनोट को राजधानी बनाया।
देवराज भाटी –
 इसने लोद्रवा को राजधानी बनाया।
रावल जैसल
 रावल जैसल ने 1155 ई. में जैसलमेर बसाकर जैसलमेर को राजधानी बनाया ।
 रावल जैसल ने ही जैसलमेर के स्वर्ण गिरि (सोनगढ़) किले का निर्माण प्रारम्भ करवाया था जिसे उसके पुत्र शालिवाहन द्वितीय ने पूर्ण करवाया ।
 जैसलमेर के किले में चूने का प्रयोग नहीं किया गया बल्कि यह पत्थर पर पत्थर रखकर बनाया गया है ।
रावल मूलराज प्रथम
 मूलराज प्रथम के समय अलाउद्दीन खिलजी (1296 – 1316 ई.) ने जैसलमेर पर आक्रमण किया। इसी समय जैसलमेर का प्रथम साका हुआ ।
रावल दूदा –
 रावल दूदा के समय फिरोजशाह तुगलक (1351-1388 ई.) ने आक्रमण किया, परिणामतः जैसलमेर का दूसरा साका हुआ।
रावल लूणकरण –
 जैसलमेर के रावल लूणकरण ने अपनी पुत्री ऊमादे (रूठी रानी) का विवाह राव मालदेव से किया था ।
 जैसलमेर का तीसरा साका रावल लूणकरण के समय 1550 ई. में शरणागत अमीर खाँ के विश्वासघात के कारण हुआ।
तीसरे साके को ‘अर्द्धसाका’ कहा जाता है। इसमें  पुरुषों ने तो वीरगति प्राप्त की परन्तु महिलाओं ने जौहर नहीं किया क्योंकि भाटी सेना अन्ततः विजयी रही थी ।
रावल हरराय –
 रावल हरराय ने 1570 ई. में नागौर दरबार में अकबर की अधीनता स्वीकार कर वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये ।
रावल अमरसिंह –
 रावल अमरसिंह ने सिन्धु नदी का पानी जैसलमेर लाने के लिए ‘अमरप्रकाश’ नामक नाले का निर्माण करवाया था।
रावल अखैसिंह –
 अखैसिंह ने अखैशाही मुद्रा तथा जैसलमेर रियासत में तोलने हेतु नवीन बाँटों का प्रचलन किया था । जैसलमेर रियासत में कर प्रणाली को निश्चित व नियमित करने का श्रेय अखैसिंह को दिया जाता है।
मूलराज द्वितीय –
 12 दिसम्बर, 1818 ई. को अंग्रेजों से अधीनस्थ सन्धि की ।
गजसिंह –
 महारावल गजसिंह ने अफगान युद्ध (1878 ई.) में अंग्रेजों को सहायता दी थी ।
रणजीतसिंह –
  रणजीतसिंह के समय ही जैसलमेर की शिल्प कला को अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई।
महारावल जवाहरसिंह–
 महारावल जवाहरसिंह जैसलमेर के भाटी राजवंश के अन्तिम शासक थे।
 इनके समय ही प्रसिद्ध क्रान्तिकारी सागरमल गोपा को 4 अप्रैल, 1946 को तेल डालकर जीवित जला दिया गया था। सागरमल गोपा ने ‘जैसलमेर का गुण्डाराज’ नामक पत्रिका लिखी थी।
 सागरमल गोपा की मृत्यु के कारणों की जाँच करने के लिए ‘गोपाल स्वरूप पाठक आयोग’ गठित किया गया जिसने इस घटना को आत्महत्या बताया।
 एकीकरण के समय जवाहरसिंह ने जोधपुर महाराजा हनुवंतसिंह के साथ मिलकर पाकिस्तान में शामिल होने का प्रयास किया था।

करौली का यादव वंश

विजयपाल –
 करौली के यादव राजवंश की स्थापना 1040 ई. में विजयपाल ने की। वह मथुरा के यादव वंश से सम्बन्धित था।
 विजयपाल ने बयाना को राजधानी बनाया। बयाना के विजयमन्दिरगढ़ किले का निर्माण विजयपाल ने करवाया था।
तवनपाल –
 विजयपाल के पुत्र तवनपाल या तिमनपाल ने तिमनगढ़ बसाया तथा किले का निर्माण करवाकर इसे अपनी राजधानी बनाया।
अर्जुनपाल –
 अर्जुनपाल ने 1348 ई. में कल्याणपुर (वर्तमान करौली) नगर की स्थापना की।
धर्मपाल द्वितीय –
 इसने 1650 ई. में करौली को राजधानी बनाया।
गोपालपाल –
 गोपालपाल ने करौली में मदनमोहन मन्दिर का निर्माण करवाया। यह राजस्थान में गौड़ीय सम्प्रदाय की द्वितीय पीठ माना जाता है।
हरबख्सपल –
 9 नवम्बर, 1817 ई. को अंग्रेजों से सन्धि की। करौली राजस्थान की प्रथम रियासत थी जिसने अंग्रेजों से अधीनस्थ सन्धि की।
मदनपाल –
 1857 के विद्रोह के समय कोटा महाराव रामसिंह की सहायता के लिए सेना भेजी थी।
 स्वामी दयानन्द सरस्वती राजस्थान में सर्वप्रथम 1865 ई. में करौली में मदनपाल के समय ही आए थे।

अलवर राज्य

 आमेर के रामसिंह ने 1671 ई. में कल्याणसिंह नरूका को माचेड़ी की जागीर प्रदान की थी। वह कछवाहों की नरूका शाखा से सम्बन्धित था।
प्रतापसिंह नरूका-
 अलवर राज्य की स्थापना 1774 ई. में प्रतापसिंह नरूका ने की। मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय ने 1774 ई. में प्रतापसिंह नरूका को माचेड़ी का पृथक् शासक स्वीकार कर उसे ‘रावराजा बहादुर’ की उपाधि प्रदान की।
 दिसम्बर, 1775 ई. में प्रतापसिंह ने जाटों से अलवर छीनकर इसे राजधानी बनाया ।
बख्तावरसिंह
 इसने लासवाड़ी के युद्ध (1803 ई.) में मराठों के खिलाफ अंग्रेजों को सहायता दी थी। परिणामतः नवम्बर, 1803 ई. में अंग्रेजों ने अलवर राज्य के साथ मैत्री सन्धि की ।
 बख्तावर सिंह बख्तेश तथा चन्द्रमुखी नाम से कविताएँ लिखते थे ।
विनयसिंह
 विनयसिंह ने अलवर में 80 खम्भों वाली मूसीरानी की छतरी का निर्माण करवाया। मूसीरानी बख्तावरसिंह की पासवान थी।
 विनयसिंह ने अपनी रानी शीला के लिए 1845 ई. में सिलिसेढ़ झील के किनारे सिलिसेढ़ महल का निर्माण करवाया।
जयसिंह –
 महाराजा जयसिंह ने ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग की शिकार यात्रा के दौरान सरिस्का पैलेस का निर्माण करवाया था ।
 विजयमन्दिर महल का निर्माण जयसिंह ने 1918 ई. में करवाया था।

भरतपुर का जाट राज्य

 औरंगजेब के शासनकाल में प्रथम संगठित जन-आन्दोलन दिल्ली, आगरा व मथुरा के आसपास बसे जाट किसानों ने किया।
 इस विद्रोह की शुरुआत 1669 ई. में तिलपत के जाट जमींदार गोकुल के नेतृत्व में हुई।
 1670 ई. में गोकुल की हत्या के बाद 1685 ई. में सिनसिनी के जमींदार राजाराम जाट ने विद्रोह का नेतृत्व किया। राजाराम ने 1687 ई. में सिकन्दरा (आगरा के समीप) में स्थित अकबर के मकबरे को लूटा तथा अस्थियों को जला दिया।
चूड़ामन जाट
 1688 ई. में राजाराम की हत्या के बाद उसके भतीजे चूड़ामन ने जाट विद्रोह की कमान संभाली, उसने स्वतंत्र जाट राज्य की स्थापना कर थूण को राजधानी बनाया तथा थूण के किले का निर्माण करवाया।
बदनसिंह ( 1722-1756 ई. ) –
 चूड़ामन की मृत्यु के बाद उसके पुत्र मोहकमसिंह के विरुद्ध चूड़ामन के भाई भावसिंह का पुत्र बदनसिंह सवाई जयसिंह से मिल गया।
 सवाई जयसिंह की सहायता से 1722 ई. में बदनसिंह जाट शासक बन गया। सवाई जयसिंह ने उसे ‘ब्रजराज’ की उपाधि और डीग की जागीर प्रदान की। बदनसिंह स्वयं को सवाई जयसिंह का सामन्त मानता था।
 बादशाह मोहम्मदशाह ने बदनसिंह को ‘राजा’ की उपाधि प्रदान की थी। बदनसिंह को भरतपुर के जाट राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता 1
 बदनसिंह ने डीग के किले का निर्माण करवाया तथा डीग को राजधानी बनाया। डीग के जलमहलों का निर्माण बदनसिंह के समय प्रारम्भ हुआ था । बदनसिंह के शासनकाल में डीग, कुम्हेर और भरतपुर के दुर्गों का निर्माण हुआ।
सूरजमल (1756-1763 ई.) –
 बदनसिंह के पुत्र सूरजमल को ‘जाटों का अफलातून’ और ‘प्लेटो’ कहा जाता है।
 सूरजमल ने डीग के जलमहलों का निर्माण पूरा करवाया और भरतपुर को राजधानी बनाया।
 सूरजमल ने भरतपुर के प्रसिद्ध लोहागढ़ दुर्ग का निर्माण 1733 से 1741 ई. के मध्य करवाया था।
जवाहरसिंह (1763-1768 ई.) –
 जवाहरसिंह ने 1764 ई. में (शाहआलम द्वितीय के समय) दिल्ली पर आक्रमण किया तथा लाल किले से अष्टधातु के दरवाजे लाकर भरतपुर के दुर्ग में लगवाए।
 दिल्ली विजय की स्मृति में जवाहरसिंह ने भरतपुर के दुर्ग में जवाहर बुर्ज का निर्माण करवाया था ।
रणजीतसिंह (1775-1805 ई. ) –
 सितम्बर, 1803 ई. में रणजीतसिंह ने अंग्रेजों से मैत्री सन्धि की। यह राजपूताने में अंग्रेजों की प्रथम मैत्री सन्धि थी । ( दूसरी सन्धि दिसम्बर, 1803 ई. में अलवर राज्य के साथ ) ।
 जसवन्तराव होल्कर को शरण देने के कारण अंग्रेज सेनापति लॉर्ड लेक ने जनवरी, 1805 ई. में 10 हजार सेना के साथ भरतपुर पर आक्रमण कर दिया परन्तु चार माह के घेरे और तमाम कोशिशों के बावजूद लॉर्ड लेक भरतपुर के किले को नहीं जीत सका। इसी समय से भरतपुर दुर्ग ‘लोहागढ़’ नाम से प्रसिद्ध हो गया ।
रणधीरसिंह (1805-1823 ई. ) –
 1818 ई. में रणधीरसिंह ने अंग्रेजों से सन्धि कर अधीनता स्वीकार कर ली ।

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