लेखन कौशल की प्रमुख शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए ।

लेखन कौशल की प्रमुख शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए । 

उत्तर— लेखन- शिक्षण की विधियाँ– लेखन एक महत्त्वपूर्ण कला है । इसके प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। इसके लिये अनेक विधियों एवं प्रविधियों का अनुसरण किया जाता है। अक्षर ज्ञान से वाक्यों की रचना, भाषा शैली, अभिव्यक्ति के रूपों तक विभिन्न विधियों की आवश्यकता होती है। प्रमुख लेखन-शिक्षण विधियाँ निम्न प्रकार से हैं—

(1) अक्षर के रूप की अनुकरण-विधि– लेखन में अक्षर एवं शब्दों के स्वरूप को विशेष महत्त्व दिया जाता है । अक्षरों का आकार सुन्दर तथा सुड़ौल हो, इस बात का विशेष ध्यान दिया जाता है । इस विधि के अन्तर्गत शिक्षक श्यामपट्ट या स्लेट, कापी पर अक्षरों के लिये बिन्दु रखते हैं। छात्रों को इन बिन्दुओं को मिलाने का अभ्यास कराया जाता है जिससे छात्र अक्षर बना लेता है। तत्पश्चात् अक्षर पूर्ण दिया जाता है उसका अनुकरण कराया जाता है। इसी प्रकार वाक्यों तथा शब्दों को आदर्श रूप में शिक्षक लिखता है या इस प्रकार कार्य पुस्तकों का प्रयोग करके अनुकरण कराते हैं। शिक्षक उनमें सुधार करता है और पुनः अभ्यास कराता है। इस प्रकार के अभ्यास से अक्षरों, शब्दों तथा वाक्यों को लिखना सीख लेते हैं। यदि अर्थ के साथ सिखाया जाये तब अधिक रुचि लेते हैं।
(2) मॉण्टेसरी – शिक्षण विधि– यह मनोवैज्ञानिक शिक्षण की विधि है। इसके अन्तर्गत सिखाते समय हाथ, आँख तथा कान तीनों की सक्रियता पर बल दिया जाता है। सबसे पहले प्लास्टिक या लकड़ी के बने अक्षरों को देखते हैं और उन्हें हाथ से भी स्पर्श करते हैं। इन्हीं अक्षरों पर पैंसिल को घुमवाया जाता है। रंगीन पैंन्सिल का प्रयोग उत्तम रहता है । इस प्रकार बालकों को अक्षरों के स्वरूप को आँख तथा हाथ से अवगत कराया जाता है। तत्पश्चात् प्रथम विधि के अनुसार अक्षरों के रूप का अनुकरण कराया जाता है और अक्षरों को बार-बार लिखने का अभ्यास कराया जाता है। दो अक्षरों के शब्दों को लिखना सिखाते हैं और शब्दों की कठिनाई धीरे-धीरे बढ़ जाती है। शब्दों और वाक्यों को लिखना सिखाया जाता है। यह विधि अधिक प्रचलित है क्योंकि यह मनोवैज्ञानिक तथा व्यावहारिक है।
(3) पेस्टालॉजी विधि– इस विधि का प्रमुख आधार सरल से कठिन की ओर चलता है। अक्षर ज्ञान इसमें पहले कराया जाता है। अक्षरों की आकृति की विभिन्न टुकड़ों में विभाजित कर लिया जाता है तत्पश्चात् टुकड़ों के योग से उस अक्षर की रचना कराई जाती है। पहले उन वर्गों को सिखाया जाता है जो सरल होते हैं।
(4) मनोवैज्ञानिक विधि– इस विधि के अन्तर्गत बालकों को सर्वप्रथम वर्णमाला के अक्षर तथा शब्द आदि सिखाने की अपेक्षापूर्ण वाक्य को बोलना तथा उनका लिखना सिखाया जाये । इस विषय में एक विद्वान् का कथन कि सर्वप्रथम हमें बच्चों को बोलना सिखाना चाहिए। इन पूर्ण वाक्यों के लिये किसी चिह्न विशेष के सिखाने की आवश्यकता. नहीं। भाव-चित्र उनके मस्तिष्क में बन जाएँ, इतना ही पर्याप्त होता है । जब बच्चे मौखिक रूप से पूर्ण वाक्य बोलने लगें और उनकी कर्मेन्द्रियाँ तथा ज्ञानेन्द्रियाँ दृढ़ हो जायें, तो उन्हें पढ़ने व लिखने के लिये तैयार करना चाहिए। एक अन्य लेखक के शब्दों में, बालक जब पाठशाला में भर्ती होने आता है, तो वह छोटे-छोटे वाक्यों को बोलना जानता है। वर्णमाला के भिन्न-भिन्न अक्षर उसके लिये निरर्थक तथा सारहीन होते हैं । उनका अपने में कोई अर्थ नहीं होता। आपस में मिलकर, जब वे शब्दों अथवा वाक्यों के रूप में आते हैं, तभी वे सार्थक बनते हैं अर्थात् उनका अर्थ होता है। अतएव शिक्षाशास्त्रियों ने इस विषय में जो प्रयोग किए हैं, उनके आधार पर बालकों को पहले सार्थक शब्द अथवा वाक्य ही सिखाये जायें।
(5) जेकॉटॉट शिक्षण विधि– इस विधि में छात्र अपने लेखन का स्वयं सुधार करता है। बालकों द्वारा पढ़े हुए वाक्य को छात्रों को लिखने को देता है। छात्र एक-एक शब्द लिखकर शिक्षक द्वारा लिखित शब्दों से मिलान करके अशुद्धियों को शुद्ध करता है। जब वाक्य लिखने लगते हैं तब पुन: मूल वाक्य से मिलान कर लेते हैं। मूल वाक्य को बिना देखे हुए छात्रों को लिखने को कहता है। छात्र उसका स्मरण करके लिखने का प्रयास करते हैं। अशुद्ध शब्दों को शुद्ध रूप में लिखने का अभ्यास करते हैं ।
(6) स्वतंत्र अनुकरण विधि तथा श्रुत-लेखन विधि– जब ‘छात्र अक्षरों तथा वाक्यों को लिखना सीख लेते हैं तत्पश्चात् यह विधि अधिक उपयोगी होती है। इस विधि में छात्रों को दिये गये गद्यांश को स्वतंत्र रूप में अनुकरण कराया जाता है। श्रुत लेखन विधि का अधिक प्रचलन है। शिक्षक छात्रों से श्रुतलेखन कराता है। इसका उद्देश्य – अक्षरों तथा वाक्यों को सुन्दर व सुड़ौल रूप में लिखना तथा शब्दों को शुद्ध रूप में लिखना भी सीखें। ‘लेखन’ में शब्दों की शुद्ध वर्तनी का विशेष महत्त्व है, जबकि वाचन में शुद्ध उच्चारण का प्रथम अवस्था में शब्दों को देखकर उनका शुद्ध रूप में अनुकरण करके लिखना सीखें, तत्पश्चात् श्रुत लेख में सुनकर उन्हें बिना देखे ही लिखने का अभ्यास करना सीखें। अशुद्ध शब्दों को बार-बार अथवा अनेक बार शिक्षक लिखवाता है जिससे वे शुद्ध लिखना सीख सकें।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *