व्यावसायिक शिक्षा के विषय में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग द्वारा किए गए प्रावधानों को स्पष्ट कीजिए।
व्यावसायिक शिक्षा के विषय में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग द्वारा किए गए प्रावधानों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर— व्यावसायिक शिक्षा के विषय में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग द्वारा किये गए प्रावधान—
(1) कृषि– कृषि को एक प्रधान राष्ट्रीय समस्या मानकर राष्ट्रीय आर्थिक योजना में प्राथमिकता देते हुए प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा के स्तर पर महत्त्वपूर्ण स्थान दिए जाने की सिफारिश की गई थी। आयोग के प्रतिवेदन में यह भी उल्लेख है कि जहाँ तक सम्भव हो कृषि, शिक्षा अनुसंधान और कृषि नीति निर्धारण, ऐसे व्यक्तियों या संस्थाओं की सहायता से होनी चाहिए, जो कृषि विज्ञान में भागीदारी और अनुभवों द्वारा प्रथमतः जुड़े हुए हों। कृषि शिक्षा को ग्रामीण वातावरण भी उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
(2) शिक्षा शास्त्र– शिक्षा के पाठ्यक्रम का परिशोधन सुझाते हुए अनुशंसा की गई कि स्कूल के व्यावहारिक अनुभव को अधिक अधिभार दिया जाना चाहिये । इसके लिए उपर्युक्त विद्यालयों का चयन किया जाना चाहिए। प्रशिक्षण महाविद्यालय के स्टाफ में स्कूल शिक्षण में अनुभव प्राप्त शिक्षकों को प्राथमिकता देनी चाहिए। शिक्षा सिद्धान्तों का स्थानीय परिस्थितियों से तालमेल भी होना चाहिए। शिक्षा में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्तं करने से पूर्व शिक्षक का कुछ वर्षों का शैक्षणिक अनुभव होना चाहिए ।
(3) वाणिज्य– विश्वविद्यालय में वाणिज्य की शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को तीन या चार विभिन्न प्रकार की वाणिज्यिक संस्थाओं में व्यावहारिक अनुभव दिया जाना चाहिए। स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण वाणिज्य छात्रों को लेखा-विधि का व्यावहारिक ज्ञान भी दिया जाना चाहिए। ऐसे छात्रों की संख्या सीमित ही रहनी चाहिए।
(4) इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी– वर्तमान इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी संस्थाओं की उपयोगिता में सुधार होना चाहिए और विभिन्न प्रकार के इंजीनियरिंग स्कूलों की संख्या में वृद्धि की जानी चाहिए। देश की बढ़ती हुई आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए इंजीनियरिंग की नई शाखाओं और विषयों को सम्मिलित किया जाना चाहिए। कुछ क्षेत्रों में विशेषता के साथ-साथ सामान्य शिक्षा भी दी जानी चाहिए यह भी अनुशंसा थी कि उपयोगी इंजीनियरिंग शिक्षा के लिए व्यावहारिक कार्य आवश्यक हैं और इसकी व्यवस्था लम्बे अवकाशों में की जा सकती है यह भी व्यक्त किया गया था कि जहाँ भी सम्भव हो वर्तमान संस्थाओं में स्नात्तकोत्तर पाठ्यक्रम भी प्रारम्भ किया जाना चाहिए। एक अनुशंसा यह भी थी कि इंजीनियरिंग महाविद्यालयों पर उद्योगों या अन्य शासकीय विभागों का प्रभुत्व नहीं होना चाहिए अपितु उन्हें विश्वविद्यालयों के क्षेत्र में रखा जाना चाहिए।
(5) विधि– आयोग ने उस समय के विधि-महाविद्यालयों को भी अच्छी प्रकार व्यवस्थित करने की अनुशंसा की थी यह भी कहा था कि विधि महाविद्यालयों में भी शिक्षक कला एवं विज्ञान महाविद्यालयों के समान ही नियुक्त किए जायें। विधि- अध्ययन से पूर्व तीन वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम पूरा करना आवश्यक रहे और विधि डिग्री भी तीन वर्षीय हो । तीसरा वर्ष एडवोकेट के साथ व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करने में लगाया जाये। इन महाविद्यालयों का स्टाफ पूर्णकालिक और अर्द्धकालिक हो सकता है, किन्तु महाविद्यालय अन्य कला एवं विज्ञान महाविद्यालयों के समान नियमित समय में ही लगे। विधि अध्ययन के साथ अन्य स्नातक अध्ययन की अनुमति नहीं दी जाये। विधि संकाय में भी अनुसंधान की सुविधा एवं अवसर हो।
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