अभिप्रेरण की परिभाषा दीजिए व अभिप्रेरण के विभिन्न सिद्धान्तों को स्पष्ट कीजिए ।
अभिप्रेरण की परिभाषा दीजिए व अभिप्रेरण के विभिन्न सिद्धान्तों को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर— अभिप्रेरणा के सिद्धान्त – अभिप्रेरणा का अधिगम में महत्त्व है इसलिए अभिप्रेरणा आधारित अनुसंधान निरन्तर बढ़ते जा रहे हैं। इन अनुसंधानों के आधार पर अनेक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया। अभिप्रेरणा की युक्तियों का प्रयोग कर छात्रों की अधिगम तत्परता में वृद्धि की जा सकती है। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपादित अधिगम सिद्धान्त निम्नलिखित हैं ।
(1) मूलप्रवृत्यात्मक सिद्धान्त – इस सिद्धान्त के प्रतिपादक विलियम मैकडूगल है। इस सिद्धान्त के अनुसार व्यक्ति का व्यवहार उसकी मूल प्रवृत्तियों से संचालित होता है।
जिन्मवर्ग मर्सेल ने इसका विरोध किया।
(2) मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त– इस सिद्धान्त का प्रतिपादक सिग्मंड फ्रायड था। उसके अनुसार अभिप्रेरणा को प्रभावित करने वाले 2 मूल कारक हैं—
1. मूल प्रवृत्तियाँ 2. अचेतनमन
फ्रायड के अनुसार 2 मूल प्रवृतित हैं।
1. जीवन मूल प्रवृत्ति 2. मृत्यु मूल प्रवृत्ति
(1) जीवन मूल प्रवृत्ति – जीवन मूल प्रवृत्ति सृजनात्मक कार्यों की ओर प्रवृत्त करती है । मृत्यु मूल प्रवृत्ति विध्वंसात्मक कार्यों की ओर प्रवृत्त करती है। साथ ही अचेतन मन व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करता है।
परन्तु मनोवैज्ञानिक का मत था है कि व्यक्ति के व्यवहार अचेतन मन नहीं बल्कि चेतन मन प्रभावित करता है।
(2) उद्दीपन अनुक्रिया का सिद्धान्त – इस सिद्धान्त का प्रतिपादन व्यवहारवादी स्किनर ने किया। इसके अनुसार व्यक्ति का समस्त व्यवहार उद्दीपन का परिणाम है ।
(3) अर्न्तनाद सिद्धान्त — इस सिद्धान्त का प्रतिपादक क्लार्क एल. हल (Klark L. Hull) था । इस सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य की शारीरिक आवश्यकताएँ मनुष्य में तनाव पैदा करती हैं। इसमें वाद में मनोवैज्ञानिक आवश्यकताएँ जोड़ दी गईं।
मनुष्य की अन्य आवश्यकताओं के न जोड़ने के कारण इसको अमान्य कर दिया गया।
(4) प्रोत्साहन सिद्धान्त – इस सिद्धान्त का प्रतिपादक फाकमैन तथा बोल्स था। इस सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य अपने पर्यावरण में स्थित वस्तु स्थित क्रिया से प्रभावित होकर काम करता है। प्रोत्साहन 2 प्रकार के होते हैं।
I. सकारात्मक
II. नकारात्मक
सकारात्मक प्रोत्साहन – भोजन, पानी, सुरक्षा व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं ।
नकारात्मक प्रोत्साहन – दण्ड असफलता, कार्य में बाधा आदि व्यक्ति को आगे बढ़ने से रोकते हैं।
(5) संकल्प सिद्धान्त – इस सिद्धान्त में दृढ़ इच्छा शक्ति का महत्त्व है। यदि व्यक्ति किसी कार्य को करने के लिए संकल्प धारण कर लेता है तो आन्तरिक अभिप्रेरक, उद्दोलन उसको कार्य करने के लिए अभिप्रेरित करते हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार मानव का व्यवहार इच्छा से संचालित होता है। इच्छा को बौद्धिक मूल्यांकन कर अभिप्रेरणा दी जाती है।
(6) अभिप्रेरणा स्वास्थ्य सिद्धान्त– फ्रेडिक हर्जवर्गन 1966 में इसका प्रतिपादन किया। इसमें 2 तथ्यों को महत्त्व दिया गया है।
1. स्वास्थ्य कारक 11 प्रेरक
शिक्षा के क्षेत्र में अभिप्रेरणा के सन्दर्भ में व्यवस्थित कक्षा, प्रयोगशाला, पुस्तकालय होने चाहिए। शिक्षक प्रशिक्षण में प्रजातांत्रिक विधियों का प्रयोग करें ।
(7) आवश्यकता सिद्धान्त या मानवतावादी सिद्धान्त ( 1954 ) – इस सिद्धान्त का प्रतिवादक मास्लो था । उसने व्यक्ति की 5 प्रकार की आवश्यकताएँ बताईं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति में अभिप्रेरणा का विशेष महत्त्व है, इसीलिए इसे अभिप्रेरणा सिद्धान्त कहते हैं । मास्लो ने व्यवहारवादियों एवं मनोविलेषणवादियों के इस विचार का विरोध किया कि मनुष्य का व्यवहार आन्तरिक एवं बाह्य उद्दीपनों पर निर्भर करता है ।
मास्लो का यह सिद्धान्त मानवतावादी है। इस सिद्धान्त के अनुसार व्यक्ति की आवश्यकताएँ सबसे प्रबल अभिप्रेरक हैं। शिक्षा का पाठ्यक्रम वास्तविक जीवन से सम्बन्धित होना चाहिए। जो कुछ भी बालकों को पढ़ाया जाए वह उनकी जीवन की आवश्यकाओं से 2 जोड़ देना चाहिए ।
(8) मुरे का अभिप्रेरणा सिद्धान्त – मुरे का अभिप्रेरणा सिद्धान्त आवश्यकता सिद्धान्त भी कहा जाता है। उसका मत है असन्तुष्ट आवश्यकता प्राणी को कार्य करने के लिए उत्प्रेरित करती है व्यक्ति तब तक क्रियाशील रहा। जब तक उसकी आवश्यकता पूर्ण नहीं हो जाती ।
उसने 2 प्रकार की आवश्यकताएँ मानी – 1. प्राथमिक और 2. गौण ।
(9) निष्पत्ति प्रेरणा सिद्धान्त – 1951 में मेक्सेलैण्ड ने अपने सहयोगियों के साथ इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उसके अनुसार मानव प्राणी की निष्पत्ति अभिप्रेरकों की शक्ति में एक-दूसरे से भिन्न होती है। निष्पत्ति अभिप्रेरणा तब क्रियाशील होती है, जब व्यक्ति को यह पता हो, किस मानक के आधार पर उसके कार्य का मूल्यांकन होगा।
(10) अभिप्रेरणा का आन्तरिक सिद्धान्त – इस सिद्धान्त का प्रतिपादन 1956 में हेरो तथा उसके सहयोगियों ने किया। उसने बन्दरों पर अनेक प्रयोग किए और पाया कि बन्दरों ने समस्या का समाधान बिना किसी बाह्य पुरस्कार के किया । उसने पाया कि आन्तरिक अभिप्रेरणा किसी कार्य को करने में अधिक महत्त्व रखती है ।
(11) लेविन का सिद्धान्त – इस सिद्धान्त के प्रतिपादक कुर्त लेविन थे। उन्होंने अभिप्रेरणा का महत्त्व अधिगम में माना है। अधिगम में उसने व्यक्ति वातावरण बाधाएँ विजय व उद्देश्य प्राप्ति की बात कही है। उसने अनुभव के साथ व्यवहार तथा अधिगम में मानवीय अभिप्रेरणा को महत्त्व दिया है। उसके अनुसार अभिप्रेरणा संयोगों (Bonds), गतिशील प्रक्रिया ( dynamic process), स्मृति, व्याख्या (Erustration) आकांक्षा स्तर तथा निर्णय पर आधारित है।
(12) शारीरिक सिद्धान्त — इस सिद्धान्त के प्रतिपादक मार्गन हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार शरीर में अनेक परिवर्तन होते रहते हैं। किसी न किसी कारणवश शरीर में प्रतिक्रियाएँ होती हैं। किसी भी कार्य की प्रतिक्रिया में, अभिप्रेरणा मूल में विद्यमान होती है। शरीर में स्नायुतंत्र, रक्त संचार, अन्त: स्रावी ग्रन्थियाँ आदि शारीरिक तंत्रों में परिवर्तन होते रहते हैं। जिसके प्रभाव स्वरूप व्यक्ति क्रियाएँ करता है ।
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