छात्रों में पाठ लेखन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए लेखन विषय के रूप में कौन-कौनसे विषयों को शामिल किया जाता है ?
छात्रों में पाठ लेखन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए लेखन विषय के रूप में कौन-कौनसे विषयों को शामिल किया जाता है ?
उत्तर— लेखन का अभिप्राय लिखने की कला से है तथा सामाजिक वातावरण का अर्थ समाज में चारों ओर उपस्थित प्रकृति प्रदत्त एवं मानव निर्मित वस्तुएँ हैं। शिक्षक को बालक से लेखन कार्य का अभ्यास कराने से पूर्व उन सभी वस्तुओं के सम्बन्ध में बालकों को बता देना चाहिये, तत्पश्चात् बालक को लेखन कार्य के लिए उत्साहित करना चाहिये जिससे वे स्वतन्त्र रूप से उस वस्तु के सम्बन्ध में अपने विचार लिख सकें । शिक्षक द्वारा बालकों को गृह कार्य में अपने परिवार या प्राकृतिक वस्तुओं पर लिखने के लिये देना चाहिये; जैसे—अपने माता-पिता के सम्बन्ध में चार वाक्य लिखना, वृक्ष एवं फूलों से सम्बन्धित चार वाक्य बनाकर लायें। अगले दिन शिक्षक द्वारा बालकों द्वारा लिखे गये गृहकार्य का निरीक्षण करना चाहिये। बालकों द्वारा यदि कोई गलती की गयी है तो उनमें सुधार करते समय बालकों को समझाना चाहिये जिससे वह गलती बालक पुनः न करें ।
उच्च प्राथमिक कक्षाओं में छात्र-छात्राओं में विविध लेखन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न करने के लिये ऐसे विषयों का चयन करना चाजिये जो कि छात्रों की रुचि तथा योग्यता के अनुरूप हो । जो विषय छात्रों की रुचि एवं योग्यता के अनुरूप नहीं होते उन विषयों का चयन करने पर छात्रों द्वारा लेखन कार्य में रुचि नहीं दिखायी जाती। अतः शिक्षक के लिये यह आवश्यक है कि लेखन कार्य में उन विषयों का चयन किया जाय जो छात्रों की रुचि के अनुरूप हों । लेखन विषयों के चयन में प्रमुख रूप से निम्नलिखित विषयों को शामिल करना चाहिये—
(1) कविता लेखन—कविता लेखन की प्रक्रिया एक शिक्षक द्वारा निम्नलिखित रूप में सम्पन्न की जा सकती है—
(i) रुचिपूर्ण कविताओं का लेखन—विभिन्न प्रकार की कविताओं में रुचियों का होना भी विभिन्न आधारों से सम्बन्धित होता है; जैसे एक छात्र को जानवरों से सम्बन्धित कविता अच्छी लगती है तो दूसरे छात्र को पेड़-पौधों से सम्बन्धित कविताएँ अच्छी लगती हैं । इसलिये शिक्षक को चाहिये कि सर्वप्रथम वह छात्रों को रुचियों के आधार पर विभाजित करें। इसके बाद उनको कविता लेखन के लिये प्रोत्साहन प्रदान करे । इसका लाभ यह होगा कि छात्रों द्वारा अपनी रुचिपूर्ण कविताओं का बार-बार लेखन किया जायेगा तथा उनमें लिखित अभिव्यक्ति कौशल का विकास हो जायेगा ।
(ii) क्रमबद्ध रूप में कविता लेखन—छात्रों की कविता लेखन करने के लिये प्रेरित करने में शिक्षक को अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देना चाहिए। इससे ही वह कविता लेखन में सफल हो पायेंगे। इसके लिये छात्रों को उन कविताओं का लेखन सिखाना चाहिये जो कि मनोरंजनात्मक होती हैं। इसके बाद छात्रों को ज्ञानात्मक कविताओं को याद कराना चाहिये।
(iii) बड़ी कविताओं का लेखन—उच्च प्राथमिक स्तर पर छात्रों को बड़ी कविताओं को पढ़ने में अधिक रुचि होती है । इसलिये उच्च प्राथमिक स्तर के छात्रों की सर्वप्रथम बड़ी कविताओं को सुनना चाहिये तथा इसके बाद छात्रों को उन कविताओं को लिखने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये ।
(iv) धार्मिक कविता लेखन—हमारी भारतीय संस्कृति में धर्म एवं शिक्षा दोनों का एक-दूसरे से पारस्परिक घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। धर्म का प्रभाव शिक्षा पर आज भी देखने को मिलता है। विद्यालय का प्रारम्भ ईश प्रार्थना अर्थात् धार्मिक कविता के द्वारा होता है। इसलिये सर्व धर्म समभाव की भावना का विकास करते हुए किसी छात्र की धार्मिक कविताओं में रुचि है तो उसको इस प्रकार की कविताओं को सर्वप्रथम याद करने के लिये तथा बाद में लिखने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।
(v) चित्रात्मक कविताएँ—बालक उन कविताओं को सीखने में अधिक रुचि रखते हैं जिनमें कविता के साथ चित्र के द्वारा भी उन घटनाओं को दर्शाया जाता है जो कि कविता में वर्णित हैं। इस प्रकार की कविताओं को सर्वप्रथम छात्रों को याद कराना चाहिये । इसके बाद कविता लेखन करने के लिये छात्रों को प्रोत्साहित करना चाहिये । आज चित्रात्मक कविताओं का प्रचलन पाठ्य पुस्तकों में देखा जा सकता है।
(vi) विषयवस्तु सम्बन्धित कविताओं का लेखन—शिक्षक का उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञान प्रदान करना होना चाहिए । इसलिये प्रत्येक शिक्षक को सर्वप्रथम यह प्रयास करना चाहिये कि मनोरंजनात्मक कविताओं से ज्ञानात्मक कविताओं की ओर छात्रों को आकर्षित किया जाय। विषयवस्तु से सम्बन्धित कविताओं को याद कराना तथा लेखन कराना दोनों ही कार्य छात्रों के लिये उपयोगी होते हैं।
(2) अनुभवों पर बातचीत के साथ लेखन—अनुभव मानव जीवन का अनिवार्य अंग है। जब हम किसी तथ्य विशेष का या घटना विशेष का अपने जीवन में अनुभव करते हैं तो उसके सम्बन्ध में लिखने की इच्छा हमारे मन में जाग्रत होती है। विभिन्न प्रकार की घटनाओं तथा कहानियों का आधार अनुभव ही होता है; जैसे- मुंशी प्रेमचन्द ने जो भी सामाजिक व्यवस्था एवं रूढ़िवादिता के सम्बन्ध में अनुभव किया उसे कहानी के द्वारा प्रस्तुत करने का प्रयास किया। उच्च प्राथमिक स्तर पर लेखन का आधार अनुभव को ही बनाया जाय तो छात्रों में लेखन अभिव्यक्ति के प्रति सार्थक एवं सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित होगा। अनुभव आधारित लेखन के लिये छात्रों को निम्नलिखित विषयों पर लेखन करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना आवश्यक है—
(i) सामाजिक अनुभव—छात्र अपने वातावरण में रहता है तो उसको विभिन्न प्रकार के अनुभव वातावरण से प्राप्त होते हैं । इस अनुभव की प्रक्रिया में विभिन्न प्रकार की घटनाएँ सम्मिलित होती हैं तथा सामाजिक व्यवस्था सम्बन्धी अनुभव होते हैं; जैसे— समाज में उसके माता-पिता किसी गरीब तथा असहाय व्यक्ति की सहायता करते हैं। एक व्यक्ति अन्धे व्यक्ति को रास्ता पार कराता है। इस प्रकार की अनेक घटनाएँ छात्रों के मन को छू जाती हैं। इन घटनाओं के सम्बन्ध में सर्वप्रथम बालक को मौखिक रूप से शिक्षक को सुनानी चाहिये । इसके बाद जिस घटना में छात्र की सर्वाधिक रुचि हो उस घटना को लिखने के लिये छात्रों से कहना चाहिए।
(ii) पारिवारिक अनुभव—बालक की प्रथम पाठशाला परिवार होती है। इसमें बालक विभिन्न प्रकार के अनुभवों को सीखता हुआ आगे बढ़ता है। शिक्षक को चाहिए कि वह छात्रों से उनके विभिन्न प्रकार के पारिवारिक अनुभवों के सम्बन्ध में बातचीत कर तथा मौखिक रूप से छात्रों के अनुभवों को सुनें। इसके बाद उस विषय पर छात्रों को लिखने के लिये प्रेरित किया जाय; जैसे—विद्यालय में छात्रों से पूछा जाय कि सुबह होने पर विद्यालय में प्रवेश करने से पूर्व कौन-कौनसी क्रियाएँ सम्पन्न करते हैं, उन्हें अलग-अलग लिखिये । इससे छात्रों में लिखने के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित होगा तथा उनमें लिखित अभिव्यक्ति का विकास होगा।
(iii) सांस्कृतिक अनुभव—छात्र का अपनी सामाजिक संस्कृति में पूर्ण विश्वास होता है। भारतीय वातावरण का बालक मानवता तथा नैतिकता में पूर्ण विश्वास रखता है क्योंकि नैतिकता एवं मानवता भारतीय संस्कृति का मूल आधार है। बालक को विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक एवं सभ्यता सम्बन्धी कार्यक्रमों में अनेक कार्यक्रम अच्छे लगते हैं जो कि नैतिकता एवं मानवता से सम्बन्धित होते हैं। इन सभी कार्यक्रमों के सम्बन्ध में सर्वप्रथम मौखिक रूप से छात्रों को बताना चाहिये । इसके बाद जो घटना या कार्यक्रम छात्रों को अच्छा लगता है, वह लिखवाना चाहिए।
(iv) कक्षा-कक्ष अनुभव—विद्यालयी अनुभवों के बाद कक्षाकक्ष सम्बन्धी अनुभवों के सम्बन्ध में छात्रों की विशेष रुचि होती है। आज की शिक्षा प्रणाली गतिविधि आधारित शिक्षा प्रणाली है। इस गतिविधि आधारित शिक्षा प्रणाली में विभिन्न प्रकार की कक्षा-कक्ष सम्बन्धी क्रियाओं में छात्रों को सबसे अधिक अच्छी लगने वाली व्यवस्था के सम्बन्ध में चर्चा करनी चाहिये । छात्रों को इस रुचिपूर्ण प्रक्रिया में किसी छात्र सहपाठी का व्यवहार तथा शिक्षक के व्यवहार से सम्बन्धित घटनाएँ हो सकती हैं।
(v) विद्यालयी अनुभव—बालक अपने परिवार से निकलकर विद्यालय में प्रवेश करता है तथा विद्यालयों में अपने विभिन्न प्रकार के साथियों के साथ रहता है। इन सभी साथियों में से कुछ साथियों का व्यवहार उसको अच्छा लगता है तथा कुछ साथियों का व्यवहार अच्छा नहीं लगता। इसी प्रकार विद्यालयी परम्पराओं में भी छात्रों को कुछ परम्पराएँ अच्छी लगती हैं तथा कुछ अनुचित । उन सभी के सम्बन्ध में छात्रों से उनके रुचिकर अनुभवों के सम्बन्ध में सर्वप्रथम मौखिक चर्चा करनी चाहिये । इसके बाद इन सभी अनुभवों को लिखने के लिये उन्हें प्रेरित करना चाहिये ।
(3) कहानी लेखन—कहानी छात्रों की सबसे महत्त्वपूर्ण एवं रुचिपूर्ण गतिविधि मानी जाती है। प्रत्येक छात्र कहानी सुनने के लिये लालायित रहता है। इसलिये शिक्षक को सर्वप्रथम स्वयं छात्रों को कहानी सुनानी चाहिये । इसके बाद छात्रों से कहानी सुननी चाहिये । कहानी लेखन में निम्नलिखित व्यवस्थाओं एवं गतिविधियों को ध्यान में रखना चाहिये—
(i) मनोरंजक कहानी लेखन—शिक्षक को सर्वप्रथम छात्रों को मनोरंजन से सम्बन्धित कहानियों का लेखन कार्य करना सिखाना चाहिये क्योंकि मनोरंजन सम्बन्धी कहानियों में छात्रों को अधिक रुचि होती है।
(ii) लघु कहानियों का लेखन—कहानी लेखन में इस तथ्य का ध्यान रखा जाय कि कहानी का स्वरूप छात्रों के स्तरानुकूल होना चाहिये। अधिक लम्बी कहानी छात्रों में कहानी लेखन के प्रति अरुचि उत्पन्न करती है ।
(iii) सामाजिक कहानी लेखन—छात्रों को कहानी लेखन सिखाते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि कहानियों का सम्बन्ध सामाजिक घटनाओं से अवश्य हो क्योंकि इस प्रकार की कहानियों में छात्रों की विशेष रुचि होती है। कहानियों में मेले तथा त्यौहारों का वर्णन छात्रों को बहुत अच्छा लगता है। इसलिये छात्रों को कहानी सुनाते समय यह ध्यान रखा जाय कि कहानी का मूल तत्त्व सामाजिक घटनाओं, सामाजिक कार्यक्रमों एवं सामाजिक परम्पराओं से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित होना चाहिये ।
(iv) चित्रात्मक कहानी—आज पाठ्यक्रमों में उन कहानियों को अधिक महत्त्व प्रदान किया जाता है जिनमें कि वर्णन के साथ-साथ चित्र भी दिये होते हैं। चित्रात्मक कहानियों का श्रवण कराने से छात्रों को कहानी शीघ्र एवं सरलता से समझ में आ जाती है तथा इस प्रकार की कहानियों के लेखन करने में छात्रों को किसी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता है। इससे छात्रों में लेखन अभिव्यक्ति का विकास होता है।
(v) ऐतिहासिक कहानी लेखन—विभिन्न प्रकार की कहानियाँ हमारी ऐतिहासिक परम्पराओं से सम्बद्ध होती हैं। आज भी बालकों को किसी कहानी में तब तक आनन्द नहीं आता है जब तक कि उसमें राजारानी, परी एवं जादुई तथ्यों का वर्णन न हो। इसलिये छात्र ऐतिहासिक कहानियों के श्रवण तथा लेखन में अधिक रुचि रखते हैं। इसलिये शिक्षक को कहानी लेखन में रुचिपूर्ण कहानियों के लिये ऐतिहासिक कहानियों का प्रयोग करना चाहिये ।
(vi) रुचिपूर्ण कहानी लेखन–छात्रों को सदैव अपनी पसन्द की कहानियों को सुनना अच्छा लगता है; जैसे—कुछ छात्र साहसिक कहानी सुनते हैं तथा कुछ छात्र हँसी से सम्बन्धित कहानी सुनते हैं । कक्षा के विभिन्न छात्रों की कहानी सम्बन्धी रुचि जानने के बाद उनका विभाजन कर लेना चाहिये । जब विभाजन सम्बन्धी कार्य सम्पन्न हो जाये तो उनको उनकी रुचि के अनुसार कहानी श्रवण करानी चाहिए।
(4) डायरी तथा निबन्ध लेखन—
डायरी लेखन–डायरी लेखन की परम्परा हमारी सभ्यता एवं संस्कृति में पुरानी है। डायरी लेखन के द्वारा व्यक्ति अपने विचारों को क्रमबद्ध रूप में लिखता है। इसमें वह अपने जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन करता है । इसलिये उच्च प्राथमिक स्तर पर छात्रों को अपने विचारों एवं भावों को लिखित रूप प्रदान करने के लिये डायरी लेखन के लिये प्रोत्साहित करना शिक्षक के लिये सर्वाधिक उपयोगी कार्य होगा। छात्र में डायरी लेखन का विकास करने के लिए अध्यापकों को निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए—
(i) छात्रों को अपने भावों को प्रकाशित करने में आत्म सन्तुष्टि का अनुभव होता है। जब छात्रों के भावों को कोई सुनने वाला नहीं होता है तो उसको कष्ट का अनुभव होता है। शिक्षक द्वारा इस स्थिति से बचाने के लिये छात्रों को डायरी लेखन के लिए प्रेरित करना चाहिये ।
(ii) डायरी लेखन में छात्रों को दैनिक घटनाओं के वर्णन को लिखने के लिये प्रेरित करना चाहिये ।
(iii) छात्रों के जीवन में अनेक प्रकार की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटित होती हैं जो कि उनको सर्वाधिक आनन्द प्रदान करती हैं। ऐसी घटनाओं को छात्र लिपिबद्ध करना चाहते हैं । शिक्षक की प्रेरणा से वे इस कार्य को सरलतम रूप में सम्पन्न कर सकते हैं।
(iv) छात्रों को अनेक प्रकार की घटनाओं को स्मृति में बनाये रखने के लिये तथा अपनी मानसिक सन्तुष्टि के लिये डायरी
लेखन सम्बन्धी प्रक्रिया की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा शिक्षक को देनी चाहिये ।
निबन्ध लेखन—लेखन अभिव्यक्ति के विकास के लिए निबन्ध लेखन भी महत्त्वपूर्ण कला है। निबन्ध लेखन की प्रवृत्ति का विकास करने के लिए प्राथमिक स्तर से ही छात्रों को छोट-छोटे विषयों पर निबन्ध लिखने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये। निबन्ध लेखन कला के उचित विकास के लिए शिक्षक को निम्नलिखित उपाय करने चाहिए—
(i) छात्रों को प्रदान किये जाने वाले निबन्ध लेखन सम्बन्धी विषय उनके स्तर एवं योग्यता के अनुकूल होने चाहिए।
(ii) निबन्ध लेखन के लिये प्रथम अवस्था में छात्रों को कुछ सहायता प्रदान करनी चाहिये अर्थात् निबन्ध लेखन को प्रोत्साहन देने के लिये निबन्ध प्रणाली, सूत्र प्रणाली तथा चित्र प्रणाली का प्रयोग करना चाहिये ।
(iii) निबन्ध लेखन के विषय सरल से कठिन की ओर प्रदान करने चाहिये । इसके लिये सर्वप्रथम सामान्य विषय पर छात्रों को निबन्ध लिखने के लिये दिये जाने चाहिये । इसके बाद कठिन विषयों पर निबन्ध प्रदान किये जाने चाहिये जिससे निबन्ध लेखन के प्रति छात्रों की रुचि बनी रहे तथा छात्रों में लेखन योग्यता का विकास हो सकें ।
(iv) निबन्ध लेखन में रुचि विकसित करने के लिये छात्रों के द्वारा सम्पन्न की जाने वाली विविध गतिविधियों के द्वारा उनकी रुचि के सम्बन्ध में जानकर उसकी रुचि के अनुसार प्रकरण प्रदान करने चाहिये जिससे छात्रों को निबन्ध लेखन में कठिनाई न हो ।
(v) निबन्ध लेखन के लिये छात्रों को उनकी स्वेच्छा से शीर्षक प्रदान किये जा सकते हैं अर्थात् शिक्षक द्वारा छात्रों को निर्देश प्रदान किया जा सकता है कि अपनी इच्छा से निबन्ध लिखकर लायें ।
अंतः स्पष्ट है कि उपर्युक्त विषयों को छात्रों की लेखन कला में विकास हेतु चुना जाय तथा उनकी योग्यता एवं रुचि का विशेष ध्यान रखा जाय तो छात्रों में लेखन कला का विकास तीव्र गति से करेगा ।
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