भाषा कौशल में विधियों की अवधारणा व उपयोगिता को स्पष्ट कीजिए।

भाषा कौशल में विधियों की अवधारणा व उपयोगिता को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर— मानव भाषा के माध्यम से अपने विचारों का आदान-प्रदान करता है। भाषा मानव द्वारा अर्जित संस्कारों में से एक महत्त्वपूर्ण संस्कार है। वह जन्म से प्राप्त नहीं करता बल्कि जिस किसी समुदाय में रहता है उसी से वह भाषा अर्जित करता है। बच्चा सुनकर, पढ़कर और बोलकर अपने विचारों को व्यक्त करता है तथा दूसरों के विचारों को सुनकर ग्रहण करता है भाषा के अध्ययन का प्रमुख उद्देश्य इन को विकसित करना है। इन्हें हम भाषा शिक्षा के कौशलात्मक उद्देश्य भी कहते हैं। इन कौशलात्मक उद्देश्य को भाषायी कौशल भी कहा जाता है ।
(1) श्रवण-कौशल का अर्थ — भाषा सीखने के चार क्रम स्वाभाविक है सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना।
डॉ. उमा मंगल ने श्रवण की परिभाषा देते हुए लिखा है, “किसी भी व्यक्ति के द्वारा प्रयुक्त ध्वनियों, शब्दों तथा भावों को कानों के माध्यम से ग्रहण कर उसका अर्थ ग्रहण करने की क्रिया श्रवण कही जाती है।” श्रवण का कौशल भाषा सीखने का कौशल है और यह प्रथम सोपान है। यही अन्य कौशलों को सीखने का आधार बनता है। कोई भी वक्ता अपने विचारों और भावों को मौखिक रूप से अभिव्यक्त करता है, उस बात को पूर्णतया ध्यान से सुनकर तथा उसके अर्थ को समझने की योग्यता ही श्रवण कौशल कहलाती है। अन्य शब्दों में, हम कह सकते हैं कि वक्ता जो कुछ भी कहना चाहता है उसे वह भाषा के द्वारा व्य करता है। श्रोता उसे ध्यानपूर्वक सुनता है तथा उसके अर्थ को समझता है । अतः यह प्रक्रिया श्रवण कौशल कही जाती है ।
शिक्षण के सन्दर्भ में श्रवण-कौशल के अन्तर्गत तीन प्रकार की शक्तियों का समावेश किया जाता है—
(1) अन्तर बोध-शक्ति, (2) धारण-शक्ति एवं (3) बोधनशक्ति, अतः कहा जा सकता है कि वक्ता के उच्चारण/भाषण का श्रोता पर सक्रिय प्रभाव पड़ता है और इसलिए श्रवण एक सक्रिय तथा सोद्देश्य क्रिया है।
1. अंतर बोध शक्ति का अर्थ है भाषा की दो एकाकी ध्वनियों. तथा दो ध्वनि संयोजनों को सुनकर उन के बीच के अन्तर को स्पष्ट रूप से समझना । ध्वनि-युग्मों (यथा— क्-क्, फ्-फ्, त्-ट्, द्-ड् आदि) तथा शब्द-युग्मों ( यथा— अनिल – अनल, सर- शर, वन-बन, दवात – दावत) में ध्वनि-भेद समझने की शक्ति को अन्तर बोध-शक्ति कहा जाएगा।
2. धारण-शक्ति का अर्थ है, जिन ध्वनि युग्मों तथा शब्द-युग्मों के बीच का अन्तर हम समझ चुके हैं, उस अन्तर को अपनी अवचेतना अवस्था में स्थिर (याद ) रखना । ध्वनि-युग्मों ( आघात, सुर, ध्वनि गुणयुक्त) का अन्तर जितना अधिक स्पष्ट होगा, धारण शक्ति उतनी ही अधिक बढ़ेगी।
3. बोधन- शक्ति का अर्थ, ध्वनि- योग से निर्मित शब्दों ( यथा– ब् + ड + र् + आ = बुरा, ब् + ऊ + र् + आ = बुरा) के अर्थ को ग्रहण करते हुए समझना। बोधन के दो पक्ष हैं—
1. वाक्य – साँचे में शब्दों/पदों तथा पदबंध / वाक्यांश को अलगअलग पहचान।
2. वितरण के आधार पर शब्दों का अलग-अलग अर्थ जानते हुए वाक्य में उनका समाहारात्मक अर्थ जानना ।
श्रवण कौशल का महत्त्व – श्रवण कौशल के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर भी समझा जा सकता है—
(1) व्यक्ति के विचारों का आदर होना चाहिए ।
(2) समाज में सभी के विचारों को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए एवं प्रतिकूल मत का स्वागत करना चाहिए ।
(3) खुले मस्तिष्क के साथ अपने मत को प्रतिपादन तभी कर सकते हैं जब विचारों का औचित्य पैनी धार पर आश्रित हो । बहुधा तर्क के अभाव में स्वर उच्चता, झुंझलाहट, खीज इत्यादि अवगुण पाये जाते हैं।
(4) जो ध्यान से सुनने की कला में प्रवीण, नहीं, के तर्क का खण्डन नहीं कर सकता। वह विरोधियों
(5) बहुधा विद्यालयों में वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में श्रवण कौशल के प्रयोग की झलक देखने को मिलती है।
(6) जो व्यक्ति शान्त रहकर दूसरों की बात सुनते हैं और समझते हैं, ये अपने विचारों का प्रतिपादन हेतु ठोस तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं.
(7) हमें चीखने-चिल्लाने की अपेक्षा तर्क शक्ति पर अधिक भरोसा करना चाहिए।
लेखन कौशल — लिपि का ज्ञान प्राप्त करने के बाद अपने विचारों तथा भावों को लिखित रूप में व्यक्त करना लेखन-कौशल कहलाती है। विद्यार्थी लिपि का ज्ञान प्राप्त करने के बाद भाषा के लिखित रूप को अपनाता है तथा अपने भावों, विचारों को स्थायित्व प्रदान करता है। मौखिक भाषा के शिक्षण में विद्यार्थियों को उचित गति, विराम आदि का उचित प्रयोग करते है हुए शुद्ध भाषा को बोलना सिखाया जाता है। लेकिन लेखन कौशल के शिक्षण में बच्चों को पहले अक्षर चिह्नों की सुन्दर बनावट सिखाई जाती है, तत्पश्चात् उनको शुद्ध भाषा में लेखन कार्य दिया जाता है। यह एक कटु सत्य है कि जब तक बच्चे को लिखना नहीं आता, तब तक उसका भाषा पर पूर्ण अधिकार नहीं होता। अतः बच्चों के लिये लिपि ज्ञान नितान्त आवश्यक है। लेखन कार्य में कुशलता प्राप्त करना ही लेखन कार्य कहलाता है।
                                                            लेखन-कौशलं का महत्त्व
(i) आज हमारा जीवन अत्यधिक व्यापक हो चुका है। लेकिन मौखिक भाषा के द्वारा ही जीवन के सारे कार्य सम्भव नहीं है । आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लेखन कौशल की आवश्यकता अनुभव की जाती है। कार्यालयों में परस्पर कार्य व्यापार करते समय, दूरस्थ व्यक्ति को संदेश देने अथवा उसे अपने विचारों से अवगत कराने के लिये लिखित भा प्रयोग करना आवश्यक है।
(ii) अपने विचारों को सुरक्षित रखने के लिए लिखित भाषा की आवश्यकता पड़ती है। हम अपने विचारों को लिखकर सदियों तक सुरक्षित रख सकते हैं।
(iii) दैनिक जीवन में कदम-कदम परं लिखित भाषा की आवश्यकता पड़ती है। अपने घर के हिसाब-किताब को रखने के लिए, व्यापारिक एवं निजी पत्र लिखने के लिए, बैंक में पैसा जमा करवाने या निकलवाने के लिए लिखित भाषा का प्रयोग किया जाता है।
(iv) आधुनिक युग में ज्ञान का विस्फोट हो चुका है। फलस्वरूप विद्यार्थियों को अनेक विषय पढ़ने पड़ते हैं। विद्यालयों तथा महाविद्यालयों में पाठ्यक्रम की पुस्तकें निर्धारित की जाती है। इन पाठ्य-पुस्तकों को पढ़ने से विद्यार्थी का काम नहीं चलता। उसे विभिन्न पुस्तकों को पढ़कर महत्त्वपूर्ण सामग्री इकट्ठी करनी पड़ती है और नोट्स बनाने पड़ते हैं। उन्हें परीक्षा देते समय लिखित भाषा में ही उत्तर देने पड़ते हैं। इसलिए लिखित भाषा का ज्ञान विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य है। मानव केवल मौखिक भाषा पर निर्भर नहीं रह सकता, क्योंकि उसकी स्मरण शक्ति सीमित होती है । वह प्रत्येक बात को याद नहीं कर सकता। इसलिए उसको कई बातें लिखनी पड़ती हैं ताकि बाद में पढ़कर वह अपनी स्मृति को ताजा कर सके।
(v) सभी सरकारी कार्यालयों में लिखित भाषा का प्रयोग किया जाता है। कार्यालयों तथा न्यायालयों के रिकॉर्ड, निर्णय, नीतियाँ तथा नियम लिखित भाषा में ही होते हैं जो व्यक्ति लिखित भाषा में पारंगत नहीं होता, वह सरकारी नौकरी में उन्नति नहीं कर सकता ।
(vi) लिखित भाषा विद्यार्थी के हाथ तथा मस्तिष्क में सन्तुलन उत्पन्न करती है। यह भाषा में मधुरता लाती है। इससे भाषा पर व्यक्ति का अधिकार स्थापित हो जाता है।
(vii) लिखित भाषा के माध्यम से ही हम देश-विदेश के ज्ञान को अर्जित कर सकते हैं ।
(viii) लेखन-कौशल साहित्यिक रचनाओं का भण्डार है । लिपि के अभाव में हम प्राचीन साहित्य को नहीं पढ़ सकते थे। अतः लेखन कौशल के द्वारा नई-नई रचनाएँ लिखी जा रही हैं ।
(ix) लिखित भाषा ने ही हमारी प्राचीन सभ्यता तथा संस्कृति को हमारे तक पहुँचाया है। हम भी लिखित भाषा द्वारा रचनाओं को अपनी भावी पीढ़ी तक पहुँचाएँगे। आज हम लोकतंत्रात्मक युग में जी रहे । इसमें व्यक्ति की स्वतंत्रता का विशेष महत्त्व है। लेकिन मौखिक अभिव्यक्ति के साथ-साथ लिखित अभिव्यक्ति भी आवश्यक है। यही कारण है कि आज के समाचार पत्रों तथा लेखों द्वारा देश-विदेश की सूचनाओं को जान सकते हैं तथा उनके विचारों को लिखित रूप से व्यक्त कर सकते हैं।
मौखिक अभिव्यक्ति कौशल – प्रत्येक भावुक, चिन्तनशील और सजग प्राणी अपने भावों को बाह्य अभिव्यक्ति देता है। इसके तीन साधन हैं— संकेत, उच्चारण और लेखन । मानवेतर केवल मौखिक अभिव्यक्ति करते हैं। किन्तु मानव तीनों का प्रयोग करता है। सांकेतिक अभिव्यक्ति का माध्यम है अंक संचालक और भंगिमा । बालक जन्म लेने के बाद
सर्वप्रथम बोलना सीखता है। फिर वह पढ़ना व लिखना सीखता है। अतः बालक में मौखिक अभिव्यक्ति के विकास को ही प्राथमिकता देनी चाहिए। भाषा के दो रूप हैं-उच्चरित या मौखिक भाषा तथा लिखित विचार भाषा। प्रो. रमन बिहारी लाल के अनुसार, “मानव अपने भाव, एवं अनुभव को अभिव्यक्त करने के लिए जिस समाज-सम्मत ध्वन्यात्मक संकेत साधन समुच्चय का प्रयोग करता है। उसे उसकी मौखिक भाषा कहते हैं।”
अतः हम कह सकते हैं कि मनुष्य अपने हृदयगत विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए जिन ध्वनि संकेतों का प्रयोग करता है, उन्हें उसकी भाषा कहते हैं।
मौखिक अभिव्यक्ति की महत्ता — मौखिक अभिव्यक्ति मानव जीवन का अनिवार्य अंग है। जिस प्रकार मानव के लिए खाना, पीना, सोना, उठना, बैठना, मलमूत्र त्यागना आवश्यक है, उसी प्रकार उसके लिए बोलना भी आवश्यक है। मौन साधना भी कुछ समय के लिए की जा सकती है। पुनः कुछ समय बाद उसे त्यागकर मानव को मौखिक, अभिव्यक्ति की शरण लेनी पड़ती है। अतः यह अभिव्यक्ति हमारे लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। मौखिक अभिव्यक्ति का महत्त्व निम्नलिखित सूचनाओं से स्पष्ट होता है—
(1) दैनिक जीवन में मौखिक अभिव्यक्ति का महत्त्व – हमारे दैनिक जीवन का कार्यकलाप मौखिक अभिव्यक्ति पर निर्भर करता है। छोटे-से-छोटा काम भी मौखिक अभिव्यक्ति के बिना नहीं हो सकता। परिवार, गली, मोहल्ले तथा आसपास के लोगों से हमें कई काम पड़ते रहते हैं। हमें दूसरों की बात समझनी होती है और अपनी बात समझानी होती है। यदि हम दुकानदार के पास कुछ खरीदने जाएँगे तो मौखिक अभिव्यक्ति का सहारा लेंगे। दुकानदार भी मौखिक अभिव्यक्ति द्वारा वार्तालाप करेगा। अतः यह स्वतः सिद्ध है कि हम प्रायः मौखिक अभिव्यक्ति के द्वारा ही अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। आदेशनिर्देश लेने के लिए ही मौखिक भाषा का प्रयोग किया जाता है ।
(2) व्यावसायिक कार्यों में सहायक— विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्रों में मौखिक अभिव्यक्ति का बहुत उपयोग होता है। यद्यपि विभिन्न व्यवसायों से संबंधित कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनसे हम कई जानकारियाँ उपलब्ध कर सकते हैं। लेकिन इससे मौखिक अभिव्यक्ति का महत्त्व कम नहीं हो पाता। पुस्तकों के होते हुए भी अध्यापक कक्षाओं में मौखिक अभिव्यक्ति द्वारा पढ़ाता है। अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अध्यापक मौखिक भाषा द्वारा अधिक सफलतापूर्वक पढ़ा सकता है। वैज्ञानिक तथा तकनीकी व्यवसायों के सम्मेलन होते हैं, उनमें मौखिक भाषा का सर्वाधिक प्रयोग होता है।
(3) कहानी सुनाना तथा सुनना– सभी बच्चे कहानियों को सुनना पसन्द करते हैं। अध्यापक को स्वयं पहले कोई कहानी सुनानी चाहिए और फिर बच्चों को उस कहानी को सुनाने के लिए कहना चाहिये। हो सकता है कि कोई बच्चा कहानी सुनाने में संकोच करे । इसके लिए अध्यापक को उसके साथ सहानुभूतिपूर्ण ढंग से व्यवहार करना चाहिए। ऐसा करने में श्रवण कौशल तथा मौखिक अभिव्यक्ति कौशल दोनों को विकसित करने में सफलता मिलती है।
(4) चित्र वर्णन—  छोटे बच्चे चित्रों को ध्यान से देखते हैं। कोई चित्र दिखाकर बच्चों से उस चित्र के बारे में प्रश्न पूछे जा सकते हैं। उदाहरण के रूप में गाय का चित्र दिखाकर बच्चों को गाय से सम्बन्धित ज्ञान दिया जाता है। यही नहीं, चित्र द्वारा कहानी भी सुनाई जा सकती है और फिर उससे सम्बन्धित प्रश्न पूछे जा सकते हैं। अतः चित्र वर्णन मौखिक अभिव्यक्ति के लिए अत्यन्त उपयोगी है।
(5) कविता – पाठ— छोटे बच्चे कविता सुनने में अत्यधिक रुचि लेते हैं। वे कविताएँ कण्ठस्थ करके उन्हें सुनाना भी चाहते हैं। यदि उनके लिए अनुकूल वातावरण उत्पन्न किया जाए तो वे कण्ठस्थ कविता को बड़ी मधुरता से गाते हैं | उचित हाव-भाव तथा अंग संचालन के द्वारा कविता-पाठ करना उन्हें बड़ा अच्छा लगता है। अध्यापक का कर्त्तव्य बनता है कि वह प्रत्येक बच्चे को कविता सुनाने की प्रेरणा दे। इससे उद्योगों तथा कार्यालयों में मौखिक अभिव्यक्ति दिशा-निर्देश देने में भी सहायता मिलती है। इस सन्दर्भ में हम दूरभाष (टेलीफोन) तथा मोबाइल सेवा की चर्चा कर सकते हैं।
(6) ज्ञानार्जन का महत्त्वपूर्ण साधन–  मौखिक भाषा द्वारा भी हम ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। ज्ञानार्जन की इच्छा ही प्रश्न को जन्म देती है। प्रायः बच्चा तरह-तरह के प्रश्न पूछकर ज्ञानार्जन प्राप्त करता है। विशेषकर, लोक धर्माचार्यों से मौखिक अभिव्यक्ति के माध्यम से ही ज्ञानार्जन प्राप्त करते हैं। यों तो ज्ञान प्राप्ति के लिए हमें विभिन्न ग्रन्थों का अनुशीलन करना पड़ता है अथवा किसी योग्य गुरु की शरण ग्रहण करनी पड़ती है। लेकिन मौखिक अभिव्यक्ति भी ज्ञानार्जन का एक प्रमुख साधन है। विशेषकर अशिक्षित व्यक्ति बोलचाल के द्वारा ही ज्ञानार्जन करता है।
(7) वार्तालाप : अभिव्यक्ति का सहज साधन– मानव का ऐसा स्वभाव है कि वह स्वयं को दूसरों के समक्ष अभिव्यक्ति करना चाहता है। बोलचाल आत्मभिव्यक्ति का सहज साधन है। बोलचाल में प्रवीणता प्राप्त करना भी एक कला है। जिसके पास यह कला नहीं होती वह जीवन में सफल नहीं हो पाता। आजकल वक्तृत्व कला का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। लेकिन कुछ लोगों को बिना प्रशिक्षण के ईश्वरीय वरदान प्राप्त होता है कि वे धाराप्रवाह भाषा बोलकर भावाभिव्यक्ति करते हैं। एक साधारण व्यक्ति भी सहज रूप से भावाभिव्यक्ति कर सकता है। साधना और प्रशिक्षण पाकर तो व्यक्ति अपनी वाणी में जादू उत्पन्न कर सकता है। बड़े-बड़े नेताओं के गले में तो वाणी का निवास होता है और के अपनी भाषण कला द्वारा जनता को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं ।
(8) मौखिक अभिव्यक्तिः एक व्यवसाय– आज तो मौखिक अभिव्यक्ति एक व्यवसाय का रूप धारण कर चुकी है। वस्तुओं के क्रयविक्रय में मौखिक अभिव्यक्ति का विशेश महत्त्व होता है। एक सेफल व्यापारी मौखिक अभिव्यक्ति में पारंगत होने के कारण ही अधिकाधिक माल बेचता है और धन कमाता है। विभिन्न कम्पनियों के विक्रय अधिकारी (Sales Managers) अपनी मौखिक अभिव्यक्ति की ही कमाई खाते हैं। आज विज्ञान संस्कृति का आधार भी यही मौखिक अभिव्यक्ति है। यही नहीं, फिल्म उद्योग तथा दूरदर्शन के सीरियल्स के पीछे भी मौखिक अभिव्यक्ति का ही कार्य होता है। फिल्मों तथा नाटकों के अभिनय के साथ-साथ मौखिक अभिव्यक्ति का भी विशेष महत्त्व रहता है ।
(9) भाषा शिक्षण में बोलचाल का महत्त्व– बोलचाल से ही भाषा शिक्षण का आरम्भ होता है। छोटा बच्चा पहले बोलना सीखता है । उसके बाद पढ़ना तथा फिर लिखना। मौखिक अभिव्यक्ति में बच्चे को ‘अनुकरण’ तथा ‘अभ्यास’ के अनेक अवसर प्राप्त होते हैं। यह सर्वविदित तथ्य है कि ‘अनुकरण’ तथा ‘अभ्यास’ भाषा शिक्षण के महत्त्वपूर्ण साधन हैं। हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि बोलचाल द्वारा भाषा शिक्षण बड़ी सरलता से हो सकता है। लेकिन लेखन तथा वाचन में अनेक कठिनाइयाँ उपस्थित होती है। इसलिए भाषा शिक्षण में बोलचाल का विशेष महत्त्व है।
(10) व्यक्तिगत विकास का महत्त्वपूर्ण साधन– मौखिक अभिव्यक्ति मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास का भी प्रमुख साधन है। मनुष्य अपनी वक्तृत्व कला द्वारा दूसरे पर अपने व्यक्तित्व का प्रभाव छोड़ता है। मौखिक अभिव्यक्ति से ही मानव का आन्तरिक और बाह्य विकास संभव है। व्यक्ति लेखन द्वारा भी ऐसा कर सकता है। परन्तु बोलचाल द्वारा जो उन्मुक्त अभिव्यक्ति हो सकती है, वह लेखन द्वारा नहीं हो सकती। बड़े-बड़े साहित्यकार श्रोताओं के समक्ष जब बोलने के लिए खड़े होते हैं तो उनकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है, क्योंकि मौखिक अभिव्यक्ति की कला उनमें नहीं होती। इसलिए बोलचाल व्यक्तित्व विकास में अत्यधिक सहायक है। यही नहीं, नौकरियाँ प्राप्त करने के लिए युवक-युवतियों को साक्षात्कार का सामना करना पड़ता है। उस समय मौखिक अभिव्यक्ति कौशल उनके काम आता है।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *