अनुशासनात्मक क्षेत्र तथा विद्यालय विषय के मध्य सम्बन्ध को समझाइये ।

अनुशासनात्मक क्षेत्र तथा विद्यालय विषय के मध्य सम्बन्ध को समझाइये । 

उत्तर— अनुशासनात्मक क्षेत्र तथा विद्यालय विषय के मध्य सम्बन्ध–ज्ञान अखंड हैं फिर भी शिक्षा प्रणाली के अन्तर्गत उसे अलगअलग क्षेत्रों में विभाजित कर दिया गया हैं। क्योंकि ज्ञान का निरन्तर विकास होता रहता है। यह विकास जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उपयोगार्थ एवं विकास के संदर्भ में मूल्यवान होता है। विशिष्ट रूप से जब से सृष्टि का प्रारम्भ हुआ है और मानव ने इतिहास के माध्यम से इस समय को विभिन्न कालों में विभाजित कर दिया है। यह उपयुक्त होगा कि यदि वैदिक काल से शुरू किया जाए और चलते-चलते बौद्ध काल, मुस्लिम काल या मध्यकाल, ब्रिटिश काल तत्पश्चात् भारत की स्वाधीनता और स्वातंत्र्योत्तर काल और विश्व के सभी देशों में ज्ञान को कहीं भी अखंड रूप से नहीं पढ़ाया गया है। हर युग और हर देश में ज्ञान को विभिन्न विषयों में बाँटा गया है। इन विषयों के माध्यम से ही शिक्षा का प्रबन्धन भावी पीढ़ी के लिए किया गया है। शिक्षा प्रणाली में निहित विषयों को अपने-अपने युग में प्रशासकों की शासकों की आवश्यकता के अनुरूप ज्ञान का विषयों में रूपान्तरण किया गया है।
विभिन्न शिक्षा आयोगों के गठन, विभिन्न समितियों के गठन और भिन्न-भिन्न समय बनाई शिक्षा नीतियों, उनके कार्यान्वयन व आयोगों की अनुशंसाओं के आधार पर पाठ्यचर्या के रूप में जो निर्धारित किए गए हैं वे विषय संकाय के रूप में आज भी शिक्षा प्रणाली में मान्य है । इन विषय संकायों के निर्माण का आधार विषयों की प्रकृति है। प्रकृति के साथ ही उन विषयों के उद्देश्यों को भी आधार माना गया है। एक आधार और भी है कि मनुष्य के जीवन के और समाज की विभिन्न क्षेत्रों में उनका उपयोग।
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