बुद्धि के प्रकारों के चर्चा कीजिए ।
बुद्धि के प्रकारों के चर्चा कीजिए ।
प्रश्न- बुद्धि के प्रकारों के चर्चा कीजिए ।
उत्तर – बुद्धि के प्रकार – साधारण जीवन में यह देखा गया है कि कोई भी व्यक्ति सभी क्षेत्रों में एक सा निपुण नहीं होता। उच्च अमूर्त चिन्तन योग्यता वाला व्यक्ति सम्भवतः सामाजिक जीवन की क्रियाओं में परेशानी अनुभव करे अथवा मूर्त यान्त्रिक क्रियाओं में निपुण व्यक्ति, चिन्तन सम्बन्धी क्रियाएँ उतनी सफलता से न कर पा सकता हो। इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए थार्नडाईक ने बुद्धि के तीन प्रकारों का वर्णन किया है –
(1) अमूर्त बुद्धि –अमूर्त बुद्धि का सम्बन्ध सूक्ष्म चिंतन तथा मनन से होता है। बुद्धि का यह रूप समस्याओं तथा अनुभवों को प्रतिमाओं तथा चिह्न की सहायता से अधिक स्पष्ट करता है। कवि, साहित्यकार तथा चित्रकार आदि अपने भावों का प्रकाशन इसी बुद्धि के माध्यम से करते हैं। बुद्धि के इस प्रकार के चिह्नों, प्रतीकों, प्रतिमाओं, अंकों तथा शब्दों का अधिक प्रयोग किया जाता है। शब्दों, प्रतीकों तथा अंकों के माध्यम से अपने विचारों को अभिव्यक्त करने की कला अमूर्त अथवा वाचिक बुद्धि की देन है। विद्यालय में गणित, विज्ञान, इतिहास, भूगोल तथा कला आदि विषयों के पठन में बुद्धि के इस रूप को विकसित करना आवश्यक होता है।
इस प्रकार की बुद्धि का प्रमुख लक्षण है शीघ्र तथा सफल अभिबोध करना तथा प्रत्यक्ष में उपस्थित विषय के अमूर्त गुणों को समझना एवं उनके आपसी सम्बन्धों को जानना। अमूर्त बुद्धि के तीन प्रमुख व्यावहारिक लक्षण निम्नलिखित हैं
(i) विभिन्न प्रकार के कार्य करने की क्षमता- जो व्यक्ति अनेक प्रकार के कार्य करते हैं, उसकी अनेक कार्यों को करने की क्षमता से अमूर्त बुद्धि के विषय में जाना जा सकता है।
(ii) कार्य करने की गति- जो व्यक्ति अमूर्त गुणों वाले कार्यों को जितनी शीघ्रता से करता है, उसमें अमूर्त बुद्धि उतनी ही अधिक आँकी जाती है।
(iii) आकांक्षा स्तर – आकांक्षा स्तर व्यक्ति की अमूर्त बुद्धि का सूचक होता है। उच्च आकांक्षा स्तर के व्यक्ति शीघ्र ही तात्कालीन विषय अथवा क्रिया के अमूर्त गुणों का प्रत्यक्ष कर लेते हैं, उन्हें सम्पन्न करते हैं ।
(2) मूर्त बुद्धि – मूर्त बुद्धि का सम्बन्ध वातावरण में उपस्थित वस्तुओं, पदार्थों को समझने तथा उनके अनुरूप कार्य करने से होता है। इसे यान्त्रिक या गत्यात्मक बुद्धि भी कहा जाता है। इस बुद्धि का प्रयोग वातावरण की स्थूल वस्तुओं के अनुप्रयोग तथा उन्हें समझने में किया जाता है, जैसे मिस्त्रीगिरी का काम अथवा कलपुर्जों की जाँच-पड़ताल करना ।
मूर्त बुद्धि के परीक्षण में ऐसे कार्य रखे जाते हैं जिनमें कलपुर्जों का एकीकरण अथवा अलगाव आदि के कार्य हों जैसे मिनेसोटा एसेम्बिलिंग परीक्षण तथा स्टेनग्विस्ट का परीक्षण आदि ।
मूर्त बुद्धि का दूसरा स्वरूप शारीरिक शिक्षा है जहाँ गत्यात्मक योग्यता पर बल दिया जाता है।
(3) सामाजिक बुद्धि- सामाजिक बुद्धि व्यक्ति की वह योग्यता है जिसका सम्बन्ध सामाजिक समायोजन से होता है । यह क्षमता व्यक्ति को सामाजिक सम्बन्ध बनाने, उनमें निरन्तरता लाने, स्थायी करने तथा इस प्रकार समाज में अच्छा समायोजन करने में सहायता करती है। दूसरे शब्दों में, बुद्धि के इस पक्ष का सम्बन्ध सामाजिक संवेदना तथा सामाजिक व्यवहार कुशलता से होता है। व्यक्तित्व गुणों की दृष्टि से स्वभाव, सहयोग, सम्बन्धों में ईमानदारी, मनोवृत्तियाँ, सहनशीलता, वस्तुनिष्ठता, निर्णय लेना तथा हास्य – स्वभाव आदि कारक सामाजिक बुद्धि की ओर संकेत करते हैं ।
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