‘वृत्ति’ से क्या आशय है ? क्या शिक्षण एक वृत्ति है? सिद्ध कीजिये ।
‘वृत्ति’ से क्या आशय है ? क्या शिक्षण एक वृत्ति है? सिद्ध कीजिये ।
उत्तर— व्यवसाय या वृत्ति का अर्थ– मनुष्य अपनी जरूरतों और आवश्यकताओं को धन के द्वारा पूरा करता और यह धन वह कोई -नकोई व्यवसाय करके अर्जित करता है। इससे हम यह कह सकते हैं कि व्यवसाय हमारे जीविकोपार्जन का एक तरीका है। व्यवसाय एक व्यापक शब्द है जिसमें कई चीजें समाई होती हैं। वहीं अगर हम वृत्ति के बात करें तो वह एक प्रकार का विशिष्ट व्यवसाय है। इसे इस प्रकार से भी परिभाषित किया जा सकता है न कि यह एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें वैज्ञानिक अथवा कलात्मक अधिगम अर्थात् शिक्षा-दीक्षा की आवश्यकता पड़ती है। एक आदर्श वृत्तिवान बनने के लिये व्यक्ति को अच्छी शिक्षा, प्रशिक्षण तथा अनुभव अर्जित करने पड़ते हैं। इस बौद्धिक कौशल पर आधारित सेवा प्रदान करना ही उसकी वृत्ति है। वृत्ति के कई सारे उदाहरण हैं। जैसे—इंजीनियरी, म्युजिक, डॉक्टरी, पत्रकारिता आदि ।
किसी भी वृत्ति में एक आदर्श के तौर पर स्थापित होने के लिए व्यक्ति को अधिगम की लम्बी प्रक्रिया से गुजरना होता है । वृत्ति का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत उन्नति नहीं है बल्कि इस प्रकार का ज्ञान अर्जित करना है जिससे समाज का कल्याण हो सके । व्यक्ति चाहे जिस भी वृत्ति से जुड़ा हो, उसे उसके प्रति समर्पित तथा प्रतिबद्ध होना चाहिए क्योंकि इसके पश्चात् ही वह अपने लक्ष्य को पा सकता तथा अपनी वृत्ति को गौरवान्वित कर सकता है।
अगर हम सभी वृत्तियों का तुलनात्मक अध्ययन करें तो पाते हैं कि शिक्षण सबसे बेहतर या कहें कि सबसे सर्वोच्च वृत्ति है क्योंकि यह हमें – हमारा आज बनाने में मदद करता है जिससे हम अपने कल को बेहतर बना सकें और खुद को एक जिम्मेदार, आज्ञाकारी तथा जागरूक व्यक्ति के रूप में स्थापित कर सकें । यह वृत्ति इसलिये भी सर्वोच्च कही जा सकती है क्योंकि इसमें हम एक जीवन के अनुभवों को इस्तेमाल करते हैं ताकि दूसरे जीवन को सार्थक बना सकें यह एक ऐसा वृत्ति है जिसमें सीखने तथा सिखाने की प्रक्रिया साथ-साथ चलती है और एक शिक्षक, सिर्फ अपने विद्यार्थियों को निपुण बनाता है बल्कि वह स्वयं को भी. तराशता है।
शिक्षण वृत्ति को और भी ज्यादा विकासशील बनाने हेतु जो सबसे पहली जरूरत है वह है एक बेहतर शिक्षक और एक बेहतर शिक्षक बनने के लिए कुछ गुण होने अनिवार्य हैं जैसे–
(1) शिक्षक को सदा शान्त, मुखाकृति, सन्तुलित भाव तथा आत्मविश्वास रखना चाहिए।
(2) नेतृत्व करने की योग्यता– शिक्षक को खुद को इस प्रकार स्थापित करना चाहिए जिससे वह एक पथ-प्रदर्शक के रूप में सामने आ सके।
(3) शीघ्र निर्णय क्षमता– शिक्षक में शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए तथा उसे अपने निर्णय पर अटल भी रहना चाहिए।
(4) न्याय- प्रियता– शिक्षक को हमेशा निष्पक्ष न्याय करना चाहिए ताकि उसके विद्यार्थियों का विश्वास सदा उस पर बना रहे।
(5) निभाने की क्षमता– शिक्षक में इतनी क्षमता होनी चाहिए कि वह अपनी जिम्मेदारियों को हर परिस्थिति में निभा सके।
(6) उत्साह– शिक्षक में अपने कार्य के लिए असीम उत्साह और रुचि होनी चाहिए।
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