गुरुत्वाकर्षण (Gravitation)

गुरुत्वाकर्षण (Gravitation)

गुरुत्वाकर्षण (Gravitation)

पृथ्वी पर प्रत्येक पिण्ड एक-दूसरे को अपनी ओर आकर्षित करता है। उनके बीच लगने वाले इस बल को गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं तथा इस घटना को गुरुत्वाकर्षण (gravitation) कहते हैं। तथा वह बल, जिससे पृथ्वी सभी वस्तुओं को अपने केन्द्र की ओर आकर्षित करती है, गुरुत्व बल कहलाता है। पृथ्वी की सतह पर रखी किसी वस्तु पर लगा गुरुत्व बल पृथ्वी तथा वस्तु के बीच लगे गुरुत्वाकर्षण बल के बराबर होता है।
गुरुत्वाकर्षण बल की विशेषताएँ (Characteristics of Gravitational Force) 
(i) गुरुत्वाकर्षण बल एक दुर्बल प्रकृति का बल है। यह प्रकृति में पाए जाने वाले बलों में सबसे दुर्बल बल (weakest force) है।
(ii) यह सदैव आकर्षण प्रकृति का होता है।
(iii) यह बल अन्तराण्विक दूरियों से लेकर अर्न्तग्रहीय दूरियों तक के लिए कार्य करता है।
(iv) यह कणों के बीच उपस्थित माध्यम पर निर्भर नहीं करता है।
(v) यह एक केन्द्रीय बल है, अर्थात् यह कणों को मिलाने वाली रेखा के अनुदिश कार्य करता है।
(vi) यह एक संरक्षी बल (conservative force) है, अर्थात् इसके द्वारा किया गया कार्य पथ पर निर्भर नहीं करता तथा इसके द्वारा एक पूर्ण चक्र में किया गया कार्य शून्य होता है।
(vii) गुरुत्वाकर्षण बल दो कणों के मध्य लगने वाला अन्योन्य बल है, अर्थात दो कणों के बीच कार्यरत् गुरुत्वाकर्षण बल पर किसी अन्य कण की उपस्थिति या अनुपस्थिति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
(viii) ये बल क्रिया-प्रतिक्रिया युग्म बनाते हैं। अर्थात् एक वस्तु द्वारा दूसरी वस्तु पर लगाया गया बल दूसरी वस्तु द्वारा पहली वस्तु पर लगाए गए बल के बराबर होता है, परन्तु बलों की दिशाएँ विपरीत होती हैं।
(ix) गुरुत्वाकर्षण बल स्थिर वैद्युत बल से 1036 गुना तथा नाभिकीय बल से 1038 गुना होता है।
(x) दो छोटे पिण्डों के बीच गुरुत्वाकर्षण बल बहुत कम होता हैं। दूसरे शब्दों में, दो बड़े पिण्डों (जैसे सूर्य तथा पृथ्वी) के बीच गुरुत्वाकर्षण बल बहुत अधिक होता है।
गुरुत्वाकर्षण बल एक व्युत्क्रम वर्ग बल है, क्योंकि यह दो वस्तुओं के बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नियम (न्यूटन का नियम) (Universal Law of Gravitation) (Newton’s Law) 
सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नियम न्यूटन द्वारा दिया गया था। इस नियम के अनुसार, किन्हीं दो पिण्डों के मध्य कार्य करने वाला बल उनके द्रव्यमानों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
गुरुत्वाकर्षण नियतांक G का मान बिन्दु द्रव्यमानों की आकृति, आकार एवं उनके बीच के माध्यम की प्रकृति पर निर्भर नहीं करता है। अतः इसे सार्वत्रिक नियतांक कहते हैं ।
न्यूटन के सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियम के उपयोग (Importance of Newton’s Universal Law of Gravitation)
सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियम के उपयोग निम्न प्रकार हैं
(i) यह बल हमें पृथ्वी से बाँधे रखता है।
(ii) इस बल के कारण ही चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर गति करता है।
(iii) इस बल के कारण ही एक ग्रह वातावरण के चारों ओर घूमता है।
◆ न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण बल वस्तुओं के बीच बहुत ज्यादा दूरी तथा बहुत कम दूरी के लिए उपयुक्त होता है। लेकिन यदि वस्तुओं के बीच की दूरी 10-9 मी से कम होती है, तब ये असफल हो जाता है।
गुरुत्वीय त्वरण (Acceleration due to Gravity)
जब कोई वस्तु गुरुत्वीय त्वरण के अन्तर्गत पृथ्वी की ओर मुक्त रूप से गिरती है, तो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ही यह त्वरण, गुरुत्वीय त्वरण कहलाता है। इसे g से प्रदर्शित करते हैं, इसका मात्रक मी ये’ या न्यूटन किग्रा होता है। यह एक सदिश राशि है, इसकी दिशा सदैव पृथ्वी के केन्द्र की ओर होती है। गुरुत्वीय त्वरण g का मान प्रत्येक स्थान पर बदलता रहता है। सभी प्रयोगात्मक मान के लिएg का मान 9.8 मी/से 2 या 32 फीट से 2 लेते हैं।
गुरुत्वीय त्वरण (g) के मान में परिवर्तन (Change in Value of Gravitational Acceleration g) 
(i) पृथ्वी तल से नीचे जाने पर g का मान घटता जाता है, पृथ्वी तल से ऊपर जाने पर भी g का मान घटता जाता है। ध्रुवों परg का मान अधिकतम तथा विषुवत् रेखा पर न्यूनतम होता है। पृथ्वी के केन्द्र पर g का मान शून्य होता है, अत: किसी वस्तु का भार पृथ्वी के केन्द्र पर शून्य होता है, लेकिन द्रव्यमान नियत रहता है ।
(ii) यदि समान द्रव्यमान की दो वस्तुओं को मुक्त रूप से ऊपर से गिराया जाए, तो उनमें उत्पन्न त्वरण समान होगा। g का प्रमाणिक मान 45° अक्षांश (latitude) तथा समुद्र तल पर 9.8 मी / से 2 होता है।
(iii) यदि पृथ्वी अपने अक्ष के चारों ओर घूमना बन्द कर दे, तो ध्रुवों के अतिरिक्त प्रत्येक स्थान परg के मान में वृद्धि हो जाएगी। यह वृद्धि विषुवत् रेखा पर सर्वाधिक तथा ध्रुवों पर सबसे कम होगी।
(iv) यदि पृथ्वी अपनी अक्ष के परित: वर्तमान गति से 17 गुना अधिक गति से घूमने लगे तो भूमध्य रेखा पर रखी वस्तु का भार भी शून्य हो जाएगा, अर्थात् पृथ्वी की घूर्णन गति बढ़ने पर g का मान घटता है।
भार तथा द्रव्यमान (Weight and Mass )
जिस बल द्वारा पृथ्वी किसी वस्तु को अपने केन्द्र की ओर खींचती है, उस बल को उस वस्तु का भार कहते हैं। दूसरे शब्दों में, किसी वस्तु का भार वह बल है जो मापने पर पिण्ड के जड़त्व मान से अधिक होता है। वस्तु ( पिण्ड) का द्रव्यमान सदैव नियत होता है तथा यह पृथ्वी से जुड़ा होता है। यदि वस्तु का द्रव्यमान m हो, तो वस्तु का भार w=mg यह एक सदिश राशि है। इसकी दिशा सदैव ऊर्ध्वाधर नीचे की ओर होती है, इसका SI मात्रक न्यूटन होता है।वस्तु का भार विशेष स्थान पर बदल जाता है, पृथ्वी के ध्रुवों पर वस्तु का भार अधिकतम तथा विषुवत् रेखा पर न्यूनतम होता है।
◆ 1 किग्रा द्रव्यमान का भार 9.8 न्यूटन होता है।
◆ पृथ्वी के केन्द्र पर वस्तु का भार शून्य होता है। जिसके कारण सभी दिशा में गुरुत्वीय त्वरण बराबर तथा सभी बल शून्य होते हैं।
◆ एक वस्तु का भार नियत नहीं होता है, क्योंकि गुरुत्वीय त्वरण के मान में परिवर्तन होने के कारण यह प्रत्येक स्थानों पर बदलता रहता है।
भारहीनता (Weightlessness)
पिण्ड का वह भार जो पृथ्वी की सतह पर महसूस किया जाता है, वास्तविक भार कहलाता है तथा गुरुत्वीय त्वरण (g) के बढ़ने-घटने से भार में जो अस्थिरता होती है, तो वह वस्तु का आभासी या प्रभावी भार कहलाता है। भारहीनता की स्थिति में, वस्तु का प्रभावी भार शून्य होता है। उदाहरण जब हम किसी तल पर खड़े होते हैं तो हमें अपने भार का अनुभव, हमारे पैरों पर तल की प्रतिक्रिया के कारण होता है। यदि किसी विशेष परिस्थिति में इस तल की प्रतिक्रिया शून्य हो जाए, तो हमें अपना भार शून्य प्रतीत होगा, यही भारहीनता की अवस्था कहलाती है।
◆ यदि पृथ्वी की अपनी अक्ष के परितः कोणीय चाल. 1/800 रेडियन/से से अधिक हो जाती है, तो व्यक्ति भूमध्य रेखा पर भारहीनता का अनुभव करेगा।
◆ यदि नीचे उतरते समय लिफ्ट की डोरी टूट जाए, तब लिफ्ट में खड़े व्यक्तियों को अथवा कृत्रिम उपग्रह के भीतर बैठे अन्तरिक्ष यात्री को भारहीनता का अनुभव होता है।
चन्द्रमा पर वस्तु का भार (Weight of a Body at the Moon)
चन्द्रमा का द्रव्यमान, पृथ्वी के सापेक्ष नगण्य नहीं है अत: यह अपना गुरुत्व उत्पन्न करता है, चन्द्रमा पर गुरुत्वीय त्वरण, पृथ्वी पर गुरुत्वीय त्वरण से (1/6) होता है। अत: चन्द्रमा पर किसी वस्तु का भार पृथ्वी की तुलना में (g/6) तथा सूर्य पर पृथ्वी की तुलना में 27 गुना होता है।
ग्रह तथा उपग्रह (Planet and Satellite)
वे आकाशीय पिण्ड जो सूर्य के चारों ओर अपनी-अपनी कक्षाओं में परिक्रमण करते रहते हैं, ग्रह कहलाते हैं। सौर मण्डल में नौ ग्रह होते हैं जैसे बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस, नेप्च्यून तथा प्लूटो । वे आकाशीय पिण्ड जो ग्रहों के चारों ओर परिक्रमण करते रहते हैं, उपग्रह कहलाते हैं जैसे चन्द्रमा पृथ्वी का एक प्राकृतिक उपग्रह है। आर्यभट्ट तथा INSAT-B पृथ्वी के कृत्रिम उपग्रह हैं।
उपग्रह के प्रकार (Types of Satellite) 
उपग्रह दो प्रकार के होते हैं
1. भू – स्थिर उपग्रह (Geostationary or Parking Satellites)
यदि किसी कृत्रिम उपग्रह की पृथ्वी तल से ऊँचाई इतनी हो कि इसका परिक्रमण काल ठीक पृथ्वी की अक्षीय गति के परिक्रमण काल (24 घण्टे) के बराबर हो, तो वह उपग्रह पृथ्वी के सापेक्ष स्थिर रहेगा। इस प्रकार के उपग्रह भू-स्थिर उपग्रह या तुल्यकाली उपग्रह कहलाते हैं।
भू-स्थिर उपग्रह पृथ्वी तल से 35830 (~ 36000) किमी की ऊँचाई पर 12200 किमी त्रिज्या की कक्षा में पृथ्वी की परिक्रमा पश्चिम से पूर्व की ओर करते हैं तथा इसका आवर्तकाल 24 घण्टे तथा इसकी कक्षा की त्रिज्या लगभग 42400 किमी होती है। इनका कोणीय वेग, पृथ्वी के अपनी अक्ष पर घूर्णन के कोणीय वेग के ठीक बराबर तथा रेखीय चाल 3.1 किमी/से होती है। इन उपग्रहों का उपयोग दूर संचार तथा अन्य संचार प्रणालियों के लिए किया जाता है।
उदाहरण INSAT-2B तथा INSAT-2C भारत के तुल्यकाली उपग्रह हैं। इनका उपयोग दूरदर्शन कार्यक्रमों, दूरभाषी संवादों व रेडियो संकेतों को दूर-दूर के स्थानों तक संचारित करने में किया जाता है।
2. ध्रुवीय उपग्रह (Polar Satellites)
ये उपग्रह पृथ्वी के चारों ओर ध्रुवीय कक्षा में परिक्रमण करते हैं। ये उपग्रह पृथ्वी तल से 500 किमी से 8800 किमी ऊँचाई तक की ध्रुवीय कक्षा में उत्तर से दक्षिण दिशा में परिक्रमण करते हैं। इनका आवर्तकाल लगभग 84 मिनट होता है।
उदाहरण भारत में PSLV श्रेणी के सभी ध्रुवीय उपग्रह।
इन उपग्रहों का उपयोग मौसम के विषय में जानकारी देने में, बादलों के चित्र लेने में, वायुमण्डल तथा ओजोन परत के बारे में सूचना प्राप्त करने में किया जाता है।
◆ भू-स्थिर उपग्रहों का उपयोग कम दूरी के लिए, जबकि ध्रुवीय उपग्रहों का उपयोग दीर्घकालिक पूर्वानुमान लगाने में किया जाता है।
उपग्रहों के उपयोग (Uses of Satellites)
कृत्रिम उपग्रह के कुछ महत्त्वपूर्ण उपयोग निम्नलिखित हैं
(i) रेडियों द्वारा संचार, दूरदर्शन कार्यक्रमों, दूरभाषी संवादों व आदि में किया जाता है। व
(ii) सूर्य व अन्तरिक्ष से आने वाली विकिरणों का अध्ययन किया जाता है।
(iii) वायुमण्डल के ऊपरी क्षेत्रों का अध्ययन किया जाता है।
(iv) मौसम के बारे में पूर्व जानकारी प्राप्त की जाती है।
(v) पृथ्वी के आकार तथा पृथ्वी पर तेल व मूल्यवान खनिजों की जानकारी प्राप्त की जाती है।
(vi) चन्द्रमा व अन्य ग्रहों पर पहुँचकर उनका अध्ययन किया जाता हैं।
(vii) विमान चालकों द्वारा उपग्रहों को दिशा-निर्देशक के रूप में प्रयोग किया जाता है।
(viii) उल्का पिण्डों का अध्ययन किया जाता है।
(ix) अन्य देशों की जासूसी करने व युद्ध काल में शत्रु के बारे में जानकारी प्राप्त करने में प्रयोग किया जाता है।
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