“परम्परा का मूल्यांकन’ पाठ का सारांश लिखिए।
“परम्परा का मूल्यांकन’ पाठ का सारांश लिखिए।
अथवा, साहित्य और समाज में युग-परिवर्तन के लिए साहित्य की परम्परा का ज्ञान और विवेक दृष्टि आवश्यक है। कैसे ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :- जो लोग साहित्य में युग-परिवर्तन चाहते हैं, रूढ़ियाँ तोड़कर साहित्य-रचना करना चाहते हैं, उनके लिए साहित्य की परम्परा का ज्ञान जरूरी है। साहितय की परम्परा का मूल्यांकन करते हुए, सबसे पहले उस साहित्य का मूल्य निर्धारित किया जाता है जो जनहित को प्रतिबिम्बित करता है। नकल करके लिखा जानेवाला साहितय अधम कोटि का होता है। महान् रचनाकार किसी का अनुसरण नहीं करते, पूर्ववर्ती कवियों की रचनाओं का मनन कर, स्वयं सीखते और नयी पराम्पराओं को जन्म देते हैं। उनकी आवृत्ति नहीं होती। शेक्सपियर के नाटक दुबारा नहीं लिखे गए।
साहित्य के निर्माण में प्रतिभाशाली मनुष्यों की भूमिका निर्णायक होती है। किन्त सब श्रेष्ठतम हो यह जरूरी नहीं है। पूर्णत: निर्दोष होना भी कला का दोष है। यही कारण है कि अद्वितीय उपलब्धियों के बाद भी कुछ नये संभावना बनी रहती है। यही कारण है कि राजनीतिक मूल्यों की अपेक्षा साहित्यिक मूल्य अधिक स्थायी हैं।
साहित्य के विकास में जन-समुदायों और जातियों की विशेष भूमिका होती है। यूरोप के सांस्कृतिक विकास में यूनानियों की भूमिका कौन नहीं जानता? दरअसल, इतिहास का प्रवाह विच्छिन्न है और अविच्छिन्न भी। मानव ज्ञान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। जिस समय राष्ट्र पर मुसीबत आती है, यह अस्मिता प्रकट हो जाती हैं यह प्रेरक शक्ति का काम करती है। हिटलर के आक्रमण के समय रूस में इसी अस्मिता का ज्ञान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। जिस समय राष्ट्र पर मुसीबत आती है, यह अस्तिमता प्रकट हो जाती है। यह प्रेरक शक्ति का काम करती है। हिटलर के आक्रमण के समय रूस में इसी अस्मिता ने काम किया। इसी प्रकार, भारत में राष्ट्रीयत राजनीति की नहीं, इसके इतिहास और संस्कृति की देन है और इसका श्रेय व्यास और वाल्मीकि को है। कोई भी देश, बहुजातीय राष्ट्र के रूप में भारत का मुकाबला नहीं कर सकता।
साहित्य की परम्परा का पूर्ण ज्ञान समाजवादी व्यवस्था में ही संभव है। समाजवादी संस्कृति पुरानी संस्कृति को आत्मसात कर आगे बढ़ती है। हमारे देश की जनता जब साक्षार हो जाएगी तो व्यास और वाल्मीकि के करोडों पाठक होंगे। सब्रहमण्यम भारती और रवीन्द्रनाथ ठाकुर को सारी जनता पढ़ेगी। तब मानव संस्कृति में भारतीय साहित्य का गौरवशाली नवीन योगदान हो
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