डेटा निरूपण (Data Representation)

डेटा निरूपण (Data Representation)

डेटा निरूपण (Data Representation)

संख्या पद्धति के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की संख्याओं का समूह होता है, जिसका प्रयोग कम्प्यूटर में किसी डेटा / निर्देश को व्यक्त करने के लिए करते हैं। कम्प्यूटर को डेटा या निर्देश अलग-अलग संख्या पद्धति में दिया जा सकता है।
संख्या पद्धति के प्रकार (Types of Number System)
कम्प्यूटर सिस्टम द्वारा प्रयोग की जाने वाली संख्या पद्धतियाँ मुख्यतः चार प्रकार की होती हैं –
(i) बाइनरी या द्वि- आधारी संख्या प्रणाली (Binary Number System) 
इस संख्या प्रणाली में केवल दो अंक होते हैं –0 (शून्य) और 1 (एक)। जिस कारण इसका आधार 2 होता है। इसलिए इसे द्वि-आधारी या बाइनरी संख्या प्रणाली कहा जाता है। बाइनरी संख्या 0 (शून्य) और 1 (एक) को बिट कहते हैं।
◆ गोत्फ्रेड विल्हेम लाइब्लिज (Gottfried Wilhelm Leibniz) के द्वारा संख्या पद्धति का अविष्कार हुआ था।
(ii) दशमलव या दशमिक संख्या प्रणाली (Decimal Number System) 
दैनिक जीवन में प्रयुक्त होने वाली संख्या पद्धति को दशमिक या दशमलव संख्या प्रणाली कहा जाता है। इस संख्या प्रणाली में 0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8 और 9 ये दस संकेत मान (Symbol Value) होते हैं। जिस कारण इस संख्या प्रणाली का आधार 10 होता है। दशमलव प्रणाली का स्थानीय मान (Positional Value) संख्या के दाईं से बाईं दिशा में आधार (Base ) 10 की घात की वृद्धि के क्रम के रूप में होता है।
(iii) ऑक्टल या अष्ट- आधारी संख्या प्रणाली (Octal Number System) 
ऑक्टल संख्या प्रणाली में 0, 1, 2, 3, 4, 5, 6 और 7 इन आठ अंकों का प्रयोग किया जाता है। जिस कारण इसका आधार 8 होता है। इन अंकों के मुख्य मान दशमलव संख्या प्रणाली की तरह ही होते हैं। ऑक्टल संख्या प्रणाली इसलिए सुविधाजनक है, क्योंकि इसमें किसी भी बाइनरी संख्या को छोटे रूप में लिख सकते हैं।
(iv) हेक्साडेसीमल या षट्दशमिक संख्या प्रणाली (Hexadecimal Number System) 
हेक्साडेसीमल शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है–हेक्सा + डेसीमल । हेक्सा से तात्पर्य छः तथा डेसीमल से तात्पर्य दस से होता है। अतः इस संख्या प्रणाली में कुल सोलह [16] (0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, A, B, C, D, E, F) अंक होते हैं। इसके मुख्य मान क्रमशः 0 से 15 तक होते हैं, परन्तु 10, 11, 12, 13, 14, 15 को दो अलग-अलग अंक न समझ लिया जाए, इसलिए हम अंकों 10, 11, 12, 13, 14 और 15 के स्थान पर क्रमशः A, B, C, D, E तथा F अक्षर लिखते हैं।
कम्प्यूटर कोड्स (Computer Codes)
कम्प्यूटर प्रत्येक प्रकार के कैरेक्टर जैसे कि अल्फाबेट संख्या या कोई चिह्न स्टोर कर सकता है। इन सभी कैरेक्टरों के निरूपण (Representation) के लिए बाइनरी संख्या पद्धति पर आधारित एक विशेष प्रकार के कोड की आवश्यकता होती है, जिसे कम्प्यूटर कोड कहा जाता है।
कम्प्यूटर कोड्स विभिन्न प्रकार के होते हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं –
बाइनरी कोडेड डेसीमल (Binary Coded Decimal-BCD) 
BCD कोड में प्रत्येक अंक को प्रस्तुत करने के लिए चार बिट्स के समूह का प्रयोग करते हैं। इसका प्रयोग 0 से 9 तक की संख्या को चार बिट्स के बाइनरी संख्या में निरूपित करने के लिए करते हैं।
अमेरिकन स्टैण्डर्ड कोड फॉर इन्फॉर्मेशन इण्टरचेन्ज (American Standard Code for Information Interchange-ASCII) 
स्टैण्डर्ड कैरेक्टर कोड का प्रयोग किसी प्रोग्राम द्वारा डेटा को स्टोर करने तथा उसका प्रयोग करने के लिए किया जाता है। ASCII कोड दो प्रकार के होते हैं
(i) ASCII-7 यह एक 7 – बिट स्टैण्डर्ड कोड है। जिसके द्वारा कुल 2 = 128 कैरेक्टर को निरूपित किया जा सकता है।
(ii) ASCII-8 यह एक 8 बिट स्टैण्डर्ड कोड है। इसमें 28 = 256 प्रकार के कैरेक्टर को निरूपित किया जा सकता है। यह ASCII-7 का बदला हुआ प्रारूप है।
एक्सटैण्डेड बाइनरी कोडेड डेसीमल इण्टरचेंज कोड (Extended Binary Coded Decimal Interchange Code-EBCDIC) 
EBCDIC में, कैरेक्टर 8-बिट्स के समूह से निरूपित होते हैं। इसका प्रयोग किसी भी प्रकार के कम्प्यूटर में सूचनाओं को स्टोर करने के लिए किया जाता है। इसमें 28 = 256 प्रकार के कैरेक्टर को निरूपित किया जा सकता है।
◆ BCD सिस्टम IBM कॉर्पोरेशन द्वारा विकसित किया गया था।
◆ UNICODE में डेटा के किसी संकेत (Symbol) को प्रस्तुत करने के लिए 16 -बिट्स का प्रयोग होता है। यह अंग्रेजी के अक्षरों के अलावा किसी भी प्रकार का वैज्ञानिक संकेत, अनेक प्रकार की भाषा जैसे कि चाइनीज (Chinese), जैपनीज (Japanese), आदि को निरूपित करता है।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *