आगमन-निगमन विधि पर चर्चा कीजिए ।

आगमन-निगमन विधि पर चर्चा कीजिए ।

उत्तर— आगमन विधि–इस विधि में प्रत्यक्ष अनुभवों, उदाहरणों तथा प्रयोगों को भली-भाँति अध्ययन करके नियम निकाले जाते हैं । इनमें किसी भी समस्या का समाधान करने के लिए पहले से ज्ञात तथ्य अथवा नियम का सहारा नहीं लिया जाता बल्कि पूर्व ज्ञान के आधार पर उचित सूझबूझ और तर्क शक्ति की सहायता से आगे बढ़ा जाता है। सभी समस्याओं के हल, कार्य-प्रणाली व परिणाम का उचित अध्ययन करके फिर एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचा जाता है, नियम निकाले जाते हैं। इस प्रकार से हम छात्रों को पहले से ही नियम व सूत्र न बताकर उनसे ही नियम व सूत्रों की स्थापना कराते हैं।
यह विधि निम्नांकित सूत्रों पर आधारित है—
(1) विशिष्ट से सामान्य की ओर
(2) ज्ञात से अज्ञात की ओर
(3) प्रत्यक्ष से प्रमाण की ओर
(4) उदाहरण से नियम की ओर
(5) स्थूल से सूक्ष्म की ओर।
इस प्रकार से यह एक ऐसी विधि है जिसमें काफी संख्या में उदाहरण लेकर सूत्र की रचना की जाती है। यह आगमन पर निर्भर करती है। जिसका अर्थ है- “सर्व व्यापक तथ्य को सिद्ध करना ।”
पहले यह दिखाया जाता है कि तथ्य किसी एक विशेष स्थिति में सही है तथा फिर यह कि आवश्यकता अनुकूल काफी स्थितियों में सही है। तर्क व समस्याओं के हल करने की प्रक्रिया द्वारा हम किसी सूत्र या सिद्धान्त पर पहुँचते हैं। जब अनेक स्थूल उदाहरणों को समझ लेते हैं तो विद्यार्थी सफलतापूर्वक सिद्धान्त का वर्णन कर सकता है।
कार्य विधि—इसके निम्न चरण हैं—
(1) उदाहरण–इस चरण में छात्रों के समक्ष एक ही प्रकार के कई उदाहरण प्रस्तुत किये जाते हैं।
(2) निरीक्षण–छात्र प्राप्त उदाहरणों का निरीक्षण कर किसी परिणाम तक पहुँचने की चेष्टा करते हैं ।
(3) नियमीकरण–छात्र प्रस्तुत उदाहरणों का निरीक्षण करके किसी सामान्य नियम को निर्धारित करते हैं ।
(4) सत्यापन–नियम निर्धारण के पश्चात् छात्र उसका सत्यापन स्वयं ही अन्य उदाहरणों की मदद से करते हैं ।
गुण–निम्नलिखित हैं—
(1) यह मनोवैज्ञानिक विधि है
(2) यह वैज्ञानिक विधि है ।
(3) यह कक्षा-कक्ष के माहौल को नीरस बनने से रोकती है।
(4) इस विधि के अन्तर्गत अध्यापक व विद्यार्थी दोनों सक्रिय रहते हैं ।
(5) इस विधि के द्वारा प्राप्त ज्ञान स्थायी होता है।
(6)  यह बालकों की खोजी प्रवृत्ति को जन्म देती है।
(7) इस विधि के द्वारा बालक में आत्मविश्वास बढ़ता है तथा वह आनन्द का अनुभव करता है ।
(8) यह विधि अनुभवों, प्रयोगों तथा क्रियात्मक कार्यों द्वारा ज्ञान प्राप्ति पर बल देती है।
(9) इस विधि द्वारा बालकों की आलोचनात्मक, निरीक्षण एवं तर्क करने की शक्ति का विकास होता है।
दोष—निम्नलिखित हैं—
(1) यह उच्च कक्षाओं के लिए अनुपयोगी है।
(2) इस विधि के अन्तर्गत समय एवं परिश्रम अधिक लगता है।
(3) सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को पूर्ण करवाने में असमर्थ है।
(4) इस विधि के लिए अनुभवी एवं प्रशिक्षित अध्यापकों की आवश्यकता होती है ।
(5) इस विधि पर आधारित पाठ्यपुस्तकों का अभाव है।
(6) कभी-कभी इस विधि में निर्णय अशुद्ध होते हैं।
(7) यह लम्बी विधि है, अर्थात् इस विधि की गति धीमी है।
निगमन विधि–इस विधि का प्रयोग करते समय हम सामान्य से विशिष्ट और सूक्ष्म से स्थूल की ओर अग्रसर होते हैं । इस विधि में छात्र के सम्मुख ज्ञान सूत्रों, नियमों, संबंधों, निष्कर्षों आदि के रूप में प्रस्तुत किया जाता है तथा छात्र इनको याद कर लेते हैं। इनका उपयोग छात्र समस्याओं के हल ज्ञात करने में करते हैं । इस विधि में निगमन तर्क का प्रयोग होता है तथा छात्र नियमों या सूत्रों की सत्यता अभ्यास के द्वारा सीखते हैं।
प्रत्येक मानव मर्त्य है।
सुकरात मानव है।
अतः सुकरात मर्त्य है।
निगमन विधि आगमन विधि की पूरक है। यह विधि स्वयं में उपयोगी नहीं है, क्योंकि इस विधि द्वारा छात्र नियमों या सूत्रों की प्रत्यक्ष जाँच नहीं कर सकते और न ही वे इनको ज्ञात करने की विधि सीख सकते हैं। इस विधि का प्रयोग करते समय अध्यापक छात्रों को गणित की विषय सामग्री के सूत्र तथा नियम बता देते हैं जिनका उपयोग छात्र प्रश्नों को हल करने में करते हैं। इस विधि का प्रयोग मुख्य रूप से बीजगणित, त्रिकोणमिति तथा रेखागणित में किया जाता है। इन विषयों में अनेक सूत्रों एवं संबंधों का प्रयोग होता है तथा प्रत्येक सूत्र की सत्यता की जाँच करना संभव नहीं है। अध्यापक अभ्यास के लिए इन विषयों के सूत्रों की जानकारी विद्यार्थियों को देता है।
बीजगणित, ज्यामिति तथा त्रिकोणमिति में अध्यापक कक्षा में यंत्रवत सामान्य रूप से निम्न प्रकार की बातें बताते हैं ।
निगमन विधि की विशेषताएँ—
(1) इस विधि में विद्यार्थी को प्रत्येक सूत्र, विधि, नियम या निष्कर्ष को खोजना नहीं पड़ता। यह विधि संक्षिप्त होने के साथ-साथ व्यावहारिक भी है। इस विधि से कम समय में अधिक ज्ञान प्राप्त करना संभव है ।
(2) इस विधि से ज्ञात सूत्रों की उपयोगिता का क्षेत्र बहुत व्यापक है।
(3) इस विधि में छात्रों एवं अध्यापकों को कम परिश्रम करना पड़ता है, क्योंकि प्रत्येक सूत्र या नियम को ज्ञात करने से सम्बन्धित पदों की जानकारी आवश्यक नहीं । अनेक सूक्ष्म सिद्धान्त छात्रों को कम समय में बताए जा सकते हैं।
(4) जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में नवीन समस्याओं को हल करने के लिए यह विधि अत्यन्त उत्तम है, क्योंकि हल प्राप्त करने के लिए सूत्रों या विधियों की जानकारी ही आवश्यक होतीं है।
(5) सूत्र या नियम पहले से ही ज्ञात होने के कारण समस्याओं को हल करने में एक विशेष सुविधा होती है।
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