जीवों में जनन (Reproduction in Organisms)
जीवों में जनन (Reproduction in Organisms)
जीवों में जनन (Reproduction in Organisms)
अपने वंश व प्रजाति की निरन्तरता को बनाने के लिए माता-पिता से सन्तान का जन्म होता है, उस क्रिया को जनन कहते हैं। जीवों में जनन के लिए जननांग उपस्थित होते हैं।
जनन प्रक्रिया मुख्यतया दो प्रकार की होती है, अलैगिक जनन तथा लैंगिक जनन ।
अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction)
अलैगिक जनन में सन्तान के जन्म में दो जनकों के युग्मकों (gametes) का निषेचन (fertilisation) नहीं होकर एकल जनक से होता है। इसके फलस्वरूप, जिस सन्तान का जन्म होता है, वह आनुवंशिकी रूप से अपने जनक के समान होती है।
अलैंगिक जनन के लक्षण (Characteristics of Asexual Reproduction)
(i) इसमें जनक एक ही होता है।
(ii) इसमें नए जीव का केवल कायिक कोशिकाओं द्वारा जनन होता है। अतः इसे कायिक प्रजनन (vegetative reproduction) भी कहते हैं।
(iii) यह समसूत्री (mitotic) विभाजन द्वारा होता है।
(iv) इसमें युग्मकों का निर्माण व निषेचन नहीं होता।
(v) आनुवंशिकी व आकारीय रूप से समरूप सन्तति को क्लोन (clone) कहते हैं। अलैंगिक जनन विधि मुख्यतया एकल जीव, निचले पादप तथा जन्तुओं में पाई जाती है। उदाहरण पादपों, प्रोटोजोआ तथा कुछ निम्न जीव जैसे प्रोटिस्टा, स्पंज, सिलेन्ट्रेटा व प्लेनेरिया में होती है।
◆ अलैंगिक जनन उच्च अकशेरुकी (higher invertebrates) व सभी कशेरुकियों (vertebrates) में अनुपस्थित होती है।
लैंगिक जनन (Sexual Reproduction)
इस प्रकार के जनन में जो जनक होते हैं, वे विपरीत लिगों के होते हैं। इनके युग्मकों के निषेचन द्वारा नए जीव का जनन होता है।
लैंगिक जनन के लक्षण (Characteristics of Sexual Reproduction)
(i) इस विधि में पूरक लिंग स्त्री व पुरुष सम्मिलित होते हैं।
(ii) अर्धसूत्री विभाजन के फलस्वरूप नर व मादा युग्मकों का निर्माण होता है।
(iii) इस विधि में मादा व नर युग्मकों का निषेचन होता है, जिसके फलस्वरूप युग्मनज (zygote) का निर्माण होता है।
(iv) लैंगिक जनन से उत्पन्न सन्तति, अपने माता व पिता के समरूप नहीं होती अपितु कुछ लक्षण समान होते हैं।
(v) लैंगिक जनन अधिकतर उच्च पादपों तथा जन्तुओं में होता है।
लैंगिक जनन की घटनाएँ (Events in Sexual Reproduction)
सभी जीवों के लैंगिक जनन में कुछ मूलभूत समानताएँ (fundamental similarities) पाई जाती हैं परन्तु सभी जीवों के मादा तथा नर युग्मकों में अन्तर पाया जाता है। लैंगिक जनन की सम्पूर्ण क्रिया को तीन भागों में विभक्त किया गया है
निषेचन से पूर्व की घटनाएँ (Pre-Fertilisation Events)
युग्मकों के निषेचन से पूर्व होने वाली सभी घटनाएँ इस अवस्था में आती हैं। इस अवस्था में युग्मक जनन (gametogenesis) होता है तथा नर युग्मक का मादा युग्मक तक स्थानान्तरण (translocation) होता है।
निषेचन (Fertilisation)
इस प्रक्रिया में नर तथा मादा युग्मकों के संलयन में द्विगुणित युग्मन (diploid zygote) बनता है। यह क्रिया युग्मक संलयन (syngamy) भी कहलाती है। निषेचन प्रक्रिया दो प्रकार की होती है
(i) बाह्य निषेचन (External Fertilisation) जब निषेचन मादा शरीर के बाहर किसी अन्य जगह पर होता है, उस निषेचन को बाह्य निषेचन कहते हैं। यह अधिकतर जलीय जीवों में पाई जाती है। उदाहरण मछलियाँ, शैवाल, उभयचर, आदि।
(ii) आन्तरिक निषेचन (Internal Fertilisation) जब निषेचन मादा शरीर के अन्दर होता है, तो वह निषेचन आन्तरिक निषेचन कहलाता है। उदाहरण स्थलीय जीव, फंजाई, सरीसृप, पक्षी, स्तनधारी तथा पादप (ब्रायोफाइटा, टेरिडोफाइटा, आवृतबीजी व अनावृतबीजी), आदि। इनमें नर युग्मक चलनशील होते हैं।
निषेचन के बाद की घटनाएँ (Post-Fertilisation Events)
निषेचन के बाद होने वाली घटनाओं को इस अवस्था में रखा जाता है, जिसमें युग्मनज का निर्माण होता है तथा द्विगुणित युग्मनज में मादा के अन्दर वृद्धि होती है।
निषेचन के बाद की घटनाओं में एक महत्त्वपूर्ण घटना भ्रूणोद्भव (embryogenesis) है।
युग्मनज के मादा के शरीर के अन्दर व बाहर होने वाले विकास के आधार पर जीवों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है
(i) अण्ड प्रजक (Oviparous) अण्ड प्रजक प्राणी युग्मनज को निषेचित अण्डे के रूप में पर्यावरण में देते हैं, जो कठोर आवरण से ढका तथा कैल्शियम युक्त होता है। एक निश्चित अवधि व विकास के पश्चात् इन अण्डों से नए जीव का जन्म होता है। उदाहरण सरीसृप तथा पक्षी वर्ग के प्राणी।
(ii) जरायुज (Viviparous) सजीव प्रजक प्राणियों में मादा के शरीर के भीतर युग्मनज विकसित होता है तथा शिशु बनता है। एक निश्चित अवधि के पश्चात् विकसित शिशु मादा के गर्भ से प्रसव द्वारा पैदा होता है।
उदाहरण अधिकांशतया स्तनधारी जैसे मनुष्य, बन्दर एवं अन्य स्तनधारी (अण्डप्रजक प्लेटीपस व इकिडना के अतिरिक्त), आदि ।
◆ अण्ड प्रजक की अपेक्षा सजीव प्रजक जीवों के जीवित रहने की सम्भावना अधिक होती है क्योंकि इनमें शिशु का पूर्ण विकास व सुरक्षा होती है।
निम्न पादपों में जनन (Reproduction in Lower Plants)
निम्न पादपों में विभिन्न प्रकार से अलैगिक व लैंगिक जनन होता है
1. अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction)
निम्न पादपों में अलैंगिक जनन की विधियाँ निम्नलिखित हैं
विखण्डन (Fragmentation)
इस विधि में कवक सूत्र लम्बाई में बढ़ते हैं तथा किसी बाह्य शक्ति द्वारा दो या दो से अधिक भागों में टूटने पर प्रत्येक भाग नए कवक को जन्म देता है। उदाहरण स्पाइरोगायरा तन्तुमय हरी शैवाल विखण्डन द्वारा कायिक गुणन शैवालों में वृद्धि का एक आसान तरीका है, यूलोथ्रिक्स (Ulothrix)।
बीजाणु निर्माण (Spore Formation)
बहुत से बहुकोशिकीय जीवों में, बीजाणु प्रजनन कोशिका होती है, जिसमें वृद्धि करके नई सन्तति कोशिका (daughter cell) को जन्म देने की क्षमता होती है। शैवाल, फर्न, मॉस तथा कवक बीजाणु प्रजनन विधि द्वारा भी प्रजनन करते हैं। ये वीजाणुपोष (sporangia) के भीतर बीजाणु को बनाते हैं। बीजाणु के ऊपर मोटी भित्ति होती है, जो उसकी रक्षा करती है तथा वृद्धि के समय नमी वाली सतह पर आने पर वह टूट जाती है।
शैवाल व कवक में निम्न प्रकार के बीजाणु होते हैं
(i) चलबीजाणु (Zoospores) उदाहरण क्लैमाइडोमोनास, कवक, यूलोथ्रिक्स एवं ऊडोगोनियम में चलबीजाणु द्वारा जनन होता है।
(ii) स्पोरेन्जियोस्पोर्स (Sporangiospores) उदाहरण म्यूकर एवं राइजोपस।
(iii) कॉनिडिया (Conidia) उदाहरण पेनिसिलियम, एस्पर्जिलस एवं फ्यूजेरियम
(iv) सिस्ट (Cyst) उदाहरण वाऊचेरिया एवं बॉट्रिडियम।
2. लैंगिक जनन (Sexual Reproduction)
कवक व शैवाल में, प्रजनन अंग एककोशिकीय होते हैं, जबकि ब्रायोफाइट्स में प्रजनन अंग बहुकोशिकीय व अधिक विकसित होते हैं। ये प्रजनन अंग युग्मकोद्भिद् में धँसे होते हैं या उसके शीर्ष पर उपस्थित होते हैं। सामान्यतया शैवालों में नए युग्मक पुंकेसर (stamen) में तथा अचलनशील मादा युग्मक स्त्रीकेसर (archegonium) में बनते हैं। ये युग्मक, निषेचन की प्रक्रिया द्वारा जुड़ जाते हैं तथा युग्मनज (zygote) बनाते हैं।
जब विकसित स्त्रीकेसर जल को अवशोषित करता है, तो वह फूल जाता है, जिससे एक पात्र बनता है तथा श्लेष्म स्रावित होता है तथा पानी में फैल जाता है। इस श्लेष्म से आकर्षित होकर नर युग्मक, स्त्रीयुग्मक तक जाता है तथा निषेचन करके द्विगुणित युग्मनज बनाता है।
आवृतबीजी पादपों में जनन (Reproduction in Angiosperms or Flowering Plants)
आवृतबीजी पादपों में अलैंगिक व लैंगिक जनन दोनों प्रकार से होता है
1. लैंगिक प्रजनन (Asexual Reproduction)
इस प्रकार के प्रजनन में, पुष्पीय पादप असंगजनन (apomixis) करते हैं अर्थात् नए जीव का जनन कोशिकाओं के बिना प्रजनन या कायिक प्रवर्धन (vegetative propagation)
असंगजनन (Apomixis)
यह दो प्रकार से होता है.
(i) अनिषेकबीजता या अपस्थानिक भ्रूणता (Agamospermy or Adventive Embryogenesis) इस प्रकार के प्रजनन में बीज के निर्माण में बीजाण्डकाय (nucellus) अथवा अध्यावरणों (integuments) द्वारा होता है। उदाहरण नींबू (Citrus)।
(ii) अपबीजाणुता (Apospory or Recurrent Apomixis) इसमें द्विगुणित अण्डे का निर्माण अनिषेकजनन द्वारा होता है। उदाहरण प्याज (Allium) ।
कायिक प्रवर्धन (Vegetative Propagation)
कुछ पादपों में कायिक प्रवर्धन की इकाई निकलकर नई सन्तान को जन्म देने की क्षमता रखते हैं। ये संरचनाएँ कायिक प्रवर्ध कहलाती हैं। उदाहरण कायिक प्रवर्ध जैसे जड़, तना, पत्तियाँ व विभज्योतक ऊतक नए पादप के रूप में वृद्धि करते हैं। इसे प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन कहते हैं।
ऊतक संवर्धन (Tissue Culture )
ऊतक संवर्धन ऊतक व अंगों (पादप टुकडे) का प्रयोगशाला में पोषण की उपस्थिति में रोगहीन पादपों में विकास करना है। इस तकनीक को अन्तः पात्र सूक्ष्मप्रवर्धन (in vitro micropropagation) भी कहते हैं क्योंकि यह प्रयोगशाला में होती है तथा फिर पादपों को प्रयोगशाला से मृदा में व्यस्थापित करते हैं। यह तकनीक उच्च गुण वाली पादप प्रजातियों के जल्दी विकास के लिए बहुत अधिक उपयोग की जाती है। इस विधि में पादप के छोटे भाग को कहते हैं। पुष्प कलिका (flower buds) तनों के ऊतक, विकासशील कोशिकाओं व पत्तियों आदि को (explant) कहते हैं। इन्हें कृत्रिम माध्यम में उगाकर कैलस (callus) बनाते हैं अर्थात कोशिका का अविभेदित गुच्छा।
यह तकनीक सजावट वाले पादप जैसे कार्निशन, ऑर्किड, डहेलिया, आदि के उत्पादन हेतु अधिक प्रयोग की जाती है।
ऊतक संवर्धन तकनीक के निम्न लाभ हैं
√ इससे रोगहीन वातावरण में एकल जनक द्वारा अत्यधिक मात्रा में पादप विकसित किए जाते हैं।
√ इस विधि द्वारा पादपों को विभिन्न रोगों से बचाया जा सकता है।
√ सजावट योग्य पादपों का जल्दी विकास |
√ वातावरण का पादप वृद्धि पर प्रभाव न पड़ना।
2. लैंगिक जनन (Sexual Reproduction)
पुष्पीय पादपों में लैंगिक जननांग फूल में पाए जाते हैं, जिसमें फल बनता है, जिसके अन्दर बीज होता है जिन पुष्पों में नर व मादा जननांग दोनों होते हैं, उन्हें द्विलिंगी पुष्प (bisexual flower) कहते हैं। उदाहरण लिली, गुलाब, आदि। जिन पुष्पों में एक ही जननांग होते हैं, उन्हें एकलिंगी पुष्प (unisexual flower) कहते हैं।
उदाहरण पपीता, तरबूज, आदि ।
पुष्पों में पुष्पीय उपांगों (flower appendages) के चार समूह बाह्यदलपुँज, दलपुँज, पुमँग व जायाँग होते हैं। इनमें से पुमँग व जायाँग पुष्प के प्रजनन अंग होते हैं।
परागण (Pollination)
पुमंग में परागकणों (pollen grains) का निर्माण होता है, जो नर युग्मक (male gamete) उत्पन्न करते हैं। जायाँग में अण्डाशय का निर्माण होता है, जिसमें अण्डाणु (egg) बनता है। परागकणों के परागकोष (anther) से वर्तिकाग्र (stigma) तक पहुँचने की इस क्रिया को परागण (pollination) कहते हैं। परागकण के पश्चात् पुंकेसर और दल गिर जाते हैं। परागण दो प्रकार का होता है
(i) स्व – परागण (Self-Pollination or Autogamy) स्व-परागण में एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प अथवा उसी पादप के दूसरे पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचते हैं। ये द्विलिंगी व एकलिंगी दोनों पुष्पों में पाई जाती हैं।
(ii) पर-परागण (Cross-Pollination or Allogamy) पर-परागण में एक पुष्प के परागकण उसी जाति के दूसरे पादप के वर्तिकाग्र (stigma) पर पहुँचते हैं। इस क्रिया में बीज उत्पन्न करने के लिए एक ही जाति के दो पौधे काम में आते हैं। परागकणों को किसी दूसरे पुष्प के वर्तिकाग्र तक पहुँचने के लिए किसी साधन की आवश्यकता होती है।
परागण के कारक (Factors of Pollination)
परागण निम्न कारकों द्वारा हो सकता है। इनका विवरण निम्न है
परागण प्रक्रिया | परागण माध्यम |
वायु परागण | वायु द्वारा |
कीट परागण | कीटों द्वारा |
जल परागण | जल द्वारा |
जन्तु परागण | जन्तुओं द्वारा |
पक्षी परागण | पक्षियों द्वारा |
मोलस्का परागण | शंकु जन्तुओं द्वारा |
चमगादड़ परागण | चमगादड़ द्वारा |
निषेचन (Fertilisation)
परागण के तुरन्त बाद निषेचन प्रक्रिया होती है। नर व मादा युग्मकों के संयोजन (fusion) को निषेचन कहते हैं। परागकण नलिका, अण्डाशय के अन्दर तथा फिर बीजाण्ड के अन्दर प्रवेश कर बीजाण्डकाय (nucellus) तक जाकर भ्रूण व भ्रुणपोष बनाती है।
फल (Fruit )
फल, निषेचित अण्डाशय में मृदूतक उत्पन्न होने से बनता है। इन मृदूतक कोशिकाओं में बहुत से अम्ल, शर्करा तथा कुछ स्वादिष्ट पदार्थ उत्पन्न हो जाते हैं और अण्डाशय भित्ति पककर फलभित्ति में बदल जाती है, जो गुदायुक्त, उदाहरण अमरूद, टमाटर व खीरा या सूखी उदाहरण मटर, बीन, सरसों हो सकती है।
(i) सत्य फल (True Fruit) यदि फल केवल अण्डाशय से बनता है, तो उसे सत्यफल (true fruit) कहते हैं। उदाहरण मटर, आम, आदि।
(ii) कूट फल ( False Fruit ) कभी-कभी फल में अण्डाशय के साथ-साथ पुष्पासन, बाह्यदल, आदि भी भाग लेते हैं। उसे कूट फल कहते हैं। उदाहरण सेब व नाशपाती के बनने में पुष्पासन (thalamus) भाग लेता है। फलों के उत्पाद के अध्ययन को पोमोलॉजी (Pomology) कहते हैं ।
फलों का वर्गीकरण (Classification of Fruits)
फल मुख्यतया तीन प्रकार के होते हैं
(i) एकल फल (Simple Fruits) सरसों, बीन, नींबू, आम, आदि।
(ii) पुंजफल या समूह फल (Aggregate Fruits or Etaerio Fruits) रसभरी, सेब, स्ट्रॉबेरी, इत्यादि ।
(iii) संग्रथित फल ( Composite Fruits) कटहल, शहतूत, बरगद, आदि ।
कुछ फलों के खाने योग्य भाग (Some Fruits and their Edible Parts )
फल | फल का खाने योग्य भाग |
लीची (Litchi chinensis) | माँसल बीजचोल |
नारियल (Cocos nucifera) | भ्रूण तथा भ्रूणपोष (पूर्ण बीज भी ) |
मूँगफली (Arachis hypogaea ) | बीज पत्तियाँ व भ्रूण |
पपीता (Carica papaya) | मध्य फलभित्ति |
धनिया (Coriandrum sativum) | थैलेमस व बीज |
गेहूँ (Triticum aestivum) | भ्रूणपोष व भ्रूण |
वुड एप्पल (Limonia acidissima) | अन्तः व मध्य फलभित्ति |
आम (Mangifera indica) | माँसल मध्य फलभित्ति |
अँगूर (Vitis vinifera) | फलभित्ति तथा बीजाण्डासन |
अमरूद (Psidium guajava) | फलभित्ति, मध्य फलभित्ति तथा बीजाण्डासन |
टमाटर (Lycopersicum esculentum) | फलभित्ति तथा बीजाण्डासन |
नींबू (Citrus limon syn) | अन्तः फलभित्ति के रसदार एककोशिकीय रोम |
सेब (Pyrus malus syn Malus sylvestris) | माँसल पुष्पासन |
नाशपाती (Pyrus communtis) | माँसल पुष्पासन |
अंजीर (Ficus carica ) | माँसल आशय (receptacle) तथा बीज |
कटहल (Artocarpus heterophyllus) | सहपत्र, परिदलपुंज तथा बीज |
शहतूत (Morus alba) | परिदलपुँज |
बीज (Seeds)
ये परिपक्व बीजाण्ड द्वारा बनता है। ये दो प्रकार का होता है
(i) एल्ब्युमिन मुक्त / भ्रूणपोष मुक्त (Non-Endospermic or Non-Albuminous Seed) इनमें भ्रूणपोष नहीं पाया जाता है तथा ये अपना भोजन बीजपत्र में संचित करते हैं उदाहरण मटर, आदि ।
(ii) एल्ब्युमिन या भ्रूणपोष युक्त (Albuminous or Endospermic Seed) इनमें भ्रूणपोष पाया जाता है, जिसमें भोजन संचित होता है। उदाहरण अरण्डी, मक्का, चावल, आदि ।
जन्तुओं में जनन तन्त्र (Reproductive System in Animals)
जन्तु अलैंगिक व लैंगिक दोनों प्रकार से जनन करते हैं।
अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction)
यह प्रोटिस्टा, निडेरिया व ट्यूनिकेट्स में प्रजनन की प्राथमिक विधि है। अलैंगिक जनन निम्न विधियों द्वारा हो सकता है
लैंगिक जनन (Sexual Reproduction)
प्रजनन एक जैविक प्रक्रिया है जिसमें, माता-पिता द्वारा अपनी सन्तानों की उत्पत्ति की जाती है। प्रजनन की क्रिया करने हेतु एक विकसित प्रजनन तन्त्र होता है, जिसमें जीव प्रजनन हेतु जननांगों का उपयोग करते हैं। अधिकांश जीवों में मादा अण्डाणु (बड़ा अचलन शील, संघित भोजन सहित) व नर शुक्राणु (छोटा, चलनशील संचित भोजन हीन) उत्पन्न करते है। इन जीवों को एकलिंगी (dioecious) कहते हैं।
कुछ जीव द्विलिंगी (monoecious) होते हैं, जिसमें नर व मादा युग्मक एक ही जीव में बनते हैं। शुक्राणु व अण्डाणु का निषेचन उनकी चलनशीलता के आधार पर विभिन्न प्रकार से होता है।
मानव में जनन (Reproduction in Humans)
मानव सजीव प्रजक होते हैं, जो एकलिंगी होते हैं। ये अर्धसूत्री विभाजन (meiosis) द्वारा युग्मक (gametes) बनते है। इनके बनने की प्रक्रिया को युग्मकजनन कहते हैं। नर युग्मक शुक्राणु तथा मादा युग्मक अण्डाणु होते हैं। इनके संयुग्मन से युग्मनज (zygote) बनता है। इसी से नई सन्तान का विकास प्रारम्भ होता है।
रजोधर्म चक्र (Menstrual Cycle)
यह अण्डजनन एवं गर्भाशय में विविध परिवर्तनों की एक चक्रीय जनन शृंखला होती है जो रजोदर्शन (13-15 वर्ष) के समय से प्रारम्भ होती है। मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस, पीयूष ग्रन्थि तथा अण्डाशयों से स्रावित हॉर्मोन्स इस चक्र का नियन्त्रण करते हैं।
रजोधर्म के प्रारम्भ को रजोदर्शन (menarche) कहते हैं तथा यह 45-50 वर्ष की आयु में समाप्त होती है, जिसे रजोनिवृत्ति (menopause) कहते हैं। इस चक्र का औसत समय 28 दिन का होता है।
मानवों में जनन की कार्यिकी (Physiology of Reproduction in Humans)
मानव जनन कार्यिकी तीन चरणों में विभाजित होती है
युग्मकजनन (Gametogenesis)
युग्मक जनन नर व मादा जनन कोशिकाओं द्वारा एकगुणित (haploid) युग्मक (gamete) का बनना होता है। मादाव नर में युग्मकजनन निम्नवत् होता है
(i) शुक्राणुजनन (Spermatogenesis) पुरुषों में वृषण द्वारा शुक्राणु के बनने को शुक्राणु जनन कहते हैं। यह वृषण की शुक्रजन नलिकाओं में होता है, जिनमें जननिक कोशिकाएँ (germinal cells) होती है। एक शुक्र कोशिका से 4 कार्यरत शुक्राणु बनते हैं।
(ii) अण्डाणुजनन (Oogenesis) अण्डाणुजनन प्रक्रिया में स्त्री अण्डाशय से अण्डाणु (ovum) का निर्माण करना होता है। यह प्रक्रिया यौवनारम्भ (puberty) के बाद पीयूष (pituitary) ग्रन्थि से स्रावित हॉर्मोन्स के प्रभाव से प्रारम्भ होती है। यह तीन भागों में होती है
(a) गुणन (Multiplication)
(b) वृद्धि (Growth)
(c) परिपक्वन विभाजन (Maturation division )
निषेचन (Fertilisation)
एकगुणित (diploid) शुक्राणु एवं अण्डाणु के मिलने से द्विसूत्री युग्मनज (diploid zygote) के निर्माण को निषेचन कहते हैं। यह प्रक्रिया मादा में अण्डवाहिनियों के कलशिका (ampulla) भाग में होती है।
◆ अण्डाणु से एक ग्लाइकोप्रोटीन फर्टिलाइजिन (fertilisin) स्रावित है तथा शुक्राणु (penetrating sperm) में भी एक प्रोटीन पाया जाता है, एण्टी-फर्टिलाइजिन (antifertilisin) कहते हैं। ये दोनों प्रोटीन शुक्राणु और अण्डाणु के मिलने में मदद करती हैं।
भ्रूणीय विकास (Embryonic Development)
भ्रूणीय विकास के दौरान, तीन भ्रूणय परतों से समस्त अंगों का विकास होता है, जो बाह्यस्तर (ectoderm), मध्य स्तर (mesoderm) व अन्तःस्तर (endoderm ) है ।
प्रसव (Parturition )
प्रसव वह क्रिया है, जिसमें स्त्री के गर्भाशय से पूर्ण रूप से विकसित शिशु का जन्म होता है। इस दौरान स्त्री के शरीर में बहुत से तन्त्रिकीय एवं अन्तःस्रावी उद्दीपन होते हैं। हॉर्मोन्स का स्रावण माता की अन्तः स्रावी ग्रान्थियों से होता है। ऑक्सीटॉसिन हॉर्मोन माता की गर्भाशय की दीवार की अरेखित पेशियों को सिकोड़कर प्रसव पीड़ा (pain) उत्पन्न करता है, जिससे प्रसव आसान हो जाता है। इसे जनन हॉर्मोन (birth hormone) भी कहते है। रिलेक्सिन हॉर्मोन अंस तन्तुओं के लचीलेपन का बढ़ाकर गर्भाशय के मुँह को फैलाता है तथा शिशु जन्म में सहायता करता है।
दुग्ध निर्माण (Lactation)
स्तन ग्रन्थियों से शिशु जन्म के बाद दुग्ध का बनना प्रारम्भ हो जाता है । शिशु के जन्म के पश्चात् स्त्री के प्रथम दुग्ध को कोलोस्ट्रम (colostrum) कहते हैं। यह प्रोलेक्टिन तथा ऑक्सीटॉसिन हॉर्मोन की सहायता में बनता तथा उत्क्षेपित (eject) होता है। स्त्री का दूध प्रोटीन, प्रतिरक्षी (IgA) से भरपूर होता है, जो शिशु की जीवन प्रयन्त रोगों से रक्षा करता है।
प्रजनन स्वास्थ्य (Reproductive Health)
प्रजनन स्वास्थ्य वह शारीरिक, मानसिक व सामाजिक अवस्था है, जिसमें प्रजनन तन्त्र से सम्बन्धित सभी कार्य सुचारू रूप से होते हैं। भारत, विश्व के पहले कुछ देशों में से है, जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर प्रजनन स्वास्थ्य को राष्ट्रीय ध्येय मानकर उचित कार्यक्रम चलाए। इन कार्यक्रमों को पारिवारिक स्वास्थ्य कार्यक्रम ( family health programmes) कहा जाता है। इनके अनुसार सभी पुरुषों व स्त्रियों को परिवार नियोजन के सुरक्षित, प्रभावी व बहनिय उपायों के बारे में शिक्षित करा जाना चाहिए तथा माता व शिशु के पूर्ण स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए।
जन्म नियन्त्रण विधि (Birth Control Methods)
शिशुओं के जन्म की दर को नियन्त्रित करने हेतु बहुत-सी विधियाँ उपयोग की जाती हैं। इनमें से कुछ निम्न हैं
मानव प्रजनन तन्त्र के रोग (Disorders of Human Reproductive System)
नर तथा मादा प्रजनन तन्त्रों में होने वाले कुछ रोग निम्नलिखित हैं
यौन संचारित रोग (Sexually Transmitted Diseases or STDs)
जो रोग सम्भोग द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक फैलते हैं, उन्हें सम्भोग द्वारा संचारित रोग (veneral diseases) कहते हैं। किशोर तथा युवा वयस्क (15-24) वह आयु समूह है, जब यौन संचारित रोगों की संभावना सबसे अधिक होती है। यदि इन रोगों का उपचार न किया जाए तो, इसके गम्भीर परिणाम हो सकते हैं (विशेष रूप से स्त्रियों में ) |
जब भी आपको संदेह हो कि आप यौन संचारित रोग के संपर्क में हैं तो, यह जरूरी है कि आप उसकी जाँच के लिए तुरन्त जाएँ। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation or WHO) के अनुमानों के अनुसार, प्रतिदिन दुनिया भर में एक लाख से अधिक चिकित्सा योग्य नये यौन संचारित जीवाणु संक्रमण (Sexually Transmitted Bacterial Infections or STBTs) नये मामले घटित होते हैं।
उपार्जित प्रतिरक्षा अपूर्णता (Acquired Immuno Deficiency Or AIDS)
यह तरल संक्रामक रोग है जो रुधिर व वीर्य, आदि तरल द्वारा संक्रमित होती है। शारीरिक सम्बन्ध इसके संक्रमण का सबसे सशक्त माध्यम है। इसी वजह से इससे यौन संचारित रोग का भ्रम होता है। इसका दूसरा माध्यम रुधिर द्वारा फैलना है जैसे इन्जेक्शन द्वारा। यह मानव प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु (HIV) द्वारा होता है, जो प्रतिरक्षी तन्त्र में कमी, वजन आघात, बैचेनी, सिरदर्द, चकते, आदि रोग करता है।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Google News ज्वाइन करे – Click Here