एकांकी को परिभाषित करते हुए, इसके तत्त्वों का उल्लेख कीजिए ।

एकांकी को परिभाषित करते हुए, इसके तत्त्वों का उल्लेख कीजिए ।

उत्तर—एकांकी का अर्थ है कि एक अंक वाला। यह नाटक का एक ही रूप है। इसमें जीवन के किसी एक पक्ष का चित्रण किया जाता है। यह अंग्रेजी के ‘One Act Play’ का पर्यायवाची है। पाश्चात्य साहित्य के भाव से एकांकी का जन्म हुआ। सर्वप्रथम धर्म प्रचार के लिए पश्चिम में एकांकी का आश्रय लिया गया था। धीरे-धीरे मनोरंजन के लिए इनका प्रयोग किया जाने लगा। एकांकी में भी नाटक की तरह अभिनय प्रमुख होता है। यह अपना स्वतन्त्र अस्तित्व रखता है। डॉ. रामकुमार वर्मा ने लिखा है “एकांकी नाटकों में अन्य प्रकार के नाटकों से अलग विशेषताएँ हैं। उनमें एक ही घटना होती है और वह घटना नाटकीय कौशल से कौतूहल का शमन करती हुई चरम सीमा तक पहुँचती है। उसमें कोई अप्रधान प्रसंग नहीं रहता है। विस्तार के अभावों में प्रत्येक घटना कली की भाँति खिलकर पुष्प की भाँति विकसित हो उठती है। उसमें लता की भाँति फैलने की विशृंखला नहीं होती।”
परिभाषाएँ—
उपेन्द्रनाथ अश्क के अनुसार—’बड़े नाटक की तुलना में एकांकी जीवन के किसी एक अंश का पृथक और विच्छिन्न चित्र उपस्थित करता है, जीवन की झांकी मात्र देता है। विभिन्नता के बदले समीकरण, विशृंखला के बदले एकाग्रता, पूर्णता के बदले अपूर्णता, फैलाव के बदले सीमित्व, विस्तार के बदले संक्षिप्तता इसके गुण हैं।”
सेठ गोविन्द दास के अनुसार, “इसमें जीवन से सम्बन्धित किसी एक ही मूल भाव या विचार की एकान्त अभिव्यक्ति रहा करती है। महान् विचार से ही एकांकी महान् तथा स्थायी हो सकता है। वह जीवन में स्थायित्व लाने में भी सहायक हो सकता है। “
डॉ. नगेन्द्र के अनुसार, “एकांकी में एक अंक, विस्तार की सीमा कहानी जैसी, जीवन का एक पहलू, एक महत्त्वपूर्ण घटना, एक विशेष परिस्थिति अथवा उद्दीप्त क्षण, एकता, एकाग्रता और आकस्मिकता की अनिवार्यता, संकलनत्रय का साधारणतया परिपालन, प्रभाव और वस्तु का ऐक्य होना चाहिए।”
एकांकी के तत्त्व—
(1) कथावस्तु—कथानक को एकांकी का प्राण तत्त्व माना गया है। एकांकी में एक आधिकारिक कथा होती है। इसका आरम्भ तत्काल होकर तीव्र गति से अन्त होता है। इसमें किसी प्रकार की जटिलता नहीं होती। भले ही एकांकी का कथानक लघु घटनाएँ भी होती हैं, पर सभी जिज्ञासा और कौतूहल में वृद्धि करती हैं और अन्ततः मुख्य कथानक में मिल जाती हैं। एकांकी का इतिहास लोकगाथा, समाज, परिवार, मानवजीवन आदि से अन्त तक कौतूहल लिए रहता है। एकांकी का अंत अचानक होता है और उसमें संवेदन की तीव्रता दिखाई जाती है।
(2) संवाद—संवाद को एकांकी का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व माना जाता है। नाटक, उपन्यास तथा कहानी के समान संवाद सहज, सरल, बोधगम्य, पात्रानुकूल तथा प्रसंगानुकूल होने चाहिए।
(3) भाषा शैली तथा अभिव्यक्ति—भाषा शैली का प्रभाव एकांकी के अन्य तत्त्वों पर पड़ता है। भाषा-शैली अभिव्यक्ति का माध्यम है। मूलत: एकांकीकार को विषयानुसार भाषा और शैली का प्रयोग करना चाहिए। एकांकी की भाषा सरल, सहज तथा सुबोध होनी चाहिए। यह भाषा पात्रानुकूल तथा प्रसंगानुकूल होनी चाहिए। एकांकी की शैली ऐसी हो, जिसमें कम शब्दों में अधिक कहा गया हो, जिसके वाक्य छोटे-छोटे तथा सरल होने चाहिए ताकि दर्शक पात्रों की भाषा को समझ सकें।
(4) देशकाल तथा वातावरण—सभी एकांकियों की घटना किसी एक स्थल या एक काल में होती है । अतः एकांकी के कथानक में काल तथा स्थान का पूर्ण निर्वाह होना चाहिए। अन्यथा एकांकी प्रभावहीन तथा हास्यास्पद बन जाएगा, अन्य शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि संकलनत्रय का समुचित निर्वाह होना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो एकांकीकार दर्शकों के मन पर अनुकूल प्रभाव उत्पन्न कर सकता है।
(5) पात्र और चरित्र चित्रण—एकांकी का केवल एक अंक होने के कारण इसका कलेवर बहुत संक्षिप्त होता है। इसमें पात्रों की संख्या बहुत कम होती है। परन्तु इसमें दोनों प्रकार के गौण तथा मुख्य पात्र रखे जा सकते हैं। यदि विदूषक न रखा जाए तो अन्य पात्रों के संवादों में हास्य-विनोद की सामग्री प्रस्तुत की जा सकती है। व्यंग्य एकांकी के पात्रों का चरित्र चित्रण स्वाभाविक, निष्पक्ष तथा सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए। पात्रों के चरित्र का निर्माण उनके संस्कार तथा मनोविज्ञान के अनुसार ही होना चाहिए।
(6) उद्देश्य—सभी साहित्यकार किसी-न-किसी उद्देश्य से एकांकी की रचना करते हैं। उसकी रचना का उद्देश्य, संवाद, परिवार, राजनीति, मानव-जीवन अथवा इतिहास की किसी समस्या से सम्बन्धित होता है । लेखक उस समस्या को मुद्दा बनाकर दर्शकों को उस समस्या से अवगत कराना चाहता है।
(7) दृश्य विधान तथा अभिनेयता—एकांकी में एक या एक से अधिक दृश्य होते हैं तथा इनमें दस से लेकर पैंतालीस मिनट तक का समय लगता है। वस्तुतः एकांकी का आविष्कार रंगमंच की आवश्यकतानुसार हुआ । अन्ततः अभिनय तत्त्व एकांकी का अनिवार्य तत्त्व है । परन्तु एकांकी को सफलतापूर्वक अभिनीत करने के लिए रंग निर्देश भी होने चाहिए।
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