हड़प्पा सभ्यता (2300 – 1750 ई. पू.)
हड़प्पा सभ्यता (2300 – 1750 ई. पू.)
सिन्धु सभ्यता (indus valley civilization) वास्तव में भारतीय ही है। यह भवन निर्माण और उद्योग के साथ – साथ वेश भूषा तथा धर्म में आधुनिक भारतीय संस्कृति का आधार है ।मोहनजोदड़ो में ऐसी विशेषताएं दृष्टिगोचर होती है ऐतिहासिक भारत में सदा विद्दमान रहीं हैं।……….प्रो० गार्डन चाइल्ड
असिकन्या मरुद्वधे वितसत्यार्जीकीये शृणुह्या सुषोमया।। …… ऋग्वेद
इसका प्रसार अरब सागर से लेकर सुदुर j&k की पहाड़ियों तक था ।
हड़प्पा सभ्यता (2300 – 1750 ई. पू.)
- खोज – 1921
- खोजकर्ता – दयाराम साहनी
हड़प्पा रावी नदी के किनारे पंजाब के माँटगोमरी जिले में है। इसकी खुदाई दयाराम साहनी के नेतृत्व में 1921 ई. में की गयी। यह शहर विभाजित है, पश्चिमी में गढ़ी है और पूर्वी भाग में निचला शहर है। हड़प्पा में छ:-छ: के दो कतारों में धान्य कोठार मिले हैं। अनाजों के दाबने के लिए एक चबूतरा बना था, इसमें जौ एवं गेहूँ के दाने मिले हैं, दो कतारों में 15 मकान मिले हैं। इनकी पहचान श्रमिक आवास के रूप में हुई है। दक्षिण क्षेत्र में एक कब्रिस्तान बना हुआ है।
हड़प्पा से एक मूर्ति धोती पहने मिली है, इनसे शरीर संरचना का ज्ञान मिलता है। यहाँ बालू पत्थर की दो मूर्तियां भी प्राप्त हुई। एक बरतन पर मछुआरे का चित्र बना मिला है। शंख का बना हुआ एक बैल भी मिला है। कांस्य दर्पण भी यहाँ से प्राप्त हुए हैं। यहाँ से बना कांसा का एक्का प्राप्त हुआ है। सिन्धु सभ्यता की अभिलेखयुक्त मुहरें सबसे ज्यादा हड़प्पा से ही प्राप्त हुई हैं।
हड़प्पा सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं
इसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि, यह नगरीय सभ्यता थी। ऐसा मानना गलत नहीं होगा कि, भारत में सर्वप्रथम सुनियोजित और सुव्यवस्थित नगरीय व्यवस्था सिंधु घाटी सभ्यता के रूप में पनपी थी। नगरों की व्यवस्थाएं निम्न थी-
- सिंधु घाटी सभ्यता एक कांस्ययुगीन सभ्यता थी। यहां के लोग कांस्य से बनी चीजों का प्रयोग करते थे। खुदाई के दौरान कांस्य से बनी कई चीजें प्राप्त हुई है, जिससे पता चलता है कि, सिंधु सभ्यता के लोग कांस्य से भली-भांति ज्ञात थे यह तांबा और टीन को पिघलाकर कांसे बनाते थे।
- पके हुए ईटों के मकान, सड़कों का चौड़ा होना, सड़के समकोण पर काटती, पानी के लिए निकास व्यवस्था, सीवरेज लाइन और भी कई विशेषताएं थी। जो आज के शहरी व्यवस्था से मिलती-जुलती हैं , इसके अलावा यह नगर व्यापार प्रधान हुआ करते थे।
- सिंधु घाटी सभ्यता एक आद्यऐतिहासिक सभ्यता है। आद्य ऐतिहासिक का तात्पर्य है कि, इस सभ्यता की लिखित जानकारी तो मिली है लेकिन अभी तक इस लिपि को पढ़ा नहीं गया है। इस कारण इस सभ्यता को आद्य ऐतिहासिक सभ्यता कहां गया है। जब इस लिपि को पढ़ लिया जाएगा तब इसे इतिहास कहां जाएगा।
- सिंधु घाटी सभ्यता के लोग धार्मिक तथा अर्थ उनकी धार्मिक मान्यताएं थी। सिंधु वासी लिंग एवं योनि के प्रतीकों की पूजा करते थे। इसके अलावा वह वृक्ष पूजा, पशु पूजा, अग्नि कृत्य, स्नान ध्यान और जल देवता की पूजा करते थे। वहां के लोग पवित्र स्नान और जल पूजा का धार्मिक महत्व समझते थे। इसके अलावा वहां के लोग पशु बलि और नरबलि देते थे। कहीं-कहीं मातृ पूजा का उल्लेख भी मिलता है।
- विश्व सभ्यता युद्ध विरोधी सभ्यता थी अथार्थ यहां के लोग शांतिप्रिय थे। यहां प्रशासन सुव्यवस्थित था और ना ही खुदाई के दौरान किसी प्रकार के हथियार मिले। इस प्रकार कहा जा सकता है कि, सिंधु घाटी सभ्यता के लोग अमन पसंद थे। तथा यह एक युद्ध विरोधी सभ्यता थी।
- सामान्य जनता जादू और टोने टोटके में विश्वास करती थी सिंधवासी परलोक में विश्वास करते थे। और भी कई धार्मिक प्रथाएं प्रचलित थी। जिन्हें आज भी हिंदू धर्म में देखा जा सकता है। लेकिन उनकी लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है। इसके कारण उनकी भाषा और विचारों को समझना मुश्किल है।
- सिंधु घाटी सभ्यता एक व्यापार प्रधान सभ्यता थी। जितने भी प्राचीन सभ्यताएं हुई है वे कृषि प्रधान थी। लेकिन सिंधु घाटी सभ्यता एक नगरीय होने के साथ व्यापारिक प्रधान सभ्यता थी।
- सिंधु घाटी सभ्यता के लोग कला एवं संस्कृति में निपुण थे। वहां के लोगों को मूर्ति कला, बर्तन कला, धातु कला, चित्रकला, लिपि ज्ञान, माप तौल, भवन निर्माण आदि कलाओं का ज्ञान था उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि, सिंधु वासी कला प्रेमी थे।
- सभ्यता का विस्तार काफी बड़े क्षेत्र में था। करीब 1300000 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई थी। जितनी बड़ी मिश्र और नील सभ्यता मिलाकर थी, उससे कई गुना बड़ी सिंधु घाटी सभ्यता थी।
हड़प्पा सभ्यता का नगर नियोजन
हड़प्पा सभ्यता में जो, नगरीय व्यवस्था शहरी स्वरूप देखने को मिलती है। ऐसी व्यवस्था किसी अन्य किसी भी प्राचीन सभ्यता में देखने को नहीं मिलती। इस सभ्यता का नगर नियोजन ग्रीड पद्धति पर आधारित था। भारत में सुनियोजित नगरीय सभ्यता का प्रारंभ यहीं से हुआ होगा।
ग्रिड पद्धति पर आधारित
- ग्रिड पद्धति वह पद्धति जिसमें सड़कें सीधी होती है एवं एक दूसरे को समकोण पर काटती है और किनारे-किनारे और घर बनते हैं देखने में यह किसी शतरंज की तरह लगता है। शहर को दो अलग अलग भागों में विभाजित किया गया था। एक पूर्वी नगर और दूसरा पश्चिमी नगर। मुख्यतः पश्चिमी नगर दुर्ग कहलाते थे। वे थोड़ी ऊंचाई पर बनाए जाते थे।
- जबकि पूर्वी नगर थोड़ी नीचे होते थे। जिस कारण उन्हें निम्न नगर कहा जाता था। संभवतः पश्चिमी नगर में अमीर लोग रहते थे। वहां बड़े-बड़े महल एवं घर थे। जबकि पूर्वी नगर किसान या आमजन के लिए होते थे।
- पूर्वी नगर के लिए चारों तरफ कोई सुरक्षा दीवार नहीं होती थी। जबकि पश्चिमी नगर में चारों ओर सुरक्षा दिवार होती थी। जिस कारण उन्हें दुर्ग कहा जाता था। लेकिन इसी सभ्यता के एक स्थल धोलावीरा गुजरात से नगर तीन भागों में विभाजित मिला है।
सड़क और नालियों की व्यवस्था
- सड़के भी दो प्रकार की थी एक मुख्य सड़क जो अत्यधिक चौड़ी (लगभग 10) मीटर की होती है तथा एक गली की सड़क जो कम चौड़ी (लगभग 3) मीटर होती थी। इसकी एक और विशेषता है कि, घरों के मुख्य दरवाजे मुख्य सड़क पर नहीं खोले जाते थे बल्कि गली की सड़कों की ओर खोलें जाते थे।
- लेकिन लोथल (गुजरात) एक ऐसा स्थल है जहां घरों के मुख्य दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खुले मिले हैं। पीने की जल की व्यवस्था के लिए हर घरों में एक कुआं था। उन को पीने के पानी की व्यवस्था होती थी। वही जल निकासी के लिए नालियां बनाई गई थी। यह भी इस सभ्यता की एक बड़ी विशेषता है कि, यहां जल निकासी के लिए सुव्यवस्थित नालियां बनाई गई थी।
- घरों के पास छोटी नालिया थी। जो मुख्य सड़क के पास बड़ी नाली से मिलती और इन के माध्यम से शहर से दूर गंदगी चली जाती थी. धोलावीरा एक ऐसा स्थल है। जहां लकड़ी से बनी नालियां प्राप्त हुई है जो ज्यादा सुनियोजित थी।
भवन निर्माण
- हड़प्पा सभ्यता के घरों की एक विशेषता थी। उनके दरवाजे और खिड़कियां मुख्य सड़क की ओर नहीं खुलते थे। सामान्यतः निम्न वर्ग के मकान छोटे होते थे। जबकि उच्च वर्ग के बड़े होते थे खुदाई के दौरान घरों में सीढ़ियों के अवशेष भी मिले हैं। इससे पता चलता है कि, घर दो मंजिल के हुए होंगे।
- हड़प्पा सभ्यता सभ्यता से कच्ची ईंट और पक्की ईंट दोनों का प्रमाण मिलता है। सामान्यता कच्ची ईंटों से सुरक्षा दीवार और सड़के बनाई जाती थी। जबकि पक्की ईंटों से भवन इत्यादि बनाए जाते थे। और यह ईटें निश्चित अनुपात (4:2:1) में मिलती हैं। अधिकांश घरों के दरवाजे तीन या चार फुट चौड़े होते थे।
- घरों में अलमारियां भी बनाई जाती थी मुख्य दरवाजे के बाद खुला आंगन था। जिसके एक कोने मे रसोई थी और उसके पास एक स्नानघर और शौचालय भी थे। इस सभ्यता से सामूहिक भवन मिले हैं।
- सामूहिक भवन जहां समाज के लोग या शहर के लोग समारोह या उत्सव में भाग लेते थे। जैसे मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानघर तथा विशाल अन्नानगर जहां, अन भंडार किया जाता इस प्रकार, सिंधु घाटी सभ्यता के लोग आधुनिक शहरीकरण से परिचित थे।
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