भारत में मृदा अपरदन के प्रमुख भौतिक एवं सांस्कृतिक कारण बताइये।

भारत में मृदा अपरदन के प्रमुख भौतिक एवं सांस्कृतिक कारण बताइये।

(39वीं BPSC/1993 )
अथवा
मृदा अपरदन के भौतिक कारण (प्राकृतिक कारण) एवं सांस्कृतिक कारण (मानवीय कारण) बताएं |
उत्तर – मृदा के आवरण का विनाश, मृदा अपरदन कहलाता है। बहते जल और पवनों की अपरदनात्मक प्रक्रियाएं तथा मृदा निर्माणकारी प्रक्रियाएं साथ-साथ घटित हो रही होती हैं। सामान्यतः इन दोनों प्रक्रियाओं में एक संतुलन बना रहता है लेकिन कई बार प्राकृतिक अथवा मानवीय कारकों से यह संतुलन बिगड़ जाता है जिससे मृदा के अपरदन की दर बढ़ जाती है।
मृदा अपरदन के लिए मानवीय गतिविधियां काफी हद तक उत्तरदायी हैं। जनसंख्या बढ़ने के साथ भूमि की मांग बढ़ने लगती है। मानव द्वारा बस्तियों, कृषि, पशुचारण तथा अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वन तथा अन्य प्राकृतिक वनस्पति साफ कर दी जाती है। इन वनविहीन भूमि पर वर्षा की बूंदें सीधे पड़ती हैं जिससे भूमि की परत का क्षय प्रारंभ हो जाता है। इसी प्रकार पशुचारण से घास एवं अन्य वनस्पति समाप्त हो जाती है और जिससे भूमि धीरे-धीरे मरुस्थल में बदलने लगता है एवं उसका पवन द्वारा अपरदन प्रारंभ हो जाता है। ऐसी भूमि पर वर्षा में भी कमी हो जाती है। कृषि के विभिन्न तरीकों के कारण भी मृदा अपरदन को बढ़ावा मिलता है। जैसे कुछ आदिवासियों द्वारा खेती की एक ऐसी विधि अपनाई जाती है जिसमें एक जगह के जंगलों को साफ कर खेती की जाती है एवं मिट्टी की उर्वरा कम हो जाने पर नए स्थान को खेती के लिए चुना जाता है। इस प्रकार निरंतर वनों के कटने से मृदा अपरदन को बढ़ावा मिलता है। इसी तरह आजकल पहाड़ों को भी साफ कर खेती की जा रही है अथवा कुछ जगहों में आवासों का निर्माण किया जा रहा है। इससे मृदा अपरदन को बढ़ावा मिलता है। –
मृदा अपरदन के कुछ प्राकृतिक कारण भी हैं जो मानवीय गतिविधियों के कारण मृदा अपरदन के लिए उत्तरदायी हैं। इनमें पवन और जल मृदा अपरदन के दो शक्तिशाली कारक हैं। पवन द्वारा अपरदन शुष्क और अर्द्ध-शुष्क प्रदेशों में महत्वपूर्ण रूप से होता है। भारी वर्षा और खड़ी ढालों वाले प्रदेशों में बहते जल द्वारा किया गया अपरदन महत्वपूर्ण है। जल अपरदन अपेक्षाकृत अधिक गंभीर समस्या है और यह भारत के विस्तृत क्षेत्रों में हो रहा है। जल अपरदन दो रूपों में होता है- परत अपरदन और अवनालिका अपरदन । परंत अपरदन समतल भूमियों पर मूसलाधार वर्षा के बाद होता है और इसमें मृदा का हटना आसानी से दिखाई भी नहीं देता, किन्तु यह अधिक हानिकारक है, क्योंकि इससे मिट्टी की सूक्ष्म और अधिक उर्वर ऊपरी परत हट जाती है। अवनालिका अपरदन सामान्यतः तीव्र ढालों पर होती है
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