“चुनाव लोकतंत्र की हृदयगति के समान है। यदि वे बहुत जल्दी-जल्दी या बहुत अनियमित रूप से होते हैं तो लोकतंत्र का पतन हो सकता है। ” भारतीय राजनीति के संदर्भ में मध्यावधि चुनावों पर अपने विचार अभिव्यक्त कीजिए।

“चुनाव लोकतंत्र की हृदयगति के समान है। यदि वे बहुत जल्दी-जल्दी या बहुत अनियमित रूप से होते हैं तो लोकतंत्र का पतन हो सकता है। ” भारतीय राजनीति के संदर्भ में मध्यावधि चुनावों पर अपने विचार अभिव्यक्त कीजिए।

अथवा

मध्यावधि चुनावों के नकारात्मक बिन्दुओं को भारतीय राजनीति के संदर्भ में कुछ उदाहरणों के साथ प्रस्तुत करें।
उत्तर – भारत में लोकसभा अथवा राज्य विधानसभाओं के चुनाव की समय सीमा 5 वर्ष निर्धारित की गई है। लेकिन गठित सरकार के 5 वर्ष पूरा होने से पहले ही यदि सरकार अल्पमत में आ जाए अथवा किसी अन्य कारण से सरकार गिर जाए तो इस परिस्थिति में मध्यावधि चुनाव करवाए जाते हैं। 1967 के बाद राज्यों एवं 1977 के बाद केन्द्र में गठबंधन सरकार का गठन होना प्रारंभ हुआ जिससे इस तरह की परिस्थिति उत्पन्न हुई और कई बार मध्यावधि चुनाव की नौबत आई।
मध्यावधि चुनावों का लोकतंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे मुख्यतः तीन प्रकार की समस्याएं पैदा हो सकती हैं। पहली समस्या जनता के मध्य लोकतंत्र एवं चुनाव के बारे में एक नकारात्मक संदेश जाता है और चुनाव में जनता की रुचि घटती है। दूसरी समस्या सरकार के असामयिक बदलाव से पिछली सरकार में चल रही विभिन्न योजनाओं का भविष्य खतरे में पड़ जाता है। जैसे- 1977 में मोरारजी देसाई की सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं के स्थान पर एक वर्षीय योजना प्रारंभ की। इस एक वर्षीय योजना के साथ ही सरकार के कई अन्य महत्वाकांक्षी योजनाओं/कार्यों को 2 साल बाद पुनः सत्ता में आने वाली इंदिरा गांधी की सरकार ने बंद करवा दिया, जिससे अत्यधिक समय, धन तथा देश के श्रम की हानि हुई। तीसरी समस्या किसी भी चुनाव को करवाने में अत्यधिक धन, समय एवं श्रम की आवश्यकता होती है। चुनाव
में खर्च होने वाले सरकारी धन से अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है तथा सरकारी कोष पर पड़े अतिरिक्त बोझ की क्षतिपूर्ति अंततः जनता से प्राप्त की जाती है। प्रत्याशियों द्वारा कालेधन का जमकर प्रयोग किया जाता है। चुनाव में लगभग पूरा • सरकारी तंत्र व्यस्त रहता है जिससे अन्य कार्य प्रभावित होते हैं। मध्यावधि चुनाव के कारण जहां शेयर मार्केट की स्थिति खराब हो जाती है, वहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमारी छवि कमजोर होती है जिससे विदेशी व्यापार एवं निवेश आदि के साथ ही विदेशों के साथ हमारे अन्य रिश्ते भी प्रभावित होते हैं।
अतः मध्यावधि चुनाव हमारे लोकतंत्र के लिए घातक है, परंतु फिर भी यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का एक भाग है। यदि ऐसा न हो तो चुनी गई सरकार तानाशाह हो जाएगी। अतः हमारे नीति-निर्माताओं ने सरकार की निरंकुशता की स्थिति से बचने के लिए ऐसे प्रावधान किए हैं। वर्तमान में हमारा लोकतंत्र परिपक्व होता जा रहा है। विभिन्न राज्यों एवं केन्द्र में साझा सरकार होने के बावजूद मध्यावधि चुनाव की स्थिति कम ही आई है। यह हमारे लोकतंत्र के लिए एक शुभ संकेत है।
> सरकार के अपने कार्यकाल से पहले ही यदि सरकार गिर जाए तो इस परिस्थिति में मध्यावधि चुनाव कराए जाते हैं।
> मध्यावधि चुनावों का प्रभाव
> जनता में चुनाव एवं लोकतंत्र के प्रति आस्था घटती है।
> धन, समय एवं श्रम की बर्बादी होती है।
> अनेक योजनाओं का भविष्य खतरे में पड़ जाता है।
> प्रत्याशियों द्वारा कालेधन का प्रयोग आदि।
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