अज्ञेय रचित ‘हिरोशिमा’ शीर्षक कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
अज्ञेय रचित ‘हिरोशिमा’ शीर्षक कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर :- द्वितीय विश्वयुद्ध में 6 अगस्त 1945 को अमेरिका के एक बमवर्षक विमान से जापान के हिरोशिमा नगर पर अणुबम गिराया गया। इससे जान-माल की अपार क्षति हुई। ‘हिरोशिमा’ शीर्षक कविता की पृष्ठभूमि यही है। कवि कहता है कि नगर के चौक पर एक दिन सहसा सूरज निकला। यह सूरज प्रकृति का सूरज नहीं था, मानव निर्मित अणुबम के विस्फोट से उत्पन्न सूरज था। इस सूरज की धूप आकाश से नहीं, अपितु मिट्टी के फटने से चारों ओर बरसी। प्रकृति का सूरज तो पूरब में उगता है, पर मानव निर्मित यह सूरज नगर के बीच सहसा उदित हुआ। इस अणुबम रूपी सूरज कके उदित होने से मानव-जन की छायाएँ दिशाहीन सब ओर पड़ी। काल-सूर्य के रथ के पहियों के अरे जैसे टूटकर चारों ओर बिखर गए हों। यह मानव निर्मित सूर्य कुछ ही क्षणों के अपने उदय-अस्त से सारी
मानवता को विध्वस्त कर गया। इस सूर्य का उदित होना, दोपहरी की प्रचंड गर्मी का आक्रमण और फिर सूर्य का अस्त हो जाना-ये सारी स्थितियाँ कुछ ही क्षणों में घटित हो गई। उस सूर्य के उदित होते ही सारे मानव-जन वाष्प बनकर इस दुनिया से दूर चले गए। आज भी उनकी छायाएँ झुलसे हुए पत्थरों और उजड़ी हुई सड़कों की गच पर पड़ी हुई हैं। सारे मानव-जन विनष्ट हो गए। उनकी पत्थरों पर पड़ी हुई छायाएँ उनकी साक्षी हैं। साक्षी हैं छायाएँ कि कभी यहाँ भी इनसान रहते थे। साक्षी हैं ये छायाएँ कि इनसान इतना निर्दय हो सकता है कि इनसान को मिटाने में उसे थोड़ी भी हिचक नहीं होती।
यह कविता भौतिकवादी और साम्राज्यवादी मानव की दृष्टि के विरोध में एक तीखा व्यंग्य लेकर उपस्थित होती है। यह कविता युद्ध और शांति की समस्या से मुठभेड़ करती है और हमारे भीतर यथार्थ चित्रण से करुणा का स्त्रोत प्रवाहित करती है। यह अज्ञेय की सफलतम रचनाओं में एक है।
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