स्थानीय ज्ञान से आप क्या समझते हैं?
स्थानीय ज्ञान से आप क्या समझते हैं?
अथवा
स्थानीय ज्ञान, विषयक ज्ञान एवं वैश्विक ज्ञान में अन्तर कीजिए।
उत्तर— स्थानीय और सार्वभौमिक ज्ञान हमारी आत्मा में निहित होता है तथा शिक्षा द्वारा उसे प्रकाश में लाया जाता है। ज्ञान का अपना कोई उद्देश्य नहीं होता है। वह जीवन जीने में सहायक होता है। ज्ञान साधन है, साध्य नहीं।
व्याकरण, तर्कशास्त्र, छन्द शास्त्र, प्राचीन भाषाएँ आदि विषयों के समावेश से शाश्वत सत्य, सनातन सत्य को प्रदान किया जा सकता है। शाश्वत सत्य सर्वथा भिन्न व सार्वभौमिक होता है। कुछ ज्ञान हमें स्थानीय के साथ सार्वभौमिक दिया जाना चाहिए। जिससे हम अपनी संस्कृति को बनाये रख सकें। यह स्थानीय व सार्वभौमिक ज्ञान किसी भी शिक्षा प्रणाली का सुदृढ़ आधार होता है। इन सर्वकालिक सत्यों का आन्तरिकरण हेतु महान साहित्यिक ग्रंथों का अध्ययन आवश्यक है । पाठ्यक्रम साहित्य ग्रंथों का अध्ययन आवश्यक है। पाठ्यक्रम में ऐसा ज्ञान हो जो स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें। जीवन में जब समस्याएँ आती हैं तो छात्र स्थानीय परिवेश के आधार पर सामाजिक जीवन की समस्याएँ का हल खोजता है। हमें उन सभी विषयों का स्थानीय के साथ सार्वभौमिक हो का पाठ्यक्रम में अध्ययन किया जाना चाहिए। पाठ्यक्रम में उन मानसिक योग्यताओं व दक्षताओं का उल्लेख होना चाहिए जो स्थानीय व सार्वभौमिक हो। स्थानीय व सार्वभौम पाठ्यक्रम ही जीवन में परिपूर्णता लाता है।
पाठ्यक्रम में स्थानीय विषयों को शामिल नहीं किया जाता है तो बालक को व्यावहारिक जीवन में काफी समस्याएँ उद्वेलित होंगी।
स्थानीय और सार्वभौमिक पाठ्यक्रम के गुण–निम्नलिखित है—
(1) स्थानीय तथा विश्व की अन्य संस्कृतियों से अवगत कराना।
(2) ऐसी क्षमताओं का विकास करना जिनमें सृजनात्मक क्रियाओं एवं स्वअधिगम स्वतंत्रतापूर्वक हो सके।
(3) छात्रों में सत्यम् शिवम्, सुन्दरम् के प्रति रुचियों का विकास करना ।
(4) शारीरिक स्वास्थ्य के विषय में जानकारी देना ।
(5) विविध स्थानीय व्यवसायों की जानकारी देना तथा छात्रों में रुचि विकसित करना ।
(6) पाठ्यक्रम का सामाजिक जीवन से घनिष्ठ संबंध होना चाहिए।
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