“आरक्षण का मुद्दा राजनैतिक दलों के वोट बैंक के दृष्टिकोण के अतिरिक्त कुछ नहीं है।” शोषित वर्ग को सामाजिक न्याय प्रदान करवाने के लिए आरक्षण के अतिरिक्त आप क्या तरीके सुझाएंगे?

“आरक्षण का मुद्दा राजनैतिक दलों के वोट बैंक के दृष्टिकोण के अतिरिक्त कुछ नहीं है।” शोषित वर्ग को सामाजिक न्याय प्रदान करवाने के लिए आरक्षण के अतिरिक्त आप क्या तरीके सुझाएंगे?

अथवा

आरक्षण के नकारात्क पक्ष को दर्शाते हुए इसके विकल्प की चर्चा करें ।
उत्तर- आजादी के बाद भारत सरकार ने अतिशोषित वर्गों को समाज के मुख्य धारा में शामिल करने तथा उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए आरक्षण का प्रावधान कर रखा था। भारत सरकार द्वारा किए गए आरक्षण का उद्देश्य व्यापक सामाजिक एवं आर्थिक समानता लाना था। यद्यपि ये प्रावधान अस्थायी तौर पर किए गए थे, लेकिन राजनीतिक दलों ने इसे वोट बैंक के एक बड़े साधन के रूप में प्रयोग किया एवं इसे लगभग स्थायी बना दिया।
आरक्षण का मूल उद्देश्य सही है एवं इससे पिछड़े एवं शोषित वर्गों के आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति में बदलाव आया है। परंतु इसका फायदा व्यापक स्तर पर लोगों को नहीं पहुंच सका है। जैसे- एससी/एसटी / ओबीसी में कुछ परिवार पहले से काफी पढ़े-लिखे, संपन्न एवं जागरूक हैं। उन्हें किसी तरह के आरक्षण की आवश्यकता नहीं है परंतु वे जाति मात्र के नाम पर आरक्षण का फायदा उठा रहे हैं। दूसरी तरफ इन वर्गों में बहुसंख्यक लोग जिन्हें सामाजिक एवं आर्थिक सबलता के लिए आरक्षण की आवश्यकता है, वे शैक्षणिक एवं अन्य योग्यता धारण नहीं करते। अतः उन्हें आरक्षण का कोई लाभ मिल नहीं पाता। राजनीतिक दल इस बात को भली-भांति समझ रहे हैं कि सरकार की आरक्षण नीति में सुधार की आवश्यकता है। साथ ही एक तय समय-सीमा के अंदर आरक्षण के लक्ष्य को हासिल कर इसे कम एवं बाद में पूर्णतः समाप्त करने की आवश्यकता है ताकि सभी नागरिक सामाजिक समता को हासिल करते हुए समान मौकों का उपभोग कर सकें। लेकिन अनेक राजनीतिक दल मात्र जाति आधारित एजेंडों के आधार पर चुनाव जीतते हैं। बड़े दल भी व्यापक पैमाने पर जाति आधारित राजनीति का सहारा लेते हैं। ऐसे में आरक्षण के भविष्य में समाप्त होने से उन्हें डर है कि उनका अस्तित्व ही न मिट जाए।
सर्वप्रथम 1951 में अनुच्छेद 15 में संशोधन कर सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों एवं एससी/एसटी के लिए किए गए आरक्षण की व्यवस्था को अवैध माने जाने से रोका गया जिसके तहत सरकारी नौकरियों में एससी/एसटी के
लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई। पिछड़ी जातियों में भी आरक्षण की मांग के कारण 1978 में मंडल कमीशन का गठन हुआ जिसकी सिफारिशों को 1990 में वी.पी. सिंह की सरकार ने लागू करते हुए केन्द्रीय सेवाओं में ओबीसी को 27% आरक्षण का प्रावधान किया। आरक्षण के दायरे को बढ़ाने के लिए विभिन्न वर्गों/समूहों के द्वारा रोज आंदोलन हो रहे हैं। ऐसे आंदोलनों को राजनीतिक दल अपने फायदे के लिए समर्थन देते हैं जिसका नतीजा आरक्षण का दायरा घटने के बदले बढ़ता जा रहा है।
शोषित वर्ग को सामाजिक न्याय प्रदान करने एवं मुख्य धारा में लाने के लिए आरक्षण के अलावा भी कुछ प्रभावकारी उपाय अपनाएं जा सकते हैं। जैसे- अधिकतम लोगों तक विकास के फायदे पहुंचे तथा ग्रामीण स्तर पर भी विभिन्न संसाधन एवं सुविधाएं उपलब्ध हों। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का इस संबंध में PURA (Provide Urban Facilities in Rural Area) की संकल्पना महत्वपूर्ण है जिसे अपनाया जा सकता है। ऐसे क्षेत्र जहां एससी/एसटी अथवा पिछड़ी जातियों का बाहुल्य है, वहां सरकारी स्कूल, अस्पताल तथा अन्य सरकारी सुविधाएं बेहतर हों। इंदिरा आवास जैसी योजनाएं भ्रष्टाचार मुक्त एवं लोगों की पहुंच में हों तथा ग्रामीण सड़कों का अच्छा विकास हो ।
दूसरी बात शोषित एवं पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए शिक्षा का विशेष प्रबंध किया जाए। एससी/एसटी क्षेत्रों में अधिकतम विद्यालय तथा उच्च शैक्षणिक संस्थान खोले जाएं। यदि शोषित वर्ग को अच्छी शिक्षा प्राप्त हो जाए तो ये खुद अपना विकास कर आजीविका का साधन खोज सकेंगे एवं सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सकेंगे।
सरकार को पिछड़े एवं शोषित वर्ग के कौशल विकास के लिए ध्यान देना चाहिए। यदि ये कार्यकुशल हो जाएंगे तो स्व-रोजगार के लिए सक्षम हो जाएंगे। आर्थिक स्थिति में मजबूती के साथ ही इनके सामाजिक स्थिति में खुद-ब-खुद सुधार हो जाएगा।
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