शिक्षण प्रतिमान किसे कहते हैं ? शिक्षण प्रतिमान के विभिन्न समूह कौनसे हैं ? शिक्षण के निष्पत्ति प्रत्यय प्रतिमान की व्याख्या कीजिये।

शिक्षण प्रतिमान किसे कहते हैं ? शिक्षण प्रतिमान के विभिन्न समूह कौनसे हैं ? शिक्षण के निष्पत्ति प्रत्यय प्रतिमान की व्याख्या कीजिये।

उत्तर— शिक्षण प्रतिमान के विभिन्न समूह निम्न हैं—
(i) ग्लेसर का आधारभूत शिक्षण प्रतिमान ।
(ii) रिचर्ड सचमैन का पृच्छा प्रशिक्षण प्रतिमान।
(iii) सम्प्रत्यय उपलब्धि प्रतिमान/निष्पत्ति प्रत्यय प्रतिमान ।
(iv) अभिक्रमित अनुदेशन प्रतिमान ।
निष्पत्ति प्रत्यय प्रतिमान– इसे सम्प्रत्यय उपलब्धि प्रतिमान भी कहते हैं। सम्प्रत्यय उपलब्धि प्रतिमान का विकास जे. एस. ब्रूनर तथा उसके सहयोगियों ने किया। इस प्रतिमान का उपयोग करके शिक्षक, छात्रों को प्रत्ययों की प्रकृति की सही जानकारी प्रदान करता है । इस प्रतिमान का उपयोग नवीन प्रत्ययों के स्पष्टीकरण तथा व्याख्या करने में प्रभावशाली ढंग से किया जाता है। इसमें दो या अधिक वस्तुओं के मध्य समानता तथा असमानता का बोध कराते हुए, विभिन्न प्रकार के माध्यमों से तथ्यों का एकीकरण करते हुए प्रक्रिया को पूर्ण किया जाता है।
इस प्रतिमान का विकास मुख्यतः छात्रों में आगमन तर्क की योग्यता में वृद्धि करना होता है तथा छात्रों में संप्रत्ययों को विकसित करना होता है। डॉ. आनन्द (1996) ने मानव में सम्प्रत्ययों की रचना के विषय में अपने विचार प्रदर्शित करते हुए लिखा है, “ब्रूनर तथा उनके सहयोगियों की यह धारणा है कि मानव जिस वातावरण में रहता है, उसमें इतनी विविधतायें हैं साथ ही उनमें इतनी जटिलतायें हैं कि मनुष्य वर्गीकरण के बिना इसे नहीं समझ सकता। इसीलिये प्रत्येक मनुष्य अपने वातावरण में पाई जाने वाली वस्तुओं को समझने का प्रयास करता है तथा वस्तुओं का वर्गीकरण करता है। वस्तुओं के इस प्रकार से वर्गीकरण के फलस्वरूप उनमें सम्प्रत्यय विकसित होते हैं। ये सम्प्रत्यय स्वाभाविक रूप से विकसित होते हैं, फिर भी सही सम्प्रत्ययों के विकास हेतु प्रशिक्षण आवश्यक हो जाता है। यह प्रतिमान सम्प्रत्यय विकसित करने का एक अच्छा साधन माना गया है । “
सम्प्रत्यय उपलब्धि प्रतिमान के प्रमुख तत्त्व– संप्रत्यय उपलब्धि प्रतिमान के प्रमुख तत्त्वों का विवरण यहाँ दिया जा रहा है—
(1) उद्देश्य– इस प्रतिमान का प्रमुख उद्देश्य छात्रों की आगमन तर्क शक्ति का विकास करना है। इसका आधार मनोविज्ञान है । इसके अन्तर्गत छात्र विभिन्न घटनाओं, व्यक्तियों तथा वस्तुओं आदि को अलगअलग वर्गों में विभाजित कर चिन्तन शक्ति के आधार पर विभिन्न संप्रत्ययों का ज्ञान प्राप्त करते हैं ।
ब्रूनर तथा उनके सहयोगियों ने निम्नांकित चार उद्देश्य इस प्रतिमान के दिये हैं—
(i) छात्रों को सम्प्रत्ययों की प्रकृति के विषय में ज्ञान प्रदान करना ताकि वे वस्तुओं के गुणों तथा उनकी विशेषताओं के आधार पर वर्गीकरण करने में दक्षता प्राप्त कर सकें ।
(ii) छात्रों को इस योग्य बनाना कि उनमें सही संप्रत्ययों का
विकास हो सके ।
(iii) छात्रों में विशिष्ट संप्रत्ययों का विकास करना।
(iv) छात्रों में चिन्तन सम्बन्धी नीतियों का विकास करना ।
(2) संरचना– इस संरचना में कौशलों का विकास चार सोपानों में किया जाता है । ये हैं—
(i) प्रदत्तों का संकलन– छात्रों के सम्मुख किसी घटना या व्यक्ति से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के प्रदत्त (आँकड़े) प्रस्तुत किये जाते हैं। छात्र इन प्रदत्तों की मदद से विभिन्न प्रत्ययों का विकास करने के लिए विभिन्न प्रकार के गुण इस प्रत्यय में परिसीमित करते हैं ।
(ii) नीति विश्लेषण– इस चरण में छात्र प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण करते हैं। अधिकतर यह विश्लेषण अथवा ‘सामान्य से विशिष्ट की ओर’ सूत्र पर आधारित होता है।
(iii) प्रस्तुतीकरण– इस सोपान में छात्र अपनी आयु एवं अनुभव के आधार पर विभिन्न प्रकार के प्रत्ययों एवं गुणों का विश्लेषण करता है और इस विश्लेषण की रिपोर्ट लिखित रूप में प्रस्तुत करता है।
(iv) अभ्यास– इस सोपान में छात्र सीखे हुए प्रत्यय का उपयोग एवं अभ्यास करना, सकी व्याख्या करना तथा असंगठित सूचनाओं के आधार पर संप्रत्यय की रचना करना शामिल है।
(3) सामाजिक प्रणाली– इसमें शिक्षक, छात्रों को प्रेरित करते हैं और प्रत्ययों के निर्माण तथा विश्लेषण में मार्गदर्शन करते हैं। शिक्षक का इस प्रतिमान में महत्त्वपूर्ण स्थान होता है क्योंकि वही छात्रों के सामने विभिन्न प्रदत्त रखता है, योजना बनवाता है और छात्रों को निर्देशित करता है। इसमें शिक्षक का प्रमुख उद्देश्य छात्रों को प्रत्यय निर्माण में सहायता देना होता है।
(4) मूल्यांकन प्रणाली– इस प्रतिमान के मूल्यांकन में निबन्धात्मक तथा वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं की मदद ली जाती है और इनके द्वारा मूल्यांकन, सुधार तथा परिवर्तन के माध्यम से नवीन प्रत्ययों के विषय में सूचना दी जाती है ।
इस प्रतिमान के अन्तर्गत छात्रों को पूर्व प्रत्ययों की निष्पत्ति (उपलब्धि) करनी होती है न कि नवीन प्रत्ययों की खोज। प्रत्ययों के समुचित बोध के लिए मूल्यांकन प्रणाली अत्यन्त उपादेय है।
सम्प्रत्यय–उपलब्धि प्रतिमान की विशेषताएँ—
(1) उदाहरणों के आधार पर जब प्रत्ययों को सीखने और समझने का प्रयास किया जाता है, तब यह प्रतिमान अधिक उपादेय होता है।
(2) यह गणित तथा विज्ञान के आधारभूत सिद्धान्तों को सरलता तथा सुगमता से समझाने का प्रयास करता है ।
(3) यह प्रतिमान उन सभी विषयों में जिनमें प्रत्यय निर्माण के अवसर अधिक होते हैं, अधिक उपादेय सिद्ध होता है ।
(4) सामान्यीकरण को बढ़ाने के लिए, तथ्यों का ज्ञान देने के लिए तथा ‘क्यों’ का उत्तर देने के लिए और कारण बताने के लिए इस प्रतिमान का प्रयोग नहीं किया जा सकता ।
(5) यह प्रतिमान भाषा सीखने में अधिक उपयोगी होता है ।
इस प्रतिमान का प्रयोग सभी विषयों के शिक्षण में सफल पाया गया है। यह प्रतिमान सभी स्तरों पर उपयोगी सिद्ध हुआ है। छोटे बच्चों में इसके प्रयोग के समय सरल सम्प्रत्ययों तथा उनके आसान उदाहरणों का प्रयोग करना चाहिये । इस प्रतिमान का प्रयोग नवीन जानकारी देने के लिये नहीं किया जाता, नये ज्ञान देने के लिये तो अन्य सूचना प्रक्रिया प्रतिमानों का प्रयोग करना ज्यादा उपयोगी रहेगा ।
यह प्रतिमान सभी विषयों के शिक्षण हेतु प्रयोग किया जाता है परन्तु इसकी उपादेयता भाषा के सीखने में, भाषा में संप्रत्यय-उपलब्धि प्राप्त करने में तथा भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में अधिक पायी गयी है ।
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