गांधी की रहस्यात्मकता में मौलिक विचारों का दांव-पेंचों की सहज प्रवृत्ति और लोक चेतना में अनोखी पैठ के साथ अनोखा मेल शामिल है। ” व्याख्या कीजिए।
गांधी की रहस्यात्मकता में मौलिक विचारों का दांव-पेंचों की सहज प्रवृत्ति और लोक चेतना में अनोखी पैठ के साथ अनोखा मेल शामिल है। ” व्याख्या कीजिए।
(60-62वीं BPSC / 2018 )
अथवा
गांधी जी के दर्शन में छुपे मौलिकता, सामाजिकता तथा लोक कल्याण की भावना को स्पष्ट करते हुए उनकी लोक प्रसिद्धि का वर्णन करें।
उत्तर – वैश्विक स्तर पर व्याप्त हिंसा, मतभेद, बेरोजगारी महंगाई तथा तनावपूर्ण वातावरण में जिस दर्शन की सर्वाधिक आवश्यकता महसूस की जा रही है वह है, गांधीवादी दर्शन | गांधीवादी दर्शन सत्य, अहिंसा और प्रेम पर आधारित है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का व्यक्तित्व और कृतित्व आदर्शवादी रहा है। उनका आचरण प्रयोजनवादी विचारधारा से ओत-प्रोत था। संसार के अधिकांश लोग उन्हें रहस्यवादी राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक के रूप में जानते हैं। महात्मा गांधी ने किसी नए दर्शन की रचना नहीं की है, वरन् उनके विचारों का जो दार्शनिक आधार है, वही गांधी दर्शन है। गांधी दर्शन मौलिक विचारों पर आधारित सामाजिक दर्शन है। उनका दर्शन एक प्रकार से जीवन, मानव समाज और जगत का नैतिक भाष्य है। इसी की मर्म दृष्टि से उनकी अहिंसा का प्रादुर्भाव हुआ है। वह मानते हैं कि जगत में जो कुछ भी अनैतिक है वह सब हिंसा है। अन्याय और अनीति के सम्मुख मस्तक झुकाना पाप है।
महात्मा गांधी ने सर्वप्रथम सत्य और अहिंसा का प्रयोग दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद मिटाने के खिलाफ किया। अपने सत्याग्रह के प्रयोग से दक्षिण अफ्रीका में वे काफी मशहूर हो गये। 1915 में भारत वापसी पर भारतीय जनमानस उनसे काफी प्रभावित थी। भारतीय जनमानस ने उसके सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह के हथियार के बारे में समझना शुरू कर दिया था। भारत में उनका सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग चम्पारण में रहा, जहां उन्होंने तीनकठिया प्रथा (नील की खेती) के विरूद्ध एक सफल सत्याग्रह के माध्यम से भारतीय जनमानस में पैठ बना ली। इसका एक सफल उदाहरण असहयोग आंदोलन में भारी जन भागीदारी है। इस आंदोलन के बाद गांधी जी के व्यक्तित्व में काफी निखार आया। अब जनता ने बिना कुछ सोचे-समझे ही उनके पीछे चलना शुरू दिया। उन्हें अब गांधीजी में अलौकिक शक्ति का ओज दिखने लगा। जनता के मन में गांधीजी के व्यक्तित्व का यह आकर्षण गांधीजी की मृत्यु तक बना रहा।
असहयोग आन्दोलन के बाद गांधीजी ने रचनात्मक कार्यों को जनता तक पहुंचाने को वरीयता दी और चरखा, खादी, स्वच्छता आदि के माध्यम से जनता के बीच अपनी मजबूत पैठ के साथ भारतीय आन्दोलन में उनकी महत्वपूर्ण भागीदारी को सुनिश्चित किया। अंग्रेजी शासन भी गांधीजी की इस राजनीति को समझने में विफल रहा और छोटी-छोटी गलतियों के माध्यम से वह गांधी जी का काम आसान करता रहा। जनता के बीच उनके मौलिक कार्यों को सरकारी शासन मात्र एक सुधारवादी नजरिया से देखता रहा, परन्तु इन मौलिक कार्यों और रचनात्मकता के पीछे गांधीजी की दूरदृष्टि वाली सोच थी। इसके माध्यम से वे जनता को स्वतंत्रता आन्दोलनों के लिए तैयार करते रहे । उनको आत्मनिर्भर बना अंग्रेजी शासन को कमजोर करते रहे। खादी के उपयोग को बढ़ावा देकर अंग्रेजी वस्तुओं/कपड़ों का अघोषित बहिष्कार किया। जब तक अंग्रेज उनकी इस राजनीति को समझते, तब तक भारतीय जनता जागरूक हो चुकी थी।
उन्होंने जहां एक ओर भारतवासियों में स्वाधीनता की भावना जागृत की वहीं, उनके सामाजिक जीवन को भी प्रभावित किया। गांधीजी ने पहली बार सत्य, अहिंसा और शत्रु के प्रति प्रेम के आध्यात्मिक और नैतिक सिद्धांतों का राजनीति के क्षेत्र में व्यापक प्रयोग कर महत्वपूर्ण जनभागीदारी प्राप्त की तथा जनता के हृदय में सत्य और अहिंसा के प्रति विश्वास जगाया। उनकी इस प्रतिभा से प्रभावित होकर लार्ड माउंटबेटन ने उनके बारे में कहा था- “जो काम 50 हजार हथियारबन्द सेना नहीं कर सकी थी, वह गांधीजी ने कर दिया। वे अकेले ही पूरी सेना हैं ” ।
उन्होंने महिलाओं की स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी को महत्वपूर्ण बताया। वे महिलाओं, दलितों आदि की सामाजिक स्थिति को उन्नत करने के लिए भी लगातार प्रयत्नशील रहे। उन्होंने महिलाओं को रचनात्मक कार्यों के लिए प्रेरित किया, दलितों को समाज में बराबरी का हक दिलाने के लिए लगातार प्रयत्नशील रहे।
गांधी जी की अहिंसा निष्क्रिय नहीं सक्रिय है। वह वीरता, दृढ़ता, संकल्प और धैर्य को आधार बनाकर खड़ी होती है। उनकी इस चिंतनधारा से असहयोग और सत्याग्रह का जन्म हुआ। उनकी दृष्टि में अहिंसा अमोघ शक्ति है जिसका प्रभाव कभी हो नहीं सकता। सशक्त विद्रोह से कहीं अधिक शक्ति अहिंसक विद्रोह में है। गांधीजी ने इसी अहिंसा का पाठ पढ़ाने के लिए ही असहयोग आंदोलन के उग्र होने पर इसे वापस ले लिया था। गांधीजी सदा रक्तहीन क्रान्ति के पक्ष में थे।
इस प्रकार गांधीजी ने एक सरल लेकिन महत्वपूर्ण दर्शन के साथ लोकचेतना का प्रसार किया। गांधीवादी दर्शन समाज के सभी वर्गों को जोड़ने में कामयाब रहा। गांधीवादी दर्शन में एक महत्वपूर्ण मोड़ 1920 में तब आया जब महिला क्रांतिकारी मोर्चा ने असहयोग आन्दोलन में भागीदारी की। 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में महत्वपूर्ण नेताओं के गिरफ्तार होने के बाद भी आन्दोलन सक्रिय रूप से चलता रहा। इसे स्वतः स्फूर्त आन्दोलन भी कहा जा सकता है। यह गांधीजी के लोकचेतना के प्रसार के कारण ही सम्भव हो सका। इस आन्दोलन के परिप्रेक्ष्य में पत्रकार वेब मिलर तथा लुई फिशर ने नेतृत्व विहीन आन्दोलन की सफलता का वर्णन किया। गांधीजी की इस लोकचेतना ने सभी भाषा, धर्म, संस्कृति को समभाव दृष्टि से प्रभावित किया। अपने सर्वोदय दर्शन में गांधीजी ने जहां एक ओर गरीबों के भौतिकवादी उत्थान की बात की, वहीं दूसरी ओर अमीरों के नैतिक उत्थान की बात करके सभी के उदय की परिकल्पना प्रस्तुत की। इस हेतु उन्होंने न्यासिता (Trusteeship) का सिद्धांत प्रस्तुत किया।
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि महात्मा गांधी ने राजनीति, समाज, अर्थ एवं धर्म के क्षेत्र में आदर्श स्थापित किए व उसी के अनुरूप लक्ष्य प्राप्ति के लिए स्वयं को समर्पित ही नहीं किया, बल्कि देश की जनता को भी प्रेरित किया व इसके आशानुरूप परिणाम भी प्राप्त किए। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विश्व जिस विनाश के ज्वालामुखी पर खड़ा है उससे केवल गांधीजी के आदर्श ही बचा सकते हैं। श्री मन्नारायण के शब्दों में- “आज के मानव के सभी दुखों को दूर करने का एकमात्र रामबाण औषधि गांधीवाद है । “
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